रायपुर। नागपुर से रायपुर आकर दाई का काम करने वाली राधाबाई किस तरह गांधी जी के आंदोलन से प्रभावित होकर स्वतंत्रता आंदोलन और समाज सुधार के काम की अग्रणी नायिका बनती है , इस संघर्ष की कहानी को सुमेधा अग्रहरि ने बेहतर तरीक़े से प्रस्तुत किया ।रायपुर के वृंदावन हॉल को नाटक के अनुरूप ढालकर सीमित संसाधनों में अग्रज नाट्य दल द्वारा प्रस्तुत इस नाटक में भावनात्मक दृश्यों और सशक्त संवादों ने दर्शकों को गहरे स्तर पर प्रभावित किया। रायपुर में दाई का काम करते हुए समाज में क्रांतिकारी बदलाव लाती हैं। वे महिलाओं को संगठित कर सफाई अभियान चलाती है, बच्चियों की शिक्षा सुनिश्चित करती हैं, शराब दुकानों का विरोध करती हैं और किसबिन नाचा जैसे आयोजनों में लड़कियों की भागीदारी बंद करवाती हैं। उनका संघर्ष जेल तक जाता है, लेकिन वे राजनीतिक बंदियों को नैतिक समर्थन देने से पीछे नहीं हटतीं। राधाबाई की मृत्यु के बाद उनका तात्यापारा स्थित घर एक अनाथाश्रम को दान कर दिया गया यह सेवा का उदाहरण है ।डॉ. राधाबाई का जन्म 1875 में नागपुर में हुआ था। वे 1918 में रायपुर आई और दाई का काम करने लगीं।

1920 में, जब महात्मा गांधी पहली बार रामपुर आए, तो वे उनसे प्रेरित हुई और स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गई। डॉ. राधाबाई ने 1930 से 1942 तक सभी सत्याग्रहों में भाग लिया और कई बार जेल भी गई। उन्होंने स्वदेशी, राष्ट्रीय एकता, और अस्पृश्यता निवारण जैसे आदोलनों में भी सक्रिय भूमिका निभाई। डॉ. राधाबाई ने सफाई कामगारों के. बच्चों की शिक्षा और सेवा में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। 2 जनवरी, 1950 को उनका निधन हो गया। डॉ. राधाबाई को रायपुर के लोग डॉक्टर के रूप में जानते थे, जो उनकी समाज सेवा और स्वतंत्रता आदोलन में योगदान के कारण था। रायपुर में डॉ राधा बाई के नाम पर पुरानी बस्ती में एक महाविद्यालय है ।

स्वतंत्रता सेनानी राधाबाई के संघर्षपूर्ण जीवन पर आधारित नाटक ‘राधाबाईः एक स्वतंत्रता सेनानी’ का मंचन सोमवार शाम वृंदावन हॉल में हुआ। अग्रज नाट्य दल द्वारा प्रस्तुत इस नाटक का लेखन और निर्देशन सुमेधा अग्रश्री ने किया। भावनात्मक दृश्यों और सशक्त संवादों से भरपूर इस नाट्य प्रस्तुति ने दर्शकों को गहरे स्तर पर प्रभावित किया। नाटक में राधाबाई नागपुर से रायपुर तक के संघर्ष और रायपुर में दाई का काम करते हुए समाज में क्रांतिकारी बदलाव लाती हैं।

डॉ. राधाबाई के बारे में कुछ मुख्य बातें:
जन्म: 1875, नागपुर
रायपुर आगमन: 1918
स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका: 1920 से 1942 तक सभी आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी
जेल यात्राएं: कई बार जेल गईं
सामाजिक कार्य: सफाई कामगारों के बच्चों की शिक्षा और सेवा
निधन: 2 जनवरी, 1950

वे महिलाओं को संगठित कर सफाई अभियान चलाती है, बच्चियों की शिक्षा सुनिश्चित करती हैं, शराब दुकानों का विरोध करती हैं और किसबिन नाचा जैसे आयोजनों में लड़कियों की भागीदारी बंद करवाती हैं। उनका संघर्ष जेल तक जाता है, लेकिन वे राजनीतिक बंदियों को नैतिक समर्थन देने से पीछे नहीं हटतीं। राधाबाई की मृत्यु के बाद उनका तात्यापारा स्थित घर एक अनाथाश्रम को दान कर दिया गया यह सेवा का उदाहरण है।
नाटक के संवाद या कहें कुछ पंच लाइन दर्शकों को बार-बार ताली बजाने के लिए प्रेरित करती है । “आदमी के शरीर पर पड़ा थप्पड़ असल में उसकी नाक पर पड़ता है। औरत के शरीर पर पड़ा थप्पड़ उसके मन पर। जिस दिन आदमी अपनी नाक के साथ औरत के मन की भी परवाह करने लगेगा, उस दिन सारा टंटा खत्म हो जाएगा।”
राधाबाई नाटक में सभी आयु वर्ग के कलाकारों के साथ एक ही परिवार के कलाकारों की भी हिस्सेदारी रही । नाटक में वाणी करवंदे, अरुषि वर्मा, संभवी साहू, भूनेश्वरी साहू, रीमा जोशी, सुनीता सोनी, संगीता सिंह, प्रियंका पडोले, रीना मिश्रा, मंगेश पडोले, राकेश सोनी और अंजन तथा मेहमान कलाकारों के रूप में अरुण भाँगें और सुनील चिपडे भी अपनी संक्षिप्त किन्तु प्रभावी भूमिका निभाई ।


नाटक के बीच में संगीत का बेहतर प्रयोग हुआ । बच्चों की एक्टिंग सराही गई।
हिंदी के साथ छत्तीसगढ़ी और मराठी भाषा का भी बेहतर प्रयोग हुआ ।
स्टेज में आकर साहित्यकार और रंगमंच से जुड़े लोगों ने दी अपनी राय व्यक्त की सुभाष मिश्रा ने कहा कि अनाम स्वतंत्रता सेनानियों को ढूंढ़कर नायक तैयार करने की पहल अच्छी है, लेकिन और रिसर्च करने की जरूरत है. ताकि नाटक में और बहुत सारी बातों का समावेश किया जा सके । उन्होंने सुमेधा और रंगकर्मियों से छत्तीसगढ़ के बहुत से अनाम हीरो की कहानी को आगे लाने कहा ।
रंगमंच से जुड़े संस्कृति कर्मी , पत्रकार राजकुमार सोनी ने कहा कि ये मंच नाटक के लिए नहीं था। कलाकारों को थोड़ा और मांझने की ज़रूरत है । कहानीकार जया जादवानी ने कहा कि जब हर क्षण में कलाकार प्रवेश कर रहे थे तो थोड़ा गैप हो रहा था। उनकी भाव-भंगिमा केरेक्ट से बाहर आकर सामान्य हो जाती है । डॉ कुंजबिहारी शर्मा , राजेश गनोदवाले ने भी शुभकामनाएँ दी ।
शुभ्रा दुबे ने अपने विचार रखे । चूँकि वृंदावन हॉल नाट्य प्रस्तुति के लिए नहीं बना है फिर रंगकर्मियों को शहर के बीचोंबीच ऐसी अच्छी और न्यूनतम शुल्क पर उपलब्ध यह जगह बेहतर विकल्प लगती है यही वजह है कि नाटक के लायक स्टेज नहीं होने के बावजूद जुगाड़ संस्कृति से नाटक की प्रस्तुति हुई और अच्छी हुई । माइक का अभाव में संवाद सुनने में थोड़ी सजगता लगी ,विंग्स नहीं होने और स्टेज खुले होने के कारण साड़ी काले परदो की आड़ का उपयोग करना पड़ा । सुमेधा अग्रहरि ने राधा बाई को लेकर उपलब्ध जानकारी के आधार पर बेहतर स्क्रिप्ट तैयार की और कम समय में घरेलू स्त्रियों को लेकर एक अच्छी प्रस्तुति दी ।