छत्तीसगढ़ कला और संस्कृति की वैभव – विरासत पर फूहड़ आयोजनों का कब्जा

छत्तीसगढ़ कला और संस्कृति की वैभव - विरासत पर फूहड़ आयोजनों का कब्जा

कला और संस्कृति के क्षेत्र में एक लंबी परंपरा और विरासत बनाना बहुत लंबे श्रम का कार्य है। बरसों बरस बीत जाते हैं और अनेक लोग इस परंपरा की स्थापना में निरंतर साधना करते हैं, तब जाकर कला की एक समृद्ध परंपरा तैयार होती है। लेकिन व्यावसायिक लोभ और सरकारी कमजोरी के चलते कलाहीन और संस्कृति की सतही समझ के साथ जो लोग कला और संस्कृति की दुनिया में दाखिल होते हैं तो समृद्ध परंपरा कैसे नष्ट होती है, इसका उदाहरण भी छत्तीसगढ़ है। छत्तीसगढ़ का रायगढ़ अपने कत्थक घराना और कला-संस्कृति के लिए जाना जाता है। यहां के राजा चक्रधर सिंह जो कला, संगीत, साहित्य के मर्मज्ञ थे और कत्थक नृत्य के जानकार थे, उनकी स्मृति में चालीस सालों से गणेश चतुर्थी के अवसर पर चक्रधर समारोह का आयोजन किया जाता है।

राजा चक्रधर के प्रयासों और प्रोत्साहन के फलस्वरूप ही यहां संगीत तथा नृत्य की नई शैली विकसित हुई। स्वतंत्रता पूर्व से ही गणेशोत्सव के समय यहां सांस्कृतिक आयोजन की एक समृद्ध परंपरा विकसित हुई, जिसने धीरे-धीरे एक बड़े आयोजन का रूप ले लिया। यह आयोजन इतना वृहद था कि राजा चक्रधर जी के देहावसान के बाद उनकी याद में ‘चक्रधर समारोह के नाम से यहां के संस्कृतिकर्मियों तथा कलासाधकों ने वर्ष 1985 से दस दिवसीय सांस्कृतिक उत्सव की शुरुआत की। अविभाजित मध्यप्रदेश सरकार की उस्ताद अल्लाहद्दीन संगीत नाट्य अकादमी स्थानीय कलाकारों, साहित्यकारों की भागीदारी से इसका आयोजन करती थी। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद यह समारोह दस दिवसीय हो गया। यहीं से इस समारोह के गरिमा और मूल उद्देश्य के खत्म होने की शुरुआत हो गई। कला और संस्कृति की सामान्य जानकारी से शून्य लोग जो सरकार और प्रशासन के करीबी थे, वे आयोजन की पूरी रूपरेखा तैयार करने लगे। नए आयोजकों पर यह कथित आरोप लगने लगे हैं कि नृत्य ,गायन और संगीत के अखिल भारतीय स्तर के श्रेष्ठ कलाकारों के साथ स्थानीय नई प्रतिभाओं का समन्वय स्थापित करने की अपेक्षा वे सामान्य से अपने करीबी कलाकारों को अवसर देने लगे हैं और इसी बीच चंदा उगाही की खबरें भी आने लगीं हैं। इस तरह आयोजन संगीत, कला और संस्कृति के गिरते स्तर के साथ ही आर्थिक आरोप में भी घिर गया है। आयोजन समारोह में सिनेमा से लेकर कथित ऐसे पॉपुलर लोगों को आमंत्रित किया जाने लगा है, जिनका कला और संगीत से कोई दूर-दूर का नाता नहीं है। पापुलर कल्चर का नया मंच कवि सम्मेलन भी इसमें जुड़ गया है। कहा जा रहा है कि इस बार कुमार विश्वास को बुलाया जा रहा है। कुमार विश्वास लोकप्रिय कवि हैं लेकिन साहित्यिक कवि नहीं हैं। कला और संगीत से तो उनका दूर-दूर तक नाता नहीं है।

दरअसल ऐसे आयोजनों में यह निरर्थक कूतर्क दिया जाता है कि इस तरह के लोकप्रिय कलाकारों को बुलाने से अधिक दर्शक या श्रोता आएंगे, जिससे कार्यक्रम भव्य होगा। लेकिन यहां यह बात रेखांकित किया जाना जरूरी है कि मूल उद्देश्य आयोजन को भव्य या लोकप्रिय बनाना नहीं है बल्कि एक पिछड़े इलाके में संगीत और कला खास करके शास्त्रीय गायन और नृत्य जैसी शैलियों जो आज लुप्त होने की कगार पर हैं, उन्हें केंद्र में लाया जाए और इस क्षेत्र में नई प्रतिभाओं को सामने लाया जाए। शास्त्रीय संगीतके लिए दर्शकों या श्रोता कम होते हैं लेकिन इससे सरकार की और आयोजन से जुड़े लोगों की जिम्मेदारी कम नहीं हो जाती है। शास्त्रीय संगीत और गायन से जुड़े कार्यक्रमों के अलावा कोई अन्य कार्यक्रम कवि सम्मेलन आदि इस आयोजन में करने से शास्त्रीय संगीत से जुड़े आयोजन के मूल उद्देश्य की पवित्रता ही खत्म हो जाएगी। सबसे बड़े अचरज की बात तो यह है कि राजा चक्रधर सिंह के परिवार से जुड़े लोग भी इस विडंबना और विसंगति को नहीं देख पा रहे हैं। राजा चक्रधर सिंह कथक नृत्य और शास्त्रीय संगीत के प्रति समर्पित थे। फूहड़ कवि सम्मेलन और फिल्मी गानों के प्रति उनका रुझान नहीं था। आयोजन के लिए छत्तीसगढ़ सरकार को देश के विभिन्न कला और संस्कृति से जुड़ी अकादमियों और संस्कृति विभाग से संपर्क करके स्तरीय कलाकारों को बुलाना चाहिए और अधिक से अधिक शास्त्रीय संगीत और कला से जुड़ी स्थानीय प्रतिभाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना चाहिए। लेकिन छत्तीसगढ़ में आलम यह है कि सरकार अपनी दूसरी तमाम जनकल्याणकारी योजनाओं की जरूरी व्यस्तताओं के के कारण संस्कृति को प्राथमिकता में नहीं देख पाती है और इस तरह की गतिविधियों को संस्कृति विभाग के तीसरे क्रम के अफसर या बाबू लोग ही अंजाम देते हैं और जिसका परिणाम आयोजन की ऐसी दुर्गति से होता है। स्थानीय लोगों और पत्रकारों के इस आरोप में कुछ तो सच्चाई है कि कलाकारों और संगीत नृत्य से जुड़ी सामग्री पर खर्च की अपेक्षा बजट का बड़ा बल्कि बहुत बड़ा हिस्सा खानपान और टेंट आदि पर खर्च हो जाता है जिससे कि आयोजन का उद्देश्य ही खत्म हो जाता है। छत्तीसगढ़ी गायक नितिन दुबे को तय राशि दिए जाने के वादे के उपरांत बाद में आधी रकम देने का प्रस्ताव दिया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। नितिन दुबे के तय राशि से कम लेने से मना करने पर उन्हें कार्यक्रम से बाहर कर दिया गया।

