गरियाबंद जिले में बिजली बिल वृद्धि के खिलाफ आयोजित कांग्रेस के विरोध प्रदर्शन ने सिर्फ एक सामाजिक मुद्दे को नहीं छुआ, बल्कि पार्टी के संगठनात्मक चुनाव से पहले अंदरूनी राजनीति और शक्ति समीकरण को भी उजागर कर दिया।

जिला मुख्यालय में हुए इस विरोध कार्यक्रम में कांग्रेस के जिला अध्यक्ष पद के लगभग सभी प्रमुख दावेदार एक मंच पर नज़र आए। लेकिन जब कार्यक्रम के बीच में पूर्व विधायक अमितेश शुक्ल के पुत्र भवानी शंकर शुक्ल की अप्रत्याशित एंट्री हुई, तो सियासी समीकरणों में अचानक बदलाव महसूस किया गया।
बिजली बिल के विरोध में दिखा शक्ति प्रदर्शन
इस विरोध में भावसिंह साहू, सुखचंद बेसरा, शैलेंद्र साहू, युगल पांडेय और नीरज ठाकुर जैसे दावेदारों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। प्रदर्शन के बहाने सभी नेताओं ने कार्यकर्ताओं के बीच अपनी पकड़ और जनसमर्थन दिखाने का प्रयास किया।

स्थानीय कार्यकर्ताओं के अनुसार, लंबे समय से निष्क्रिय पड़े कांग्रेस कार्यालय में इतनी भीड़ और जोश लंबे वक्त बाद देखने को मिला।

भवानी शुक्ला की सक्रियता से हिले समीकरण
करीब दो सप्ताह पहले तक जिला अध्यक्ष पद के लिए युगल पांडेय और नीरज ठाकुर को मजबूत दावेदार माना जा रहा था। लेकिन भवानी शुक्ला की सक्रियता ने कई संभावित चेहरों की रणनीति को चुनौती दी है।
हालांकि शुक्ल परिवार की राजनीति की जड़ें राजिम में हैं, लेकिन श्यामा चरण शुक्ल जैसे कद्दावर नेताओं की विरासत का असर आज भी गरियाबंद की कांग्रेस राजनीति पर गहरा है। भवानी की एंट्री को इसी प्रभाव का विस्तार माना जा रहा है।
आदिवासी और महिला नेतृत्व की गैरमौजूदगी पर उठे सवाल
गरियाबंद जिले में आदिवासी, महिला और अल्पसंख्यक वर्ग की भागीदारी हमेशा से संवेदनशील मुद्दा रही है। अब तक ओंकार शाह ही एकमात्र आदिवासी जिला अध्यक्ष रहे हैं। इस बार आदिवासी नेताओं की चुप्पी चर्चा में है।
महिला और अल्पसंख्यक वर्ग से कोई दावेदारी सामने न आना भी संगठनात्मक संतुलन पर सवाल खड़ा करता है। एससी वर्ग से सुखचंद बेसरा ही एकमात्र दावेदार हैं, जबकि सामान्य वर्ग से युगल पांडेय, नीरज ठाकुर, भावसिंह साहू और शैलेंद्र साहू के बीच मुकाबला माना जा रहा है।
संगठन चुनाव में पहली बार होगा व्यापक मूल्यांकन
इस बार कांग्रेस का जिला अध्यक्ष सिर्फ नेतागिरी या सिफारिश से तय नहीं होगा। एआईसीसी ने राजस्थान की वरिष्ठ नेत्री रिहाना रियाज चिश्ती को पर्यवेक्षक नियुक्त किया है, जो 9 से 12 अक्टूबर तक जिले के सभी ब्लॉकों में जाकर सीधे जमीनी फीडबैक लेंगी।
उनका आकलन नेताओं के आचरण, कार्यकुशलता, नेतृत्व क्षमता और संगठन के प्रति निष्ठा पर आधारित होगा। इसके साथ ही धन बल, गुटबाजी और अनुचित सिफारिश जैसे तत्वों के आधार पर दावेदारों के अंकों में कटौती की व्यवस्था भी की गई है।
एकजुटता अगर कायम रही, तो कांग्रेस को मिल सकता है नया संबल
स्थानीय कार्यकर्ताओं का कहना है कि अगर बिजली बिल आंदोलन के दौरान दिखी यह एकजुटता संगठनात्मक चुनाव तक बनी रही, तो पार्टी की आंतरिक मजबूती में बड़ा बदलाव आ सकता है।