लोक अदालत के आयोजन मे निराकृत केस संख्या बढ़ाने के लिए ट्रैफिक पुलिस ग्रामीण मोटरसाइकिल सवारों का कर रही चालान

बलौदाबाजार। उच्चतम न्यायालय की मंशा है कि अदालतों में लंबित प्रकरणों का जल्द से जल्द निराकरण हो और यदि आपसी समझौते से दोनों पक्षों को राजीनामा कराकर उनके प्रकरणों का निराकरण करा दिया जाय तो इससे दो प्रतिद्वंद्वी में मित्रता बढ़ेगी दुश्मनी घटेगी तथा दोनों ही पक्ष खुशहाल रहेंगे जिसको लेकर पूरे देश में लोक अदालत का आयोजन किया जाता है जहाँ पर राजस्व प्रकरण, पति पत्नी विवाद, जमीन का आपसी विवाद, राजस्व प्रकरण, यातायात दुर्घटना, बैंक संबंधित विवाद, तथा अन्य विभागों के विवादों का निपटारा किया जाता है जिसमें दोनों पक्षों की न हार होती है और न ही जीत और आपसी समझौते से मामलों का निराकरण हो जाता है। और इसे लेकर तहसील जिला प्रदेश व देश में न्यायालय आयोजन करता है और मामले निपटते भी है। पर अब दुखद पहलु भी सामने आया है जहाँ निराकृत प्रकरणों की संख्या बढाने पुलिस को लक्ष्य दिया गया है और इसको लेकर पुलिस विभाग चालानी कार्यवाही कर रही है और ग्रामीण जन परेशान हो रहे हैं।
लोक अदालत में निराकृत प्रकरणों की संख्या बढाने को लेकर बलौदाबाजार भाटापारा जिले में अलग ही नजारा देखने को मिल रहा है यहाँ पर यातायात पुलिस लोक अदालत के पहले ही चालानी कार्यवाही में जुट गयी है और ग्रामीण मोटरसाइकिल चालकों की बेतहाशा चालानी कार्यवाही कर टारगेट पूरा करने में लगी है ताकि आने वाले लोक अदालत में वह उसे प्रस्तुत कर वाहवाही लुट सके। वही चालानी रसीद में बकायदा एक ओर लोक अदालत भी लिखा हुआ है और चालानी रकम भी तत्काल जमा करवा रही है और फिर लोक अदालत में इसे पेश कर निराकृत प्रकरणों की संख्या बढायेगी।
इस तरह के प्रकरण का खुलासा तब हुआ जब ट्रैफिक पुलिस के जवान लुटवा रोड में चालानी कार्यवाही कर रहे थे जिसमें प्रधान आरक्षक महेंद्र कुमार कोर्ते, आरक्षक प्रमोद कुमार मांजरे, कृष्ण कुमार पटेल सहित अन्य यातायात पुलिस जवान चालानी कार्यवाही कर रहे थे और रोजी मजदूरी और दूसरे कामों से गांव लौट रहे ग्रामीणों और मजदूरों से ये जवान अभद्र व्यवहार कर उन्हें जबरन चालान थमा रहे हैं। और ग्रामीण परेशान हो रहे थे। यातायात निरीक्षक नहीं थे मौजूद जब यह चालानी कार्यवाही की जा रही थी उस वक्त यातायात निरीक्षक वहाँ मौजूद नहीं थे और हवलदार व आरक्षक ग्रामीण मोटरसाइकिल सवारो को रोककर चालानी कार्यवाही कर रहे थे। स्थानीय लोगों का कहनाहै कि चालानी कार्रवाई में ट्रैफिक इंस्पेक्टर की मौजूदगी जरूरी होती है, लेकिन बिना टीआई के ही आरक्षक चालान कर रहे हैं। जो कि उचित नहीं है।
चालान में किनारे लिखा लोक अदालत
जो चालानी कार्यवाही कर रसीद दी जा रही थी उस चालान के ऊपर लोक अदालत भी लिखा हुआ है, इससे स्पष्ट है कि पुलिस चालान की कार्यवाही लोक अदालत में केस बढ़ाने के लिए कर रही है। सिर्फ केस बढ़ाने के लिए पुलिस के द्वारा इस तरह से लोगों का परेशान किया जाना कितना न्यायोचित होगा और कितना लोगों को न्याय मिलेगा यह तो जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ही बता पायेंगे जो कि गिरौदपुरी मेले में अभी व्यस्त है।