यह भी कम अचरज और दुर्भाग्य की बात नहीं है कि रायगढ़ में लगभग 15 करोड़ खर्च करके संस्कृति भवन बनाया गया है लेकिन उसमें आयोजन नहीं किए जाते और भवन खंडहर में बदल रहा है। यह आयोजन रामलीला मैदान में होता है। रामलीला मैदान जो कि खेल का मैदान है लेकिन कहा जाता है कि वहां इस समारोह के बाद मैदान खिलाडिय़ों के खेलने लायक नहीं रह जाता है। समारोह में सामाजिक-राजनीतिक प्रभावशाली और जुगाड़ लोगों की एंट्री हो गई जिनका कला, साहित्य और संगीत से दूर-दूर का नाता नहीं है। इस कारण धीरे-धीरे इस आयोजन की गरिमा खत्म होने लगी। एक गंभीर सांस्कृतिक समारोह सरकारी बाबुओं की सोच की भेंट चढ़ गया। स्थानीय लोगों और कलाकारों की उपेक्षा भी धीरे-धीरे दिखाई देने लगी। चक्रधर समारोह छत्तीसगढ़ का एकमात्र ऐसा समारोह है जो किसी कला मर्मज्ञ व्यक्ति के नाम पर आयोजित होता है।

पहले यहां देशभर के ख्यातिनाम नर्तक, संगीत के जानकार आते थे। नृत्य-संगीत से जुड़े विषय पर सेमीनार होता था। चक्रधर समारोह का अपना ऐतिहासिक महत्व भी है। किसी समय यह आयोजन कला के स्तर और गंभीरता के कारण देश भर में प्रसिद्ध था । प्रसिद्ध संगीतज्ञ कुमार गंधर्व और हिंदी के पहले छायावादी कवि मधुकर पांडेय का नाम रायगढ़ से जुड़ा है ।
इस समय छत्तीसगढ़ में चक्रधर समारोह को लेकर सियासी बवाल मच गया है। आम आदमी पार्टी ने भाजपा सरकार पर छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर के अपमान का आरोप लगाते हुए बड़ा आंदोलन छेडऩे का ऐलान किया है। पार्टी ने घोषणा की है कि पूरे प्रदेश के जिला मुख्यालयों में भाजपा मंत्री ओपी चौधरी और कवि कुमार विश्वास का पुतला दहन किया जाएगा। आप प्रदेश अध्यक्ष गोपाल साहू ने कहा कि 1985 से शुरु हुआ चक्रधर समारोह छत्तीगढ़ की सांस्कृतिक पहचान है, लेकिन मौजूदा सरकार ने इसे राजनीतिक दिखावे का मंच बना दिया है। उनका आरोप है कि इस बार समारोह में स्थानीय कवियों और कलाकारों की उपेक्षा कर बाहरी व्यक्तियों को तरजीह दी। गोपाल साहू ने कहा कुमार विश्वास अपनी शर्तों पर आते हैं और यह भी तय करते हैं कि समारोह में किसे बुलाना है। सवाल यह है कि क्या कुमार विश्वास भाजपा सरकार में मंत्री हैं या भाजपा के ब्रांड एंबेसडर।

छत्तीसगढ़ में यह घटना एक बहस का विषय बन गई है कि क्या छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा को बढ़ावा देने वाले आयोजनों में स्थानीय कलाकारों को उचित सम्मान और पारिश्रमिक या अवसर मिल रहा है? जो समारोह कभी शास्त्रीय और स्थानीय कला को प्रोत्साहित करने के लिए जाना जाता था, अब व्यावसायिक ग्लैमर की ओर बढ़ गया है। इस तरह पहले भी राज्योत्सव में फिल्मी कलाकारों को मुंबई से बुलाने पर भी विवाद हो चुका है। यह समारोह इसी सोच और अनुशासन के साथ कत्थक नृत्य, रंगमंच को लेकर प्रारंभ किया गया था। लेकिन अबआम जन में इस बात को लेकर आक्रोश है कि लोकप्रियता के चक्कर में अब यह एक तरह की खिचड़ी समारोह में तब्दील होता जा रहा है। जिस तरह संस्कृति के नाम पर भजन संध्या होने लगी है, उसी तरह अब कत्थक घराने का यह आयोजन सस्ते, चालू और फूहड़ आयोजन की भेंट चढ़ गया है।

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