अचानकमार जहां प्रकृति की सुंदरता साथ नजर आते हैं भ्रमण करते हुए वन्य जीव
:सुभाष मिश्र:
छत्तीसगढ़ का अचानकमार टाइगर रिजर्व, जो मुंगेली और बिलासपुर जिलों में स्थित है, एक प्रमुख वन्यजीव अभयारण्य है। यह अपनी समृद्ध जैव-विविधता और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। 1975 में स्थापित इस रिज़र्व को 2009 में टाइगर रिजर्व का दर्जा प्राप्त हुआ। यह छत्तीसगढ़ के तीन टाइगर रिज़र्व में से एक है और देश के 57 टाइगर रिज़र्वों में शामिल है।
हर जंगल का अपना सौंदर्य होता है। ज़रूरी नहीं कि हर टाइगर रिजर्व में आपको तुरंत बाघ के दर्शन हो जाएं। यह भी हो सकता है कि वहाँ की वनस्पति, अन्य जीव-जंतु, और प्रकृति की गोद में बसे रिसॉर्ट्स आपको इतना आनंदित करें कि आप बार-बार वहाँ जाना चाहें। अचानकमार ऐसी ही एक जगह है।
मैकल पर्वतमाला की गोद में, अमरकंटक मार्ग पर स्थित यह टाइगर रिजर्व माणिकपुर नदी और उसकी सहायक नदियों से घिरा है, जो इसे सुंदर और पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण बनाता है। यहाँ सागौन, साल, बांस और महुआ के पेड़ विशेष आकर्षण का केंद्र हैं।
यहाँ बाघ, तेंदुआ, गौर, उड़न गिलहरी, जंगली सुअर, बायसन, चीतल, सांभर, भालू, लकड़बग्घा, सियार, चार-सिंगा मृग, चिंकारा आदि वन्यजीव इस जंगल की रौनक बढ़ाते हैं। पक्षियों की 150 से अधिक प्रजातियाँ — जैसे मोर, जंगली मुर्गी और विभिन्न प्रवासी पक्षी — यहाँ के वातावरण को सजीव बनाती हैं।
प्रसंगवश मुझे दुष्यंत कुमार का शेर याद आता है:
“एक जंगल है तेरी आँखों में,
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ।
तुझको भूलने की कोशिश में,
तुझको और क़रीब पाता हूँ।”
मैंने अपनी दो-तीन घंटे की जंगल सफारी में सौ से अधिक बायसन देखे — हर उम्र वर्ग के। एक ही यात्रा में इतने बायसन एक साथ देखना अद्भुत अनुभव था। साथ में चीतल, मोर और बंदरों की उपस्थिति ने सफारी को और रोमांचक बना दिया। अच्छी कंपनी, सुंदर जंगल और भरपूर वन्यजीव — यही तो कह रहे थे मेरे साथी: “वाह भई वाह!”
यहाँ के घोंघा जलाशय में नौका विहार हो या शिवतराई में स्थित अनाया रिसॉर्ट में रुकने का अनुभव — सब कुछ अविस्मरणीय रहा। इसके अलावा वन विभाग द्वारा संचालित विश्रामगृह में भी बुनियादी सुविधाओं से युक्त कमरे उपलब्ध हैं। पर्यटकों की बढ़ती संख्या को देखते हुए एक नया रिसॉर्ट भी निर्माणाधीन है।
अचानकमार टाइगर रिजर्व रायपुर से लगभग 120 किमी और बिलासपुर से 50 किमी की दूरी पर स्थित है। इसका कुल क्षेत्रफल 914 वर्ग किमी है, जिसमें कोर क्षेत्र 626.19 वर्ग किमी और बफर क्षेत्र 287.82 वर्ग किमी है। यह रिजर्व 1 नवंबर से 30 जून तक पर्यटकों के लिए खुला रहता है, जबकि मानसून के दौरान (जुलाई से अक्टूबर) यह बंद रहता है।
2014 में यहाँ 46 बाघ थे, जो 2023 में घटकर 17 रह गए। नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, अब यहाँ लगभग 7–10 बाघ बचे हैं।
भारत में वर्तमान में 57 टाइगर रिज़र्व हैं। छत्तीसगढ़ में तीन टाइगर रिज़र्व हैं:
- अचानकमार टाइगर रिज़र्व
- उदंती–सितानदी टाइगर रिज़र्व (गरियाबंद): 1842.53 वर्ग किमी, अनुमानित 5–7 बाघ।
- गुरु घासीदास–तमोर पिंगला टाइगर रिज़र्व (कोरिया, सूरजपुर, बलरामपुर): 2829.38 वर्ग किमी, देश का तीसरा सबसे बड़ा टाइगर रिज़र्व, अनुमानित 5–8 बाघ (2024 में अधिसूचित)।
2023 के आँकड़ों के अनुसार, छत्तीसगढ़ में बाघों की संख्या 17 से 25 के बीच है।
मध्य प्रदेश में 7 टाइगर रिज़र्व हैं:
- कान्हा
- बांधवगढ़
- पेंच
- सतपुड़ा
- संजय–दुबरी
- पन्ना
- वीरांगना दुर्गावती
इनमें से कान्हा टाइगर रिजर्व छत्तीसगढ़ की सीमा से लगा है, और वहाँ के बाघ छत्तीसगढ़ के जंगलों में भी आवाजाही करते हैं। मध्य प्रदेश में कुल बाघों की संख्या 780 है (2022 के अनुसार), और इसे “टाइगर स्टेट” कहा जाता है।

अनन्या रिसार्ट
छत्तीसगढ़ के आसपास के राज्यों में टाइगर रिज़र्व की स्थिति:
- महाराष्ट्र (6 रिज़र्व): मेलघाट, ताडोबा-अंधारी, पेंच, नवेगांव-नागझिरा, बोर, सह्याद्री। कुल बाघ: ~350–400।
- झारखंड: पलामू टाइगर रिज़र्व (~10–15 बाघ)।
- उत्तर प्रदेश (3 रिज़र्व): दुधवा, पीलीभीत, अमानगढ़ (~200–250 बाघ)।
- ओडिशा (3 रिज़र्व): सिमिलिपाल, सतकोसिया, सुनाबेड़ा (~20–30 बाघ)।
- आंध्र प्रदेश: नागार्जुनसागर–श्रीशैलम (~50–70 बाघ)।
2022 के अखिल भारतीय बाघ अनुमान के अनुसार, भारत में कुल 3167 बाघ हैं, जो 2018 के 2967 से 6.7% की वृद्धि को दर्शाता है। सबसे अधिक बाघ मध्य प्रदेश (780), कर्नाटक (524) और उत्तराखंड (442) में हैं। 1973 में जहाँ 9 टाइगर रिजर्व थे, वहीं 2024 तक इनकी संख्या 57 हो गई है।

अनन्या रिसार्ट
अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस प्रतिवर्ष 29 जुलाई को मनाया जाता है।
भारत में बाघों की संख्या में वृद्धि एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन अवैध शिकार, मानव-वन्यजीव संघर्ष और आवास हानि जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जिनसे निपटने के लिए गंभीर प्रयासों की आवश्यकता है।
भवानी प्रसाद मिश्र ने “सतपुड़ा के घने जंगल” शीर्षक से जो कालजयी कविता लिखी, वैसी प्रभावशाली कविता छत्तीसगढ़ के जंगलों पर अब तक नहीं लिखी गई। अलबत्ता छत्तीसगढ़ का राजकीय गीत अवश्य यहाँ की नदियों और प्रकृति की स्तुति करता है:
“अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार,
इंद्रावती ह पखारय तोर पइयाँ।
महूँ पाँव परव तोर भुइयाँ,
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मइया।
सोहय बिंदिया सही, घाते डोंगरी-पहार,
के धार, महानदी हे अपार।”
भवानी भाई की कविता:
सतपुड़ा के घने जंगल, नींद में डूबे हुए से,
ऊँघते अनमने जंगल।
लाख पख़ी, सौ हिरन दल, चाँद के कितने किरन दल।
झूमते वन फूल-फलियाँ, खिल रही अज्ञात कलियाँ…
(कविता संक्षिप्त की गई है)
छत्तीसगढ़ प्राकृतिक रूप से अत्यंत समृद्ध राज्य है। जिन राज्यों में न तो छत्तीसगढ़ जैसी नदियाँ, पहाड़, जंगल, लोककलाएँ, और न ही सांस्कृतिक विविधता है, वहाँ पर्यटन हमसे कहीं अधिक विकसित है।
इसका एक प्रमुख कारण यह है कि हमारे यहाँ पर्यटक स्थलों तक पहुँचने, ठहरने, और भोजन की अच्छी व्यवस्था का अभाव है। हमारी प्रोफेशनल अप्रोच में कमी है। सरकार को “फैसिलिटेटर” की भूमिका निभाते हुए ऐसे स्थानों पर पर्यटन गतिविधियाँ बढ़ाने वालों को सहयोग देना चाहिए।
सरकारी प्रचार-प्रसार की मौजूदा पद्धति (25 वर्षों से वही शैली) को छोड़कर, कला, साहित्य, फोटोग्राफी, ब्लॉगिंग आदि से जुड़े विशेषज्ञों की मदद से प्रचार के नए आयाम तलाशने होंगे। शिक्षण संस्थानों को भी ऐसे स्थलों से जोड़ा जाना चाहिए।
अचानकमार टाइगर रिजर्व की वनस्पति इसकी जैव-विविधता का आधार है, जो पारिस्थितिक संतुलन, वन्यजीव संरक्षण, और स्थानीय समुदायों की आजीविका को समर्थन देती है। साल, सागौन, महुआ और बांस जैसे वृक्षों के अलावा, औषधीय पौधों और घास की प्रजातियों की उपस्थिति इसे एक अद्वितीय क्षेत्र बनाती है।