पत्रकार की हुई चालानी कार्यवाही मामला हुआ उजागर
बलौदाबाजार के ईटीवी के पत्रकार जब घर जा रहे थे तब लटुवा रोड में कार्यवाही कर रहे यातायात पुलिस के जवानों ने उन्हें रोक लिया और चालानी कार्यवाही कर दिया और पत्रकार ने बकायदा फोन पे के माध्यम से 500 रूपये का चालान जमा किया जिसकी रसीद उनके पास है जिसमें एक किनारे लोक अदालत लिखा हुआ था।
इस पूरे मामले पर जब ट्रैफिक डीएसपी अमृत कुजूर से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि वे गिरौदपुरी मेले की ड्यूटी में हैं और चालान की कार्रवाई कौन कर रहा था, इसकी उन्हें कोई जानकारी नहीं है। वहीं, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक हेमसागर सिदार ने कहा कि वे जांच कराएंगे कि आखिर बिना टीआई के चालान कौन कर रहा था। ग्रामीणों और बाजार आने वाले लोगों का कहना है कि ट्रैफिक पुलिस को नियमों के दायरे में रहकर कार्रवाई करनी चाहिए, न कि जबरन चालान काटकर लोगों को परेशान करना चाहिए। लोक अदालत में केस बढ़ाने के लिए इस तरह की जबरन वसूली आम जनता के लिए मुसीबत बनती जा रही है।वही ग्रामीणों का यह भी कहना था कि प्रतिदिन यातायात पुलिस मोटरसाइकिल चलाने वाले ग्रामीणों को ही तंग करती है जबकि बडे बडे वाहन जो यातायात नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं उनपर कार्यवाही नहीं करती है।

उठ रहा सवाल
सवाल अब यह उठ रहाहै कि इस तरह के लोक अदालत में ज्यादा से ज्यादा प्रकरणों का निराकरण का लिस्ट बनाकर उच्च न्यायालय में वाहवाही लूटने का प्रयास कौन कर रहा है क्या इस तरह से उच्च और उच्चतम न्यायालय की मंशा पूरी हो पायेगी या इस तरह की कार्यवाही से प्रशासन की गरिमा नहीं गिरेगी और अदालत की छवि खराब नहीं होगी।इस पर न्यायाधीशों के साथ प्रशासन को विचार करने की आवश्यकता है। कि न्याय करने के चक्कर में लोगों के साथ अन्याय न होने लगे। पुलिस विभाग के विभागीय सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार उन्हें लोक अदालत में ज्यादा से ज्यादा प्रकरणों का निराकरण करने का लक्ष्य न्यायालयों द्वारा मौखिक रूप से दिया जाता है न कि लिखित मे।और मौखिक आदेश उपरांत लक्ष्य पूरा करना होता है और वे चालानी कार्यवाही करते हैं जिससे कि उनका लक्ष्य पूरा हो सके और उच्च न्यायालय में वो जानकारी दे सके कि इतने प्रकरणों का निराकरण हुआ जिससे उनकी छवि अच्छी बन जायेगी। पर क्या यह उचित है और यदि पुलिस सूत्रों से प्राप्त जानकारी यदि वाकई सही है कि न्यायालय इस तरह का लक्ष्य देता है और इस तरह के कार्यवाही से आमजनता परेशान होती है तो क्या न्याय प्रणाली सही है या गलत इस पर उच्च व उच्चतम न्यायालय को संज्ञान लेना चाहिए। न कि लक्ष्य पूरा करने इस तरह का आदेश देना चाहिए। फिलहाल देखना होगा कि इस खबर के बाद प्रदेश की पुलिस प्रशासन, न्याय प्रशासन क्या कदम उठाती है जिससे पुलिस विभाग को इस तरह का लक्ष्य नहीं मिले और नहीं जनता परेशान हो।