चिन्ता में वानिकी वैज्ञानिक
राजकुमार मल
भाटापारा- घट सकता है तेन्दूऔ और महुआ का उत्पादन। बड़ी वजह यह कि दोनों की आबादी तेजी से घट रही हैं। लिहाजा पुराने वृक्षों का संरक्षण और संवर्धन को वानिकी वैज्ञानिक जरुरी मान रहे हैं। साथ ही पौधरोपण में इनके लिए भी जगह छोड़नी होगी ताकि नई श्रृंखला तैयार की जा सके।
आने लगी है तेन्दू में नई फसल जबकि अप्रैल के मध्य तक महुआ के आवक की संभावना बन रही है लेकिन इस बरस मांग के अनुरूप उपलब्धता बेहद कमजोर होने की आशंका है क्योंकि प्राकृतिक वनों में दोनों की हिस्सेदारी साल-दर-साल कम होती जा रही है। यह तब, जब वनोपज बाजार में दोनों की मांग पूरे साल रहती है।
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संकट में आर्थिक मजबूती
वनोपज में बेहद अहम स्थान रखता है तेन्दू। बीड़ी बनाने के काम आने वाली इसकी पत्तियों के संग्रहण और विक्रय से वनवासियों को जीवनयापन का मजबूत सहारा मिलता है क्योंकि इसकी खरीदी सरकार करती है लेकिन इस बरस पत्तियों और फल का उत्पादन कमजोर रहने की प्रबल आशंका है क्योंकि तेन्दू के वृक्ष कम होने लगे हैं। चिंतित वानिकी वैज्ञानिकों ने पुराने वृक्षों का संरक्षण और संवर्धन की जरूरत बताते हुए कहा है कि समय आ गया है नए वृक्ष तैयार करने का। इसलिए पौधरोपण में तेंदू की भी हिस्सेदारी तय की जानी चाहिए।
विलुप्ति की ओर
5100 से 5300 रुपए क्विंटल। महुआ की यह कीमत मांग और उपलब्धता को रेखांकित करती है। बढ़ सकती है यह कीमत क्योंकि इसके वृक्षों की संख्या भी तेजी से कम होने लगी है। ईंधन की जरूरत और विकास की भेंट चढ़ती यह प्रजाति भी वनवासियों का मजबूत आधार है लेकिन फौरी जांच में जैसी स्थिति की जानकारियां मिल रहीं हैं, उसे बेहद चिंताजनक माना जा रहा है। इसलिए संरक्षण और संवर्धन को प्राथमिकता के साथ करने और महुआ के पौधरोपण को जरूरी मान रहे हैं वानिकी वैज्ञानिक।
अहम इसलिए
तेंदूपत्ता। बीड़ी बनाने के काम आता है। देश स्तर पर खरीदी होती है पत्तियों की। इसलिए अपने प्रदेश में समर्थन मूल्य पर खरीदी की जाती है, जो वनवासियों के जीवन यापन को मजबूत सहारा देती है। लकड़ियों से घरेलू ज़रूरतें पूरी करते हैं प्रदेश के वनवासी।
महुआ फूल। शराब तो बनती ही है। सूखने के बाद वनांचलों में गुड़ और शक्कर के विकल्प के रूप में उपयोग किया जाता है। बीज से हासिल होने वाला तेल, खाद्य तेल के रुप में उपयोग किया जाता है। सौंदर्य प्रसाधन सामग्री और साबुन बनाने के काम आता है। छाल की खरीदी त्वचा रोग निवारक दवाई बनाने वाली इकाइयां करतीं हैं।
गंभीर चिंता का विषय
“तेंदू और महुआ जैसे महत्वपूर्ण वनोपज की आबादी तेजी से घट रही है, जो वनवासियों की आजीविका और पारिस्थितिकी तंत्र दोनों के लिए गंभीर चिंता का विषय है। पुराने वृक्षों का संरक्षण और प्राकृतिक वनों का पुनर्जीवन हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। साथ ही, इन प्रजातियों के व्यवस्थित पौधरोपण को बढ़ावा देना होगा, ताकि आने वाली पीढ़ियों को भी इनका लाभ मिल सके। यदि हम समय रहते इन वनोपजों के संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाते, तो भविष्य में इनकी उपलब्धता और भी सीमित हो जाएगी, जिससे वन आधारित अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ेगा।”
अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर