“चरौटा की कीमत 3000 रुपए क्विंटल, कमजोर फसल और निर्यात की संभावना से दाम में तेजी”

कमजोर फसल और निर्यात की संभावना से चरौटा गर्म

राजकुमार मल, भाटापारा- 3000 रुपए क्विंटल। चरौटा की नई फसल में यह कीमत वनोपज कारोबारियों को हैरत में डाले हुए है। धारणा लगातार तेजी की व्यक्त की जा रही है क्योंकि फसल बेहद कमजोर रहने की खबर है जबकि मांग बीते साल की तुलना में दोगुनी हो चली है।

चरौटा में कीमत इस बरस कीर्तिमान बना सकती है क्योंकि नई फसल के सौदे ऊंचे दाम पर हो रहे हैं। शायद यह भी पहली बार देखा जा रहा है कि बाजार पहुंचते ही सारी उपज बिक जा रही है क्योंकि निर्यात खुलने की प्रबल संभावना है।

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पहली बार 3000 रुपए

चरौटा में नई फसल की आवक शुरू हो चुकी है लेकिन जो भाव बोले जा रहे हैं, उसकी कल्पना वनोपज कारोबारियों ने भी नहीं की थी। बीते साल अधिकतम 2200 से 2400 रुपए क्विंटल पर चरौटा की खरीदी करने वाले कारोबारियों को एक मुश्त 3000 रुपए क्विंटल की दर पर सौदे करने पड़ रहे हैं क्योंकि मांग की तुलना में आवक लगभग आधी ही है जबकि खरीददारों की संख्या बढ़ी हुई है। पुरानी फसल में सौदे 2500 से 2600 रुपए क्विंटल पर होने की खबर है।

रुझान निर्यातकों का भी

जापान, ताइवान और मलेशिया जैसे देशों के साथ कारोबार करने वाले चरौटा निर्यातकों की एक तरफा खरीदी चालू हो चुकी है। ऐसे में चरौटा में प्रतिस्पर्धी खरीदी का दौर बना हुआ है। इसके अलावा निर्यात खुलने की संभावना बनती नजर आ रही है। इसे देखते हुए नई फसल के भंडारण के लिए भी खरीदी चालू हो चुकी है। बताते चलें कि निर्यातक देशों में चरौटा से हर्बल टी और हर्बल कॉफी बनाई जाती है।

धारणा तेजी की

गुणवत्ता के सभी मानकों पर छत्तीसगढ़ का चरौटा खरा उतरता है, इसलिए अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में अलग ही पहचान रखता है अपना चरौटा। इसलिए दूसरे प्रांतों की उपज की तुलना में भाव अच्छे ही मिलते हैं। इस बार यह कीमत आगे और भी बढ़ सकती है क्योंकि नई फसल कमजोर बताई जा रही है। जबकि मांग और खरीदी पूर्ववत स्तर पर बनी हुई है। ऐसे में धारणा 3200 से 3400 रुपए क्विंटल तक जाने की है।

नई फसल कमजोर

चरौटा में नई फसल की स्थिति कमजोर है। जबकि निर्यात की संभावना से प्रतिस्पर्धी खरीदी चालू हो चुकी है। इसलिए तेजी की धारणा है।
– सुभाष अग्रवाल, एस पी इंडस्ट्रीज, रायपुर

अनियमित पुष्पन मुख्य वजह

छत्तीसगढ़ राज्य में चरौटा बीज की हर साल अच्छी आवक होती, जिससे ग्रामीणों को अतिरिक्त आमदनी हो जाती है। पिछले कुछ वर्षों की तुलना में इस वर्ष उत्पादकता के कम होने की मुख्य वजह अनियमित पुष्पन का होना है।

अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर

 

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