:राजकुमार मल:
भाटापारा- आयात बंद। घरेलू फसल भारी बारिश की चपेट में। इसलिए जूट की सुतली
इस बार 140 से 150 रुपए किलो जैसी तेज दर पर खरीदी जा सकेंगी।
महंगा बीज, महंगा कल्टीवेशन, बढ़ी मजदूरी दर और अनाप-शनाप कीमत पर उर्वरक की खरीदी के बाद अब
किसानों को सुतली की खरीदी महंगी पड़ेगी। होलसेल के बाद खुदरा बाजार भी तेज कीमत पर
जूट सुतली की खरीदी के लिए विवश है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र की मांग निकलने लगी है।

परेशान हो रहा होलसेल
पश्चिम बंगाल में ली गई जूट की फसल इस बरस भारी बारिश की भेंट चढ़ चुकी है। इसलिए बांग्लादेश से जूट के आयात की शुरुआत की राह देखी जा रही है, जो फिलहाल बंद है। ऐसे में एक माह बाद आने वाले सीजन की तैयारी कर रहे होलसेल मार्केट को सर्वाधिक परेशानी उठानी पड़ रही है क्योंकि रिटेल की डिमांड पहुंचने लगी है।
सप्लाई हुई शाॅर्ट
किसान, खाद्य प्रसंस्करण इकाइयां और समर्थन मूल्य पर खरीदी करने वाली समितियों की पूछ- परख शुरू हो चली है। जूट बैग मरम्मत करने वाली संस्थानों की तो खरीदी भी चालू हो चुकी है लेकिन मांग जिस गति से बढ़ रही है, उसके बाद जूट की सुतली में शॉर्टेज की स्थिति बनने लगी है। विशेष तौर पर मरम्मत के काम आने वाली सुतली की कमी सबसे ज्यादा हो रही है।

तेजी के बाद ऐसी है कीमत
सिलाई के काम आने वाली सुतली महीने भर पहले तक 120 से 125 रुपए किलो की दर पर मिल रही थी। अब यह 140 से 145 रुपए किलो पर जा पहुंची है। रिकॉर्ड तेजी मरम्मत के काम आने वाली सुतली में आई है, जिसके दाम 150 रुपए किलो पर पहुंच गए हैं। विकल्प के तौर पर उपलब्ध प्लास्टिक सुतली 70 से 140 रुपए किलो पर स्थिर है लेकिन अपेक्षित मांग से दूर है।
