Story of Karnataka CM Siddaramaiah : कर्नाटक के होने वाले CM सिद्धारमैया की सियासी कहानी जानिए…..

Story of Karnataka CM Siddaramaiah : कर्नाटक के होने वाले CM सिद्धारमैया की सियासी कहानी जानिए.....

Story of Karnataka CM Siddaramaiah : कर्नाटक के होने वाले CM सिद्धारमैया की सियासी कहानी जानिए…..

Story of Karnataka CM Siddaramaiah : कर्नाटक में कांग्रेस ने 224 विधानसभा सीटों में से 135 सीटों पर जीत हासिल की है. जबकि बीजेपी को सिर्फ 66 सीट मिली है. कांग्रेस में सीएम पद को लेकर जोर आजमाइश चल रही है. सिद्धारमैया मुख्यमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदार हैं. सिद्धारमैया एक बार मुख्यमंत्री और दो बार डिप्टी सीएम रह चुके हैं. चलिए आपको कर्नाटक की सियासत के इस सबसे बड़े खिलाड़ी की कहानी बताते हैं.

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10 साल की उम्र तक नहीं हुई स्कूली शिक्षा-
Story of Karnataka CM Siddaramaiah : दिग्गज नेता सिद्धारमैया का जन्म आजादी से 12 दिन पहले यानी 3 अगस्त 1947 को कर्नाटक के मैसूर में हुआ था. सिद्धारमैया के पिता सिद्धारमे गौड़ा एक किसान थे. वो मैसूर के टी. नरसीपुरा के पास वरुणा होबली में खेती करते थे. सिद्धारमैया की मां का नाम बोरम्मा था. 10 साल की उम्र तक सिद्धारमैया की कोई औपचारिक स्कूली शिक्षा नहीं हुई थी. इसके बाद गांव के स्कूल में उनका पढ़ाई शुरू हुई. सिद्धारमैया ने बीएसएसी की पढ़ाई की. उसके बाद मैसूर विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री ली. उन्होंने मशहूर वकील चिक्काबोरैया के अधीन जूनियर थे. सिद्धारमैया ने कुछ समय कानून के टीचर भी रहे. हालांकि जल्द ही इससे उनका मन उब गया और वो सियासत में किस्त आजमाने निकल पड़े.

कुरुबा समुदाय से आते हैं सिद्धारमैया-
सिद्धारमैया कर्नाटक के कुरुबा समुदाय से आते हैं. सूबे में तीसरी सबसे बड़ी आबादी इस समुदाय की है. जब से सिद्धारमैया ने कांग्रेस का दामन थामा है, तब से इस समुदाय का ज्यादातर समर्थन कांग्रेस को मिल रहा है.

Story of Karnataka CM Siddaramaiah :

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सिद्धारमैया का सियासी सफर-
कांग्रेस के बड़े नेता सिद्धारमैया का सियासी सफर साल 1983 में शुरू हुआ, जब वो पहली बार कर्नाटक विधानसभा के लिए चुनकर आए. हालांकि वो पहली बार निर्दलीय विधायक चुने गए थे. लेकिन इसके बाद उनका कद लगातार बढ़ता गया. साल 1994 में कर्नाटक में जनता दल की सरकार बनी. सिद्धारमैया को इस सरकार में डिप्टी सीएम का पद मिला.
साल 1999 में जब एचडी देवगौड़ा ने जनता दल सेकुलर का गठन किया तो सिद्धारमैया भी उनके साथ चले गए. लेकिन धीरे-धीरे देवगौड़ा और सिद्धारमैया के बीच दूरियां बढ़ती गई और सिद्धारमैया ने जेडीएस का दामन छोड़ दिया.

2008 में थामा दामन, 2013 में कांग्रेस ने बनाया सीएम-
सिद्धारमैया करीब ढाई दशक तक जेडीएस के साथ जुड़े रहे. लेकिन उसके बाद उनका इस पार्टी से मोहभंग हो गया. जेडीएस का साथ छोड़ने के बाद सिद्धारमैया ने कांग्रेस की तरफ अपना रूख किया. साल 2008 में उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया. कांग्रेस पार्टी ने उनको इसका इनाम भी जल्दी ही दे दिया. 5 साल बाद ही साल 2013 में कांग्रेस ने सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बना दिया. 5 साल तक उन्होंने कर्नाटक पर शासन किया. हालांकि 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और सूबे में बीजेपी की सरकार बन गई. लेकिन एक बार फिर कांग्रेस की जीत हुई है और सिद्धारमैया सीएम की रेस में सबसे आगे हैं.

चावल योजना और इंदिरा कैंटीन के बटोरीं सुर्खियां-
मुख्यमंत्री रहने के दौरान सिद्धारमैया ने गरीबों के लिए कई योजनाएं चलाई. जिसको लेकर उनकी खूब तारीफ हुई. गरीबों के लिए उन्होंने अन्न भाग्य योजना चलाई. जिसके तहत गरीबों को 7 किलोग्राम चावल दिया जा रहा था. इसके चलते सिद्धारमैया गरीबों के मसीहा बनकर उभरे. इसके अलावा उन्होंने स्कूल जाने वाले छात्रों को 150 ग्राम दूध देने की योजना चलाई. सिद्धारमैया की सरकार ने इंदिरा कैंटीन की भी शुरुआत की.

दो बार डिप्टी सीएम, एक बार सीएम रहे-
सिद्धारमैया ने 12 बार चुनाव लड़ा. जिसमें 9 बार उनको जीत मिली. जबकि 3 बार हार का सामना करना पड़ा. सिद्धारमैया 2 बार डिप्टी सीएम और एक बार मुख्यमंत्री रहे हैं. पहली बार 16 मई 1996 से 22 जुलाई 1999 तक सिद्धारमैया कर्नाटक के डिप्टी सीएम रहे. जबकि दूसरी बार 28 मई 2004 से 5 अगस्त 2005 तक डिप्टी सीएम के पद पर रहे. पहली बार वो जनता दल की सरकार और दूसरी बार जेडीएस की सरकार में डिप्टी सीएम बने. साल 2013 में कांग्रेस ने उनको मुख्यमंत्री बनाया.

सिद्धारमैया की फैमिली-
सिद्धारमैया की पत्नी का नाम पार्वती है. उनके दो बेटे हुए. बड़े बेटे राकेश को उनका सियासी उत्तराधिकारी माना जा रहा था. लेकिन साल 2016 में 38 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई. जबकि दूसरे बेटे यतींद्र साल 2018 में विधायक चुने गए थे. हालांकि साल 2023 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उनको टिकट नहीं दिया.

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