कटहल: एक व्यंग्यपूर्ण सामाजिक कॉमेडी जो राष्ट्रीय पुरस्कार की हकदार

फिल्म “कटहल: ए जैकफ्रूट मिस्ट्री” पर आधारित है, जो 71वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ हिंदी फिल्म का खिताब जीत चुकी है। अशोक मिश्रा एक प्रशंसित नाटककार, गीतकार और पटकथा लेखक हैं। वह नसीम (1996) और समर (1999) के लिए सर्वश्रेष्ठ पटकथा के लिए दो बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता हैं।उन्हें मध्यप्रदेश के खंडवा में प्रतिष्ठित राष्ट्रीय किशोर कुमार सम्मान से सम्मानित भी किया जा चुका है ।श्याम बेनेगल से जुड़े अशोक मिश्रा NSD से पास आऊट है । उन्होंने वेलडन अब्बा , वेलकम सज्जनपुर जैसी फिल्म लिखी । छत्तीसगढ़ की राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित फिल्म भूलन द मेज़ में उन्होंने अभिनय किया है । वे कटहल फिल्म के निर्देशक यशस्वी के पिता हैं ।वे कहते हैं
यह फिल्म मेरे बेटे यशोवर्धन मिश्रा की पहली निर्देशित फीचर फिल्म है, और परिवार के बहुत करीब होने के कारण इसकी सफलता हमें व्यक्तिगत रूप से गर्व प्रदान करती है।
यह फिल्म न केवल मनोरंजक है, बल्कि समाज की विसंगतियों पर गहरा कटाक्ष करती है। यह 19 मई 2023 को नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई थी, और अब इसे राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिलना एक सपने जैसा अनुभव है।

फिल्म की कहानी: व्यंग्य से भरा एक रहस्यमयी कथानक

फिल्म उत्तर प्रदेश के एक काल्पनिक कस्बे मोबा की पृष्ठभूमि में सेट है, जहां राजनीतिक और सामाजिक हलचलें एक अनोखे अंदाज में प्रस्तुत की गई हैं। कहानी की शुरुआत एक विधायक मुन्नालाल पटेरिया के बाग से दो दुर्लभ कटहल की चोरी से होती है, जिसे लेकर पूरा पुलिस थाना सक्रिय हो जाता है। लेकिन असली रहस्य एक माली की गुमशुदा बेटी के अपहरण से जुड़ा होता है। पुलिस इंस्पेक्टर महिमा बसोर को कटहल की चोरी की जांच सौंपी जाती है, जो धीरे-धीरे बड़े सामाजिक मुद्दों की ओर ले जाती है। फिल्म में कई मोड़ आते हैं, जो इसे बार-बार देखने लायक बनाते हैं। कटहल जैसे मामूली फल की चोरी को बड़े अपराध की तरह दिखाकर, फिल्म प्रशासन की गलत प्राथमिकताओं पर सवाल उठाती है—जहां एक विधायक के फल के लिए पूरा सिस्टम लग जाता है, लेकिन गरीब की बेटी की गुमशुदगी पर कोई ध्यान नहीं देता। यह हल्के-फुल्के हास्य के माध्यम से गंभीर विवेचना प्रदान करती है, बिना किसी आदर्श स्थापना के प्रयास के।
कटहल का शीर्षक ही व्यंग्यपूर्ण है—यह एक ऐसा फल है जो शाकाहारियों को नॉन-वेज का मजा देता है, और फिल्म में यह सामाजिक विसंगतियों का प्रतीक बन जाता है। कथा कहने का तरीका ताजा और प्रभावी है, जो राजनीति के जीवन पर प्रभाव को हल्के अंदाज में उजागर करता है।


दमदार कास्ट और क्रू: अभिनय की जीवंतता

फिल्म की सफलता में कलाकारों और क्रू का योगदान अहम है। मुख्य भूमिका में सान्या मल्होत्रा इंस्पेक्टर महिमा बसोर के रूप में नजर आती हैं, जो निचली जाति की महिला पुलिस अधिकारी हैं और जातीय भेदभाव का सामना करती हैं। उनकी ईमानदार और दमदार एक्टिंग को क्रिटिक्स ने खूब सराहा है। अनंत वी जोशी कांस्टेबल सौरभ द्विवेदी के रोल में हैं, जो महिमा के प्रेमी हैं और ऊंची जाति से ताल्लुक रखते हैं—यह जातीय तनाव को उजागर करता है। विजय राज विधायक मुन्नालाल पटेरिया की भूमिका में हैं, जहां वे कभी-कभी ओवरएक्टिंग करते नजर आते हैं, लेकिन कुल मिलाकर प्रभावशाली हैं। राजपाल यादव पत्रकार अनुज संघवी के रूप में न्याय की दिशा दिखाते हैं, जबकि रघुबीर यादव, ब्रिजेंद्र कला, नेहा सराफ, गुरुपाल सिंह, एकलव्य तोमर, रवि झांकल, सतीश शर्मा और अंबरीश सक्सेना जैसे कलाकार अहम किरदार निभाते हैं। सभी का अभिनय सहज और जीवंत है, जो फिल्म को और मजबूत बनाता है।

निर्देशन यशोवर्धन मिश्रा का है, जिनकी यह पहली फीचर फिल्म है। प्रोड्यूसर्स में गुनीत मोंगा, अचिन जैन (सिख्या एंटरटेनमेंट), शोभा कपूर और एकता कपूर (बालाजी मोशन पिक्चर्स) शामिल हैं। संगीत राम सम्पत का है, जो बुंदेली लोक धुनों से प्रेरित है। गीत मेरे (अशोक मिश्रा ) द्वारा लिखे गए हैं, जिन्हें सोना महापात्रा और रितु राज ने आवाज दी है। सिनेमेटोग्राफी हर्षवीर ओबराय की है, एडिटिंग प्रेरणा सहगल की, और आर्ट डायरेक्शन प्रोनीता पाल का। अपूर्व मिश्रा और ऋत्विक जोशी ने स्क्रिप्ट में मेहनत की। परिवार की ओर से मेरी पत्नी सीमा मिश्रा और बहू नियति जोशी ने हमें संभाला। स्पॉट बॉयज, लाइट मैन और पूरी टीम को धन्यवाद।

थीम्स और सामाजिक संदेश: व्यंग्य से सच्चाई का आईना

यह व्यंग्यात्मक सामाजिक कॉमेडी है, जो पावर गेम, भ्रष्ट प्रशासन, जातीय भेदभाव और पुलिस की गलत प्राथमिकताओं पर कटाक्ष करती है। फिल्म दिखाती है कि कैसे सिस्टम ताकतवरों की सेवा में लगा रहता है, जबकि आम आदमी की समस्याएं नजरअंदाज हो जाती हैं। महिमा को निचली जाति की होने के कारण भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जो सामाजिक तनाव को उजागर करता है। हंसी के साथ रियल सोशल मुद्दों को छुआ गया है, जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है। फिल्म कोई आदर्श नहीं स्थापित करती, बल्कि आसपास की घटनाओं की हल्की विवेचना प्रस्तुत करती है। क्रिटिक्स ने इसकी फ्रेश स्टोरी, शानदार कहानी और सान्या की एक्टिंग को सराहा है। यह एक ऐसी फिल्म है जो मनोरंजन के साथ महत्वपूर्ण संदेश देती है, और यही कारण है कि इसे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।

राष्ट्रीय पुरस्कार और प्रतिक्रियाएं: जश्न का माहौल

71वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की घोषणा 1 अगस्त 2025 को दिल्ली के नेशनल मीडिया सेंटर में जूरी चेयरमैन आशुतोष गोवारिकर ने की। यह पुरस्कार 2023 में रिलीज हुई फिल्मों के लिए हैं, और “कटहल” को सर्वश्रेष्ठ हिंदी फीचर फिल्म का अवॉर्ड मिला। निर्देशक यशोवर्धन मिश्रा ने कहा, “मुझे मेरे निर्माता गुनीत मोंगा का फोन आया—वे भी उतने ही हैरान थे जितना मैं हूं। मुझे अभी यकीन नहीं हो रहा। मेरी पहली फिल्म का यह पुरस्कार जीतना किसी सपने जैसा है। हमने बस एक ऐसी फिल्म बनाई जिसे हर कोई देख सके और आनंद ले सके।” सान्या मल्होत्रा ने कहा, “मुझे बहुत गर्व है कि ‘कटहल’ को यह अवॉर्ड मिला। ये कहानी मेरे लिए खास रही है, और मैं टीम की आभारी हूं। फिल्म व्यंग्य से जरूरी सामाजिक सच्चाइयों को दिखाती है।” उन्होंने दुर्लभ BTS तस्वीरें शेयर कीं।

प्रोड्यूसर एकता कपूर ने इंस्टाग्राम पर लिखा, “थैंक यू। जय माता दी। मैं ज्यूरी का धन्यवाद करती हूं। यह सम्मान हमारे काम की पसंद को पहचान देता है।” गुनीत मोंगा ने कहा, “हर बार जब भारत के दिल से निकली कहानी सम्मानित होती है, तो यह उन सभी आवाजों की जीत है जो सुने जाने लायक हैं। ये जीत हर कहानीकार के नाम है।” अनंत विजय जोशी ने कहा, “यह बहुत संतोषजनक लगता है।” दर्शकों और समीक्षकों ने इसे समान रूप से पसंद किया, और सोशल मीडिया पर जश्न का माहौल है—कई ने इसे OTT की जीत बताया।

खास बात यह है कि सान्या मल्होत्रा “सैम बहादुर” और “जवान” जैसी अन्य फिल्मों का भी हिस्सा रही हैं, जिन्हें अलग-अलग कैटेगरी में पुरस्कार मिले।
व्यक्तिगत टिप्पणी: परिवार की खुशी और योगदान- अशोक मिश्रा – देश के जाने माने फिल्म लेखक , रंगकर्मि अशोक मिश्र जिनकी लिखी फिल्म
हमारे घर में खुशी का माहौल है जब मीडिया ने फ्लैश किया कि यशोवर्धन की पहली फिल्म को यह पुरस्कार मिला। प्रोड्यूसर्स गुनीत मोंगा, अचिन जैन, शोभा कपूर और एकता कपूर को बधाई, जिन्होंने इस लीक से हटकर व्यंग्य-हास्य भरी सामाजिक कहानी को नेटफ्लिक्स तक पहुंचाया। फिल्म को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली। अभिनेताओं, संगीतकार, क्रू और दर्शकों का तहे दिल से शुक्रिया। देश-विदेश के फिल्म समीक्षकों और जूरी सदस्यों का आभार। हिप हिप हुर्रे!
कुल मिलाकर, “कटहल” एक बेहतरीन फिल्म है, जिसका कथानक, निर्देशन और अभिनय दक्षता सराहनीय है। यह राजनीति और समाज की सच्चाइयों को हास्य से उजागर करती है, और राष्ट्रीय पुरस्कार इसकी गुणवत्ता का प्रमाण है। नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध यह फिल्म हर किसी को देखनी चाहिए

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