Wound of defeat कर्नाटक, बंगाल,दिल्ली में हार का घाव

Wound of defeat

हरिशंकर व्यास

Wound of defeat कर्नाटक, बंगाल,दिल्ली में हार का घाव

Wound of defeat
Wound of defeat कर्नाटक, बंगाल,दिल्ली में हार का घाव

Wound of defeat यहीं कहानी कर्नाटक में दोहराई गई, जहां 2018 के चुनाव में भाजपा सरकार बनाने लायक बहुमत हासिल नहीं कर सकी थी और कांग्रेस-जेडीएस ने चुनाव के बाद गठबंधन करके सरकार बना ली। वहां भी भाजपा ने डेढ़ साल में सरकार गिरा दी और अपनी सरकार बना ली। पश्चिम बंगाल का मामला और दिलचस्प है। भाजपा ने बंगाल का चुनाव करो या मरो वाले अंदाज में लड़ा था। ममता बनर्जी की पार्टी के दर्जनों बड़े नेताओं को तोड़ कर भाजपा में शामिल किया गया था।

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Wound of defeat चुनाव आयोग ने इस तरह से कार्यक्रम बनाया था कि कोरोना वायरस की दूसरी लहर के पीक समय में भी दो महीने तक चुनाव चलता रहा। इसके बावजूद भाजपा चुनाव हार गई। उसके बाद से बंगाल में जो हो रहा है वह देश देख रहा है। भाजपा ने अपने सभी विधायकों और अनेक दूसरे देशों को केंद्रीय सुरक्षा बलों की सुरक्षा दे रखी है। कई बार स्थानीय पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के टकराव की स्थिति बनी।

सत्तारूढ़ दल के नेताओं के खिलाफ लगातार केंद्रीय एजेंसियों के छापे चल रहे हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के करीबी नेताओं के साथ साथ परिवार के सदस्यों के खिलाफ जांच चल रही है और गिरफ्तारी की तलवार लटकी है। ममता की पार्टी के अनेक नेता गिरफ्तार हो चुके हैं और भाजपा के नेता दावा कर रहे हैं कि तीन चौथाई बहुमत वाली ममता बनर्जी की सरकार गिरा देंगे।

सबसे क्लासिकल केस दिल्ली का है, जहां भाजपा लगातार हार रही है। विधानसभा बनने के बाद 1993 के पहले चुनाव में भाजपा जीती थी। उसके बाद लगातार छह विधानसभा चुनावों में भाजपा हारी है।

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Wound of defeat कर्नाटक, बंगाल,दिल्ली में हार का घाव

पिछले दो चुनावों में तो उसकी दुर्गति हुई है। 2015 के चुनाव में उसे 70 में से सिर्फ तीन सीटें मिली थीं और 2020 में वह महज आठ सीट जीत पाई। लेकिन दिल्ली की अनोखी प्रशासकीय संरचना का लाभ उठा कर भाजपा ने लगातार सरकार को परेशान किए रखा।

बाद में तो संसद के कानून बना कर ही केंद्र ने अपने द्वारा नियुक्त उप राज्यपाल को ही दिल्ली सरकार घोषित कर दिया। उसके बावजूद किसी न किसी तरह से राज्य सरकार के कामकाज में केंद्र ने दखल बनाए रखा है।

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अब एक एक करके राज्य सरकार के मंत्रियों की धरपकड़ शुरू हुई है। एक मंत्री सत्येंद्र जैन हवाला के जरिए लेन-देन करने के आरोप में जेल में बंद हैं तो दूसरे मंत्री मनीष सिसोदिया के यहां शराब नीति को लेकर छापा पड़ा है।

सिसोदिया खुद ही कह रहे हैं कि वे जल्दी ही जेल जा सकते हैं। इस बीच बस खरीद में कथित घोटाले का हल्ला मचा है, जिसमें कई लोगों की जांच की संभावना है। राज्य सरकार के अधिकारी लगातार निशाने पर हैं।

उप राज्यपाल ने कई अधिकारियों को निलंबित कर दिया है और कई अधिकारियों के खिलाफ जांच की सिफारिश की है। इस घटनाक्रम के बीच दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया है कि भाजपा उसकी सरकार गिराने की कोशिश कर रही है।

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उसका कहना है कि उसके 40 विधायकों को तोडऩे की कोशिश की जा रही है, जिसके लिए भाजपा आठ सौ करोड़ रुपए खर्च करने वाली है। पता नहीं इसमें कितनी सचाई है लेकिन इस बात की चर्चा भी हो रही है कि भाजपा की केंद्र सरकार दिल्ली विधानसभा को समाप्त करने पर विचार कर रही है।

यानी अगर चुनाव नहीं जीत सकते हैं तो चुनाव लडऩे का टंटा ही खत्म कर देते हैं। सोचें, यह कितनी खतरनाक सोच हैं? चाहे जिस वजह से दिल्ली के बारे में ऐसा सोचा जा रहा हो लेकिन एक बार अगर यह प्रक्रिया शुरू हो गई तो उसे देश में कहीं भी आजमाया जा सकता है।

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