8वीं तक के छात्र फिर पढ़ेंगे ‘सहायक वाचन’ — अगले शैक्षणिक सत्र से होगी शुरुआत, डाइट प्राचार्यों को सौंपा गया किताब लेखन का जिम्मा

बिलासपुर। आगामी शैक्षणिक सत्र 2025–26 से प्रदेश के सरकारी स्कूलों में कक्षा 3वीं से 8वीं तक के विद्यार्थियों को फिर से ‘सहायक वाचन’ पढ़ाया जाएगा। प्रदेश सरकार के निर्देश पर राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (SCERT), छत्तीसगढ़ ने इस दिशा में तैयारी शुरू कर दी है। नवंबर माह से पुस्तकों के लेखन कार्य की शुरुआत होगी, जिसे वर्तमान सत्र के अंत तक पूरा कर लिया जाएगा।


डाइट प्राचार्यों को सौंपा गया लेखन का जिम्मा

‘सहायक वाचन’ पुस्तकों का लेखन सभी जिलों के डाइट (DIET) प्राचार्यों को सौंपा गया है।
इसके लिए राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (SCERT) ने जिलों से स्थानीय सामग्री, सांस्कृतिक जानकारी और ऐतिहासिक विवरण एकत्रित करने के निर्देश दिए हैं।
परिषद के संयुक्त संचालक शिक्षा किशोर कुमार ने सभी जिलों को आवश्यक जानकारी भेजने के लिए पत्र जारी किया है।


SCERT ने जिलों से मांगी यह जानकारियां

पुस्तक लेखन में स्थानीय संदर्भों को शामिल करने के लिए जिलों से निम्न जानकारियां मांगी गई हैं —

  • स्थानीय निवासियों का जीवन, उनका खानपान, रहन-सहन, रीति-रिवाज और विवाह परंपराएं।
  • तीज-त्योहार, लोक संस्कृति, नृत्य, गीत, वाद्ययंत्र, नाट्यशैली और पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियाँ।
  • जिले की भौगोलिक विशेषताएं, पुरातत्व स्मारक, उनका इतिहास, फसलें, वनस्पतियां और उनके औषधीय गुण।
  • खनिज संपदा, शहरों का इतिहास, नदियों का उद्गम और गमन स्थल, पर्यटन स्थल और सांस्कृतिक धरोहरें।
  • क्षेत्र में पाए जाने वाले विशेष जीव-जंतु और पक्षियों का विचरण क्षेत्र।
  • क्रांतिकारी शहीदों और महापुरुषों की जीवन गाथा और उनके योगदान।
  • आदिवासी संस्कृति से आधुनिकता की ओर संक्रमण, और उन तत्वों की चर्चा जो धीरे-धीरे विलुप्त हो रहे हैं।

स्थानीय ज्ञान और परंपरा पर जोर

परिषद का उद्देश्य है कि छात्रों को अपने क्षेत्र, संस्कृति और परंपरा से जुड़ा ज्ञान प्राप्त हो सके।
नई पुस्तकों में भारतीय ज्ञान परंपरा, स्थानीय इतिहास और संस्कृति की विविधता को प्रमुखता दी जाएगी, ताकि विद्यार्थी अपने समाज और परिवेश को गहराई से समझ सकें।


क्या है ‘सहायक वाचन’

‘सहायक वाचन’ स्कूलों में ऐसी अतिरिक्त पुस्तक होती है, जो विद्यार्थियों में पठन कौशल और स्थानीय ज्ञान विकसित करने में मदद करती है।
पहले यह पाठ्यक्रम का हिस्सा था, लेकिन कुछ साल पहले इसे हटा दिया गया था। अब इसे नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अनुरूप फिर से शामिल किया जा रहा है।

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