वाशिंगटन। डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा सत्ता संभालने के बाद अमेरिका में H-1B वीजा पर सख्ती तेज हो गई है। पहले टैरिफ युद्ध से वैश्विक बाजार हिल गया, अब H-1B वीजा कार्यक्रम को निशाना बनाया जा रहा है। ट्रंप प्रशासन ने शुक्रवार को घोषणा की कि नए H-1B वीजा आवेदनों पर कंपनियों को प्रतिवर्ष 1 लाख डॉलर (करीब 8.4 करोड़ रुपये) की फीस देनी होगी। यह फीस मौजूदा वीजा धारकों पर लागू नहीं होगी, बल्कि केवल नए आवेदकों के लिए है।
इस बदलाव से टेक कंपनियां हिल गई हैं, क्योंकि H-1B वीजा का सबसे ज्यादा इस्तेमाल आईटी क्षेत्र में होता है। भारत और चीन जैसे देशों से आने वाले कुशल श्रमिकों पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ेगा। भारत 71 प्रतिशत H-1B वीजा प्राप्तकर्ताओं का सबसे बड़ा स्रोत है। अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट और मेटा जैसी कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को अमेरिका लौटने की सलाह दी है।
चयन प्रक्रिया में कौशल और वेतन आधारित सुधार
ट्रंप प्रशासन ने मंगलवार को H-1B वीजा चयन प्रक्रिया में व्यापक बदलाव का प्रस्ताव रखा। पारंपरिक रैंडम लॉटरी सिस्टम के बजाय अब कौशल स्तर और प्रस्तावित वेतन पर आधारित वेटेड चयन होगा। अमेरिकी श्रम विभाग के सर्वेक्षणों के आधार पर उम्मीदवारों को चार वेतन स्तरों में बांटा जाएगा। उच्चतम वेतन स्तर वाले आवेदनों को चयन पूल में चार गुना वेटेज मिलेगा, जबकि निम्नतम स्तर को केवल एक गुना।
यह कदम ट्रंप के H-1B सुधार प्रयासों का हिस्सा है, जो रूढ़िवादी समूहों में विवादास्पद रहा है। आलोचक कहते हैं कि यह वीजा अमेरिकी श्रमिकों को नौकरियों से विस्थापित करता है। हालांकि, सिलिकॉन वैली के उद्योगपति जैसे एलन मस्क का मानना है कि यह कुशल विदेशी प्रतिभाओं को लाने के लिए जरूरी है।
प्रस्ताव के तहत सालाना 85,000 वीजा कैप के कारण अगर आवेदन अधिक हों, तो उच्च वेतन वाली नौकरियों को प्राथमिकता मिलेगी। वित्त वर्ष 2026 में H-1B श्रमिकों के कुल वेतन में 502 मिलियन डॉलर की वृद्धि होने का अनुमान है। यह बदलाव 21 सितंबर 2025 से प्रभावी हो सकता है।
भारत सरकार ने चिंता जताई है कि यह फीस परिवारों को बिखेर सकती है। टेक उद्योग का कहना है कि इससे अमेरिकी कंपनियों की वैश्विक प्रतिस्पर्धा प्रभावित होगी।