अंधविश्वास बना जानलेवा, पीलिया से पीड़ित अधेड़ ने की आत्महत्या

Death due to diarrhea in Bilaspur :



सरगुजा। छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में अंधविश्वास और समय पर उपचार नहीं मिलने के कारण एक बेहद दुखद घटना सामने आई है। पीलिया से पीड़ित एक अधेड़ व्यक्ति का परिजनों ने चिकित्सकीय इलाज कराने के बजाय झाड़-फूंक कराई। बीमारी और लगातार बिगड़ती हालत से मानसिक रूप से परेशान होकर अधेड़ ने चाकू से अपना गला काट लिया। गंभीर रूप से घायल व्यक्ति की इलाज के दौरान अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मौत हो गई।

मृतक की पहचान अबू चंद यादव के रूप में हुई है, जो मूल रूप से धरमजयगढ़ का निवासी था और पिछले करीब दो वर्षों से पत्थलगांव में अपनी बड़ी बहन के घर रह रहा था। परिजनों के अनुसार, लगभग एक सप्ताह पहले उसे पीलिया होने की शिकायत हुई थी, लेकिन इलाज कराने के बजाय झाड़-फूंक और घरेलू टोटकों का सहारा लिया गया।

परिजनों का कहना है कि झाड़-फूंक के बावजूद उसकी हालत लगातार बिगड़ती गई। कमजोरी, शारीरिक पीड़ा और बीमारी से मानसिक रूप से परेशान होकर रविवार को उसने चाकू से अपना गला काट लिया। घटना के बाद अत्यधिक रक्तस्राव होने पर परिजन उसे तत्काल पत्थलगांव अस्पताल लेकर पहुंचे, जहां प्राथमिक उपचार के बाद गंभीर स्थिति को देखते हुए उसे अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल रेफर किया गया।

अंबिकापुर में डॉक्टरों ने उसे बचाने का हर संभव प्रयास किया, लेकिन इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। चिकित्सकों के अनुसार, गले की नस कटने से हुए अत्यधिक रक्तस्राव के कारण उसकी जान नहीं बचाई जा सकी।

घटना की सूचना मिलने पर पुलिस ने जांच शुरू की। पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को सौंप दिया गया है और परिजनों के बयान दर्ज किए गए हैं। परिजनों ने आशंका जताई है कि पीलिया से लंबे समय तक राहत न मिलने और मानसिक तनाव के कारण ही मृतक ने यह कदम उठाया।

डॉक्टरों ने बताया कि पीलिया कोई रहस्यमय बीमारी नहीं, बल्कि लिवर से जुड़ा संक्रमण है, जो आमतौर पर हेपेटाइटिस ए या ई वायरस के कारण होता है और दूषित पानी व भोजन से फैलता है। समय पर जांच और सही चिकित्सा उपचार से यह बीमारी पूरी तरह ठीक हो सकती है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि सरगुजा और आसपास के इलाकों में आज भी पीलिया जैसी बीमारियों में झाड़-फूंक कराने की प्रवृत्ति देखी जाती है, जो पूरी तरह अंधविश्वास है। यह घटना न केवल एक परिवार की त्रासदी है, बल्कि समाज के लिए भी चेतावनी है कि बीमारी की स्थिति में अंधविश्वास छोड़कर वैज्ञानिक और चिकित्सकीय उपचार को प्राथमिकता देना ही जीवन बचाने का सही रास्ता है।

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