Srimad Bhagwat Katha भगवान श्रीकृष्ण को करना पड़ा था अपने ही मामा कंस का वध- पं.दीपक कृष्ण महराज
Srimad Bhagwat Katha जैजैपुर/ ग्राम पंचायत कोटेतरा के लोचन साहू के घर मे श्रीमद्भागवत कथा के व्यासपीठ पं.दीपक कृष्ण महराज ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण की अद्भुत लीला कभी माखन चोर की लीला तो कभी चक्रधारी का रुप,कभी पांडवों के दूत बनकर कौरवों की सभा में विराट रुप दिखाना तो कभी परिवार के मोह में फंसे अर्जुन को गीता का ज्ञान देना.मुरलीधर की ऐसी ही एक लीला थी उनके अपने ही मामा कंस के वध की.अपने अत्याचारों से सभी को कष्ट पहुंचाने वाले कंस का वध कृष्ण जी ने कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को किया था इसके साथ ही कृष्ण जी ने कंस का आतंक खत्म कर भयाक्रांत प्रजा को अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी.
Srimad Bhagwat Katha भगवान श्रीकृष्ण का संपूर्ण जीवन लीलाओं से भरा हुआ था उनके जन्म से लेकर अंतिम वक्त तक सभी कुछ उनकी लीला ही नजर आती है.कृष्ण जी का जन्म भी विकट परिस्थितियों में हुआ था जिसकी वजह दुष्ट मामा कंस ही था.एक भविष्यवाणी की वजह से राजा कंस अपने ही भांजे श्रीकृष्ण को मारना चाहता था,इसके लिए उसने