What can fix broken glass टूटा हुआ शीशा क्या जुड़ सकता है?

What can fix broken glass

हरिशंकर व्यास

What can fix broken glass टूटा हुआ शीशा क्या जुड़ सकता है?

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What can fix broken glass टूटा हुआ शीशा क्या जुड़ सकता है?

What can fix broken glass देश क्या होता है, इसे भक्त नहीं समझ सकते हैं। इतिहास और हिंदू का सत्य है कि वह हमेशा अपने आपको भगवान के अवतार राजा के सुपुर्द किए रहा है।

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What can fix broken glass कलियुग ने उसकी बुद्धि को ऐसा भ्रष्ट किया है कि सोचने-समझने की बेसिक चेतना भी नहीं। 1962 में चीन ने हमला बोल भारत की जमीन कब्जाई तब भी हिंदू का भगवान नेहरू से मोहभंग नहीं हुआ।

What can fix broken glass सन् 2020 में चीन वापिस लद्दाख में दादागिरी कर भारतीय क्षेत्र में घुसा तब भी जनता मानने को तैयार नहीं है कि चीन ने कब्जा किया है। इसलिए क्योंकि भगवानजी मोदी कह रहे हैं कि चीन घुसा ही नहीं। ऐसे ही चीन का सत्य है कि वह भारत को दुह रहा है। भारत के कारोबार से उसके कल-कारखाने अमीर बन रहे हैं, जबकि भारत आर्थिक तौर पर गुलाम होता हुआ है मगर किस भक्त में इसकी चेतना है?

What can fix broken glass ऐसी दर्जनों बातें गिनाई जा सकती हैं, जो पिछले आठ वर्षों में भारत के गंवाने, टूटने और अंतत: गृहयुद्ध की और बढऩे की झांकियां हैं। लेकिन हिंदू की कलियुगी भक्ति की आदत से ब्रेनवाश ऐसा है जो सामने शीशा टूटा हुआ हुआ है मगर उसमें भी न्यू इंडिया झिलमिलाता देख रहा है। 140 करोड़ लोगों के कंगले होते जाने की रियलिटी के बावजूद प्रधानमंत्री के मुंह से आर्थिकी के पांचवें नंबर की हो जाने की बात सुन रहा है। या दिल्ली की एक सडक़ को नया बनाने का मामूली काम हिंदुओं के लिए मानों स्वर्ग का रास्ता!


इन बातों और चंद जुमलों से परमानंद अवस्था के भक्त गण आज की रियलिटी है। ठीक विपरीत सत्ता मंदिर से दूर की रियलिटी क्या है? पहली बात कश्मीर घाटी लें या केरल या नॉर्थ ईस्ट या उत्तर भारत बनाम दक्षिण भारत सब तरफ लोगों के दिल-दिमाग में रिश्तों के शीशे टूटे हैं।

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हां, मेरी इस बात को नोट करके रखें कि उत्तर भारत का भक्त हिंदू एक तरफ है बाकी पूरी आबादी में अलग-अलग कारणों व अनुभवों से एकुजटता के शीशे चटख चुके हैं। मोदी-शाह भले पूरे देश में सत्ता बना लें लेकिन उत्तर और दक्खन, दिल्ली और नॉर्थ-ईस्ट, हिंदू और मुस्लिम सभी के परस्पर रिश्तों की सोच में बिखराव के आइडिया पसरते हुए हैं।

पूर्वोत्तर राज्यों में मोदी-शाह ने सरकारें भले अपनी बना ली हों लेकिन वहां लोगों में चीन का असर फैलता हुआ है तो दिल्ली की सत्ता के तौर-तरीकों को लेकर मन ही मन अलग घाव है। ऐसे ही तमिल, तेलुगू, मलयाली, कन्नड, मराठा मानुष याकि विन्ध्य पार के एलिट-आम जन में दिल्ली सल्तनत को लेकर खटास है। वह खटास अभी जरूर सतह से नीचे है लेकिन भविष्य के लिए विपदा होगी।

 

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