छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक वैवाहिक विवाद में बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने पति की तलाक की अर्जी मंजूर करते हुए पत्नी को 15 लाख रुपये का स्थायी गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि बिना पर्याप्त कारण लंबे समय तक पति से अलग रहना मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है।

मामला कोरबा जिले का
यह केस कोरबा जिले के कटघोरा क्षेत्र का है। यहां एसईसीएल में माइनिंग सरदार के पद पर कार्यरत युवक की शादी 11 फरवरी 2010 को हुई थी। कुछ समय बाद दंपती के घर बेटी का जन्म हुआ। इसके बाद पति-पत्नी के बीच विवाद गहराने लगे।
पति का आरोप था कि पत्नी ने वैवाहिक जिम्मेदारियों से दूरी बना ली और परिवार से अलग रहने का दबाव डालने लगी। वहीं पत्नी ने कहा कि बेटी के जन्म के बाद ससुरालवालों का व्यवहार बदल गया और उन्होंने ₹5 लाख दहेज की मांग करते हुए प्रताड़ित करना शुरू कर दिया।
मुकदमे और आरोप-प्रत्यारोप
पत्नी ने पति और ससुरालवालों के खिलाफ 498ए (दहेज प्रताड़ना), घरेलू हिंसा और भरण-पोषण जैसे कई मुकदमे दर्ज कराए। उसने यह भी आरोप लगाया कि पति और परिवार वालों ने मारपीट कर जान से मारने की कोशिश की। दूसरी ओर, पति ने पत्नी पर झूठे केस दर्ज कराने और कोर्ट परिसर में हमला करने तक के आरोप लगाए।
2019 में सेशन कोर्ट ने पति और उसके परिवार को सभी आपराधिक आरोपों से बरी कर दिया। इसके बावजूद पत्नी अलग ही रही। पति ने 2015 में तलाक की अर्जी लगाई थी, लेकिन 2017 में कटघोरा फैमिली कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।
हाईकोर्ट का फैसला
पति ने फैमिली कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी। जस्टिस रजनी दुबे और अमितेंद्र किशोर प्रसाद की डिवीजन बेंच ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं।
कोर्ट ने कहा कि –
- दंपती 2011 से अलग रह रहे हैं।
- पत्नी ने कई आपराधिक शिकायतें दर्ज कराईं, जिनसे पति को मानसिक यातना झेलनी पड़ी।
- पत्नी अलग रहने का कोई वाजिब कारण साबित नहीं कर सकी।
बेंच ने माना कि पति-पत्नी के बीच अब पुनर्मिलन की संभावना पूरी तरह समाप्त हो चुकी है। इसलिए पति की तलाक अर्जी स्वीकार करते हुए डिक्री जारी की गई।
गुजारा भत्ता का आदेश
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पत्नी और बेटी के भविष्य को देखते हुए पति को आदेश दिया कि वह 6 माह के भीतर 15 लाख रुपये स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में अदा करे।
इस फैसले के साथ ही 14 साल से लंबित यह विवादित रिश्ता कानूनी रूप से समाप्त हो गया।