Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – भारत का रहने वाला हूँ, भारत की बात सुनाता हूँ

-सुभाष मिश्र

मनोज कुमार की एक फिल्म पूरब और पश्चिम का चर्चित गाना है-
है प्रीत जहाँ की रीत सदा, मैं गीत वहां के गाता हूं
भारत का रहने वाला हूँ,भारत की बात सुनाता हूँ
काले-गोरे का भेद नहीं,हर दिल से हमारा नाता है
कुछ और न आता हो हमको,हमें प्यार निभाना आता है।।

दलगत राजनीति से उपर उठकर भारत का पक्ष रखने के लिए जो प्रतिनिधि मंडल विदेशों में गया था। उससे पूरी दुनिया में एकजुटता का संदेश सब भारत के पक्ष को एक आवाज में बता रहे थे। सभी सांसदों ने पाकिस्तान को आतंक का पर्याय बताया। डेलीगेशन के साथ सबसे अच्छी बात यह भी हुई कि इस्लामिक मुल्क जिन्हें पाकिस्तान धर्म के नाम पर बरगला रहा था, वे भी भारत के समर्थन में आए। यहां तक कि कोलंबिया ने पाकिस्तान के पक्ष में अपना स्टेंड बदला और भारत के पक्ष में समर्थन दिया। जब पक्ष-विपक्ष के सांसद भारत के लोकतंत्र की विविधता का परिचय देते हुए भारत की आवाज बनकर लोकतंत्र की मजबूती की बात कर रहे थे और आतंकवाद को लोकतांत्रिक देश के लिए कैंसर बता रहे थे, तब भारत के भीतर घरेलू राजनीति में आपरेशन सिंदूर को लेकर अलग-अलग स्वर सुनाई दे रहे थे। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बात करते हुए नरेंदर सरेंडर की बात कही। टीवी चैनलों पर लगातार पक्ष-विपक्ष के तीर पहलगाम घटने के अनसुलझे पहलुओं को एक दूसरे से आहत कर रहे थे। कांग्रेस का तेवर इस मामले में आक्रामक रहा, जिसे बीजेपी ने कांग्रेस के पाकिस्तानी करण की बात कही। डेलिगेशन में गए सांसदों का अमेरिकी और यूरोपीय देशों में भ्रमण के दौरान यह भी तर्क था कि जब आप लादेन को खोजते हुए 12 हजार मीटर दूर मारते हैं तो हम पाकिस्तान में 100 किमी दूर जाकर क्यों नहीं आतंकियों को मार सकते। डेलिगेशन ने विदेशी जमीन पर जाकर बताया कि पाकिस्तान में जनरल राज करते हैं वहां लोकतंत्र नहीं है। सेना के लिए आतंकवादी उनके फ्रेंड है। सभी 33 देशों में गए 7 अलग-अलग डेलिगेशन ने बताया कि सभी देशों ने एक स्वर में आतंकवाद की निंदा की। सांसदों ने यह भी कहा कि सभी लोकतांत्रिक देशों को आतंकवाद के खिलाफ एक साथ खड़े होने की जरूरत है, तभी आतंकवाद का सफाया किया जा सकता है।
पाकिस्तान के आतंकवादी ठिकानों पर हमले के लिए आपरेशन सिंदूर के तहत की गई कार्रवाई और भारत का पक्ष रखते हुए पाकिस्तान की कारगुज़ारियों, पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवादी गतिविधियों को उजागर करने के लिए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल लौट आया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रतिनिधिमंडल से अनौपचारिक मुलाक़ात कर बातचीत की। इस अभियान का उद्देश्य वैश्विक समुदाय को भारत की स्थिति से अवगत कराना और आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक सहमति बनाना था। इस प्रतिनिधिमंडल में 59 सदस्यों का समूह था जिसमें 51 नेता शामिल थे। प्रतिनिधिमंडल में सात अलग-अलग टीमें बनाई गईं, जो 32 देशों और यूरोपीय संघ में गईं। इसमें विभिन्न दलों के सांसद शामिल थे, जो भारत की एकजुटता को दर्शाते थे। हालांकि, कांग्रेस द्वारा सुझाए गए चार नामों में से केवल एक को चुना गया। यह यात्रा 22 मई से 5 जून 2025 तक की गई। यात्रा का मुख्य उद्देश्य पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद, विशेष रूप से पहलगाम हमले (जिसमें 27 लोग मारे गए) जैसे आतंकी हमलों को उजागर करना। ऑपरेशन सिंदूर की सफलता, जिसमें भारत ने सीमा पार आतंकी ठिकानों को नष्ट किया, को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करना। आतंकवाद के खिलाफ भारत की जवाबी कार्रवाई की आवश्यकता को रेखांकित करना।
यात्रा के दौरान प्रतिनिधिमंडलों ने विदेशी नेताओं, सांसदों, थिंक टैंकों और मीडिया से मुलाकात की। चर्चा का मुख्य फोकस पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों और उनकी गतिविधियों का खुलासा करना। भारत की कूटनीतिक और सैन्य कार्रवाई (ऑपरेशन सिंदूर) को आतंकवाद के खिलाफ एक आवश्यक कदम के रूप में प्रस्तुत करना था। वैश्विक समुदाय से आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने की अपील की। पाकिस्तान ने भारतीय प्रतिनिधिमंडल की मलेशिया यात्रा को रद्द करने की कोशिश की थी, लेकिन भारत ने इसे सफलतापूर्वक पूरा किया।
प्रतिनिधिमंडल ने अपनी यात्रा पूरी करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी रिपोर्ट सौंपी। प्रतिनिधिमंडल के अनुसार उन्हें वैश्विक मंच पर पाकिस्तान की आतंकवादी गतिविधियों को उजागर करने में सफलता मिली। कई देशों ने भारत के दृष्टिकोण का समर्थन किया। ऑपरेशन सिंदूर को एक प्रभावी जवाबी कार्रवाई के रूप में मान्यता मिली, जिसने आतंकी ठिकानों को नष्ट किया। भारत की कूटनीतिक ताकत और सर्वदलीय एकजुटता को वैश्विक स्तर पर सराहा गया। कुछ देशों में भारत के पक्ष को और मजबूती से रखने के लिए थिंक टैंकों और मीडिया के साथ गहन चर्चा हुई।
यदि इस यात्रा का विश्लेषण किया जाये तो भारत ने कूटनीतिक स्तर पर अपनी स्थिति को मजबूत किया और पाकिस्तान को वैश्विक मंच पर अलग-थलग करने में सफल रहा। सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने भारत की एकता और आतंकवाद के खिलाफ दृढ़ संकल्प को दर्शाया। ऑपरेशन सिंदूर को न केवल सैन्य, बल्कि कूटनीतिक जीत के रूप में प्रस्तुत किया। वैश्विक स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ सहमति बनाने में भारत की भूमिका मजबूत हुई। पाकिस्तान पर आतंकवाद को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा।

पाकिस्तानी ने भी भारत की देखा-देखी अपना प्रतिनिधिमंडल भारत के ऑपरेशन सिंदूर और आतंकवाद के आरोपों का जवाब देने के लिए भेजा, लेकिन इसकी प्रकृति और प्रभाव भारतीय प्रयासों से भिन्न थे। भारत की तुलना में पाकिस्तान ने अपने सांसदों और अधिकारियों के छोटे समूहों को कुछ देशों में भेजा, लेकिन इसका पैमाना भारत की तुलना में छोटा था। इसमें सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों की भागीदारी थी, लेकिन सर्वदलीय एकजुटता की कमी थी। भारत के ऑपरेशन सिंदूर को एक आक्रामक सैन्य कार्रवाई के रूप में चित्रित करना था। भारत के आतंकवाद के आरोपों को खारिज करना और अपनी स्थिति को शांति समर्थक देश के रूप में प्रस्तुत करना था। कुछ सहयोगी देशों (जैसे चीन और कुछ इस्लामी देशों) से समर्थन जुटाना। पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल ने कुछ चुनिंदा देशों में यात्रा की, लेकिन इसका दायरा सीमित था (32 देशों की तुलना में बहुत कम)। मलेशिया में भारतीय प्रतिनिधिमंडल की यात्रा को रद्द करने की असफल कोशिश इसका उदाहरण है। पाकिस्तान ने भारत पर क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ाने का आरोप लगाया। अपने देश को आतंकवाद का शिकार बताने की कोशिश की, लेकिन ठोस सबूतों की कमी थी। कुछ देशों में भारत के ऑपरेशन सिंदूर को गलत ठहराने की कोशिश की, लेकिन वैश्विक स्तर पर यह प्रभावी नहीं रहा। पाकिस्तान का कूटनीतिक अभियान भारत की तुलना में कम प्रभावी रहा, क्योंकि कई देशों ने भारत के सबूतों को अधिक विश्वसनीय माना। पाकिस्तान के कुछ सहयोगी देशों ने समर्थन दिया, लेकिन वैश्विक सहमति बनाने में असफलता मिली। पाकिस्तान के पास आतंकवाद के खिलाफ ठोस कार्रवाई का रिकॉर्ड नहीं था, जिसने उनकी विश्वसनीयता को कम किया। भारत के सर्वदलीय दृष्टिकोण की तुलना में पाकिस्तान का अभियान कम समावेशी और कम संगठित था। वैश्विक समुदाय में पहले से ही पाकिस्तान के आतंकवाद से जुड़े होने की धारणा ने उनके प्रयासों को कमजोर किया।
भारत का प्रतिनिधिमंडल ऑपरेशन सिंदूर के तहत आतंकवाद के खिलाफ अपनी कार्रवाई को वैश्विक मंच पर प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने में सफल रहा। इसने न केवल पाकिस्तान की आतंकवादी गतिविधियों को उजागर किया, बल्कि भारत की कूटनीतिक ताकत और एकजुटता को भी प्रदर्शित किया। दूसरी ओर, पाकिस्तान का प्रतिनिधिमंडल सीमित दायरे, कमजोर सबूतों और वैश्विक विश्वसनीयता की कमी के कारण प्रभावी नहीं रहा। भारत की रणनीति ने आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक सहमति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जबकि पाकिस्तान अपने बचाव में असफल रहा।