काठमांडू। नेपाल की राजनीति में एक बार फिर बड़ा भूचाल आ गया है। संसद से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कई इमारतों को आग के हवाले कर दिया गया है। राजधानी काठमांडू समेत देशभर में प्रदर्शन की लपटें उठ रही हैं और सोशल मीडिया पर इस तबाही को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं।

देवी ने दिया था अनिष्ट का संकेत?
सोशल मीडिया पर कुछ नेपाली यूजर्स दावा कर रहे हैं कि हाल ही में मनाए गए इंद्र जात्रा पर्व के दौरान कुमारी देवी भावुक नजर आई थीं। लोगों का मानना है कि देवी की यह मायूसी किसी बड़े अनिष्ट का संकेत थी। यही वजह है कि अब विरोध-प्रदर्शन और हिंसा को लोग धार्मिक एंगल से भी जोड़ने लगे हैं।
कुमारी देवी, जिन्हें कुमारी मज्जू देवी भी कहा जाता है, नेपाल की जीवित देवी मानी जाती हैं। त्योहारों में जब उन्हें दर्शन के लिए निकाला जाता है तो बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं।
2015 के भूकंप से भी जोड़ा गया था देवी का प्रकोप
यह पहली बार नहीं है जब कुमारी देवी का नाम किसी आपदा से जोड़ा जा रहा है। साल 2015 में नेपाल में आए विनाशकारी भूकंप के बाद भी कई लोगों ने दावा किया था कि यह देवी के क्रोध का परिणाम था। उस भूकंप में करीब 9 हजार लोगों की मौत हुई थी और लाखों लोग बेघर हो गए थे। हालांकि हैरानी की बात यह थी कि कुमारी देवी के आवास को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था।

कौन होती हैं कुमारी देवी?
नेपाल में सदियों से कुमारी देवी को चुनने की परंपरा चली आ रही है। जिस तरह तिब्बत में दलाई लामा को चुना जाता है, उसी तरह नेपाल में कुमारी देवी का चयन होता है।
- जिस बालिका में देवी स्वरूप के गुण माने जाते हैं, उसे कई कठोर परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है।
- चयनित होने के बाद वह जीवित देवी बन जाती है और पूरे नेपाल की संरक्षिका मानी जाती है।
- कुमारी देवी का पद तब तक कायम रहता है जब तक उनके मासिक धर्म शुरू नहीं हो जाते। इसके बाद नई कुमारी देवी का चयन किया जाता है।
- पद से हटने के बाद पूर्व कुमारी देवी को आजीवन पेंशन और सम्मान दिया जाता है।
नेपाल आज संकट में
राजनीतिक अस्थिरता और बढ़ती हिंसा के बीच अब आम लोगों में यह चर्चा है कि क्या वाकई कुमारी देवी की मायूसी आने वाली आपदाओं का संकेत है या यह सिर्फ संयोग है। हालांकि इतना तय है कि नेपाल इस समय फिर से एक बड़े राजनीतिक और सामाजिक संकट से गुजर रहा है।