वन विभाग की प्रोन्नति सूची पर उठे सवाल, जांच के घेरे में रहे अफसरों को भी मिला प्रमोशन

वन्यजीव संरक्षण और प्रशासनिक जवाबदेही के बीच संतुलन बनाए रखना हमेशा से एक चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है। प्राचीन कहावत “कानून का पालन करने वाला ही न्याय का सच्चा सेवक है। मध्य प्रदेश के वन विभाग में हाल की घटनाएं इसी सिद्धांत को परख रही हैं। गुरुवार को नई दिल्ली में आयोजित विभागीय प्रोन्नोति समिति (डीपीसी) की बैठक में राज्य वन सेवा के 24 अधिकारियों को भारतीय वन सेवा (आईएफएस) प्रमोशन के लिए चयनित किया गया, लेकिन इस प्रक्रिया में कुछ नामों का शामिल होना सवाल खड़े कर रहा है। यह न केवल विभाग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है, बल्कि वन्यजीवों के संरक्षण जैसे संवेदनशील क्षेत्र में लापरवाही के प्रति उदासीनता को भी उजागर करता है।

डीपीसी बैठक में मुख्य सचिव अनुराग जैन की अनुपस्थिति में अपर मुख्य सचिव अशोक वर्णवाल और प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) वी.एन. अंबाड़े ने हिस्सा लिया। 2011, 2012 और 2014 बैच के अधिकारियों में से चयनितों में 2009 बैच के राम कुमार अवधिया का नाम प्रमुख है, जो वर्तमान में खंडवा में वन विकास निगम के डिवीजन प्रबंधक के पद पर हैं। अवधिया के खिलाफ विभागीय जांच चल रही है, फिर भी उन्हें प्रमोशन की हरी झंडी मिल गई। इसी प्रकार, 2012 बैच के बालकराम सिरसाम को भी चयनित किया गया, जो दक्षिण बालाघाट में उप वन संरक्षक (एसडीओ) के रूप में कार्यरत हैं। सिरसाम के क्षेत्र लालबर्रा में दिसंबर 2024 में एक वृद्ध किसान पर बाघ के हमले की घटना घटी, जिसमें विभागीय लापरवाही की पुष्टि हुई। वन्यजीव कार्यकर्ताओं के अनुसार, इस घटना में साक्ष्यों के नष्ट होने और शिकार की आशंका पर सिरसाम की भूमिका संदिग्ध पाई गई, जिसके चलते दो माह पूर्व वन मुख्यालय ने उनका निलंबन प्रस्ताव राज्य शासन को भेजा था। लेकिन, आईएफएस प्रमोशन की मंशा से शासन ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की।

यह चयन प्रक्रिया विभागीय पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़ी करती है। मध्य प्रदेश, जो ‘टाइगर स्टेट’ के रूप में जाना जाता है, यहां बाघों की आबादी 526 से बढ़कर 785 हो चुकी है, लेकिन 2021-2023 के बीच दर्ज बाघ मृत्यु/शिकार की घटनाओं की आंतरिक रिपोर्ट में लापरवाही के कई मामले सामने आए हैं। बालाघाट जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में बाघ से हमलों की बढ़ती संख्या जैसे दिसंबर 2024 में लालबर्रा में हुई घटना, जहां एक किसान को बाघ ने 100 मीटर घसीट लिया। जो विभाग की निगरानी तंत्र की कमजोरी को दर्शाती है। सिरसाम का मामला, जहां निलंबन प्रस्ताव विचाराधीन है, प्रमोशन देना न केवल वन्यजीव संरक्षण कानूनों का उल्लंघन प्रतीत होता है, बल्कि कर्मचारियों के बीच नैतिकता को भी कमजोर करता है। अवधिया के खिलाफ चल रही डीई में वन संसाधनों के दुरुपयोग के आरोप भी हैं, जो प्रमोशन को और विवादास्पद बनाते हैं।

कुल 24 चयनित अधिकारियों में राम कुमार अवधिया के अलावा विद्या भूषण मिश्रा, राजेंद्र मिश्रा, माधव सिंह मौर्य, ज्योति मुड़िया, संतोष कुमार रनछोर, हरिश चंद्र बघेल, भानु प्रकाश बधवा, रामकिशन सोलंकी, रेशम सिंह धुर्वे, मोहन कटारा, अनुभा त्रिवेदी, जया पांडे, मनीषा पुरवार, मुकेश पटेल, धीरेंद्र प्रताप सिंह, प्रमोद सिंह, लाल सुधाकर सिंह, शौकी राही, बृजेंद्र कुमार खोब्रागड़े, भारत सोलंकी, एल्विन बर्मन, अंतर सिंह ओहरिया, अविनाश जोशी, हमीदुल्लाह खान, संजय पाठक, शुक्ला और राजेश शर्मा के नाम शामिल हैं। सूत्रों के अनुसार, इनमें से दो-तीन अधिकारियों के प्रमोशन पर अंतिम लिफाफा बंद होने की संभावना है, लेकिन विवादास्पद मामलों को नजरअंदाज करना विभाग की प्राथमिकताओं पर सवाल उठाता है।

मध्य प्रदेश वन विभाग, जो 50% से अधिक क्षेत्र को कवर करता है, पर्यावरण संरक्षण और आदिवासी कल्याण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि प्रमोशन प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र ऑडिट और वन्यजीव कार्यकर्ताओं की भागीदारी आवश्यक है। अन्यथा, वन्यजीवों का संरक्षण मात्र कागजी कार्रवाई बनकर रह जाएगा। शासन को चाहिए कि निलंबन प्रस्तावों पर तत्काल कार्रवाई करे और विभागीय नैतिकता को मजबूत बनाए, ताकि ‘सच्चा सेवक’ बनने की परंपरा बरकरार रहे।

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