0 राजभवन असहाय, कृषि विवि में पेंशन के लाले

रायपुर। रायपुर का इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय यूं तो अपनी धान की हजारों वैरायटी के लिए जाना जाता है और इसके अनुसंधान का कार्य भी उच्च श्रेणी का है किन्तु यहां काम करने वाले बहुत से सेवानिवृत्त प्रोफेसर से लेकर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी अपने पेंशन और वाजिब हक के लिए राजभवन से लेकर शासन तक के चक्कर लगा रहे हैं किन्तु वित्त विभाग के एक अपर संचालक स्तर के अधिकारी और कुलपति सरकारी नियमों की अपने ढंग से व्याख्या करके सेवानिवृत्त लोगों को परेशान कर रहे हैं।

सेवानिवृत्त हो चुके कुछ प्रोफेसरों को अभी तक ग्रेच्युटी का लाभ नहीं मिला है न ही उनके जीपीएफ की राशि दी गई है। जबकि किसी भी कर्मचारी पर कोई भी मामला चल हो उसे 90 फीसदी पेंशन देने का तथा तत्काल जीपीएफ की राशि ग्रेच्युटी देने का प्रावधान है। लेकिन कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति और वित्त कंट्रोल अपनी मनमानी कर रहे हैं कि पूरी दबंगता से शासन के नियमों को मैं नहीं मानता हूं, एक्ट में प्रावधान है तो क्या हुआ। जब तक शासन लिखकर नहीं देता तब तक किसी का पेंशन का फिक्सेशन होगा न पेंशन मिलेगी।

ज्ञात हो कि सरकार और विश्वविद्यालय द्वारा अध्यापन कार्य में लगे प्रोफेसरों की सेवानिवृत्त की आयु 62 से 65 वर्ष कर दी गई है लेकिन वित्त कंट्रोल इसे मानने के लिए तैयार नहीं है और वे 62 साल की सर्विस को मानकर पेंशन की गणना कर रहे हैं जबकि प्रोफेसर 65 साल में रिटायर्ड हो रहे हैं। बावजूद उनकी हठधर्मिता बरकार है इससे भी आगे जाकर कुछ प्रोफेसरों से 62 साल के बाद दी गई सैलरी की रिकवरी करने की बात भी की जा रही है। वित्त अधिकारियों के रवैये और कुलपति के निर्णय नहीं लेने से सेवानिवृत्त 20 प्रोफेसर, कुछ क्लर्क और ड्राइवर पेंशन और अपने वाजिब हक से वंचित हैं।
इस संबंध में हमने विश्वविद्यालय के कुलपति गिरीश चंदेल तथा वित्त नियंत्रण उमेश अग्रवाल से उनका मत लेने की कोशिश की तो उन्होंने हमारा फोन नहीं उठाया।

प्रभावित प्रोफेसर और कर्मचारी राजभावन तथा मंत्रालय में जाकर भी अपनी गुहार लगा चुके हैं पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। लोग इसी तरह के आचरण को लेकर सुशासन पर सवाल उठा रहे है। इस संबंध में विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा एडवोकेट जर्नल से भी अभिमत लिया गया है और उन्होंने भी सेवानिवृत्त प्रोफेसर और कर्मचारियों के पक्ष में अभिमत दिया है लेकिन ये भी मानने के लिए तैयार नहीं है। न ये यूजीसी के रूल रेगुलेशन को मान रहे हंै और न ही यूनिवर्सिटी के एक्ट को मानने को तैयार हैं।
वित्त विभाग के अधिकारियों का इसी तरह का अडिय़ल रवैया सिटी बस से नया रायपुर जाने वाले अधिकारी कर्मचारियों को लेकर भी देखने को मिला है। जिसमें कहा गया है कि एक अक्टूबर से नए कर्मचारियों को बस पास की सुविधा नहीं मिलेगी। इस फैसले से कर्मचारी जगत में भारी रोष है।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर में अप्रैल 2024 के बाद सेवा निवृत हुए प्राध्यापकों/वैज्ञानिकों के पेंशन प्रकरण का 10 से 12 माह बाद भी निर्धारण नहीं हुआ है। इस संबंध में वस्तुस्थिति यह है कि वि श्वविद्यालय के लेखा नियंत्रक एवं संयुक्त संचालक ऑडिट द्वारा कुछ बातों में अनावश्यक आपत्ति ली गई है। विश्वविद्यालय द्वारा मान्य नियमों के अनुसार प्राध्यापकों की अधिवार्षिक की आयु 62 वर्ष से 65 वर्ष कर दी गई है जो कि विश्वविद्यालय के अधिनियम और परनियम के अनुसार है और इसका लाभ वैज्ञानिकों और प्राध्यापक को पूर्व में दिया भी जा चुका है।
1986 के बाद जो प्राध्यापक जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा नियुक्त हुए थे तथा इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में समायोजित हुए, उनके पीएचडी प्रकरण को लेकर भी अनावश्यक आपत्ति लगाई जा रही है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में पीएचडी अध्ययन अवकाश का निर्माण 1991 में किया ऐसी स्थिति में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से नियुक्त प्राध्यापकों के 5 वर्ष के भीतर के अध्ययन करने के अनिवार्यता स्वत: समाप्त हो जाती है, इसका एक कारण यह भी है कि 1987 में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा अपने प्रथम विज्ञापन में जिन वैज्ञानिकों का प्राध्यापकों की नियुक्ति की गई थी वह सभी बिना पीएचडी के थे और उनके नियुक्ति पत्र में पीएचडी की अनिवार्यता नहीं नहीं थी। 1989 में जिन सहायक प्राध्यापक/ वैज्ञानिकों की भर्ती की गई थी उनके सेवा शर्तों में प्रतियोगिता परीक्षा पास करने का कंडिका लिखी हुई थी जो कि भारतवर्ष में कहीं भी आयोजित नहीं की जा रही थी। इस कंडिका को पूर्व के बोर्ड में पहले ही निरस्त कर दिया गया है परंतु उसके बाद भी ऑडिट विभाग द्वारा आपत्ति लगाकर 89 बैच के प्राध्यापकों का भी पेंशन निर्धारण नहीं किया जा रहा है।
इसी तरह शासन ने मंत्रालय तथा विभागाध्यक्ष कार्यालय के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को रायपुर से नवा रायपुर अटल नगर आने-जाने के लिए दी जा रही नि:शुल्क बस पास सुविधा को लेकर बड़ा निर्णय लिया है। वित्त विभाग द्वारा जारी आदेश के अनुसार अब 1 अक्टूबर 2025 से नवनियुक्त शासकीय सेवकों को यह सुविधा उपलब्ध नहीं होगी। वित्त विभाग के इस निर्णय का मंत्रालय और संचालनालय के अधिकारियों-कर्मचारियों ने विरोध किया है। साथ ही ज्ञापन सौंपा है।
वित्त विभाग द्वारा जारी आदेश में लिखा है कि पहले नवा रायपुर अटल नगर में निवासरत कर्मचारियों को नि:शुल्क बस पास सुविधा अथवा वाहन भत्ता में से किसी एक का विकल्प चुनने की छूट दी जाती थी। इसी तरह नवा रायपुर में शासकीय आवास अथवा किराए के मकान में रहने वाले कर्मचारियों को भी रायपुर शहर आने-जाने के लिए नि:शुल्क बस सुविधा या वाहन भत्ता का विकल्प चुनने की पात्रता थी।
इस मामले में वित्त विभाग के उमेश अग्रवाल का कहना है कि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की पेंशन की प्रक्रिया को पूरी कर ली गई है लेकिन प्रोफेसर का पेंशन रुका हुआ है, ऑडिट को लेकर दिक्कतें हो रही है। उन्होंने बताया कि 1986 के जो प्रोफेसर हैं उन्हें 5 साल के अंदर पीएचडी करने को कहा गया था लेकिन ऐसा नहीं किया गया जिसके चलते ऑडिट की प्रक्रिया में अभी तकलीफ हो रही है। रजिस्टार ऑफिस में मामला अटका हुआ है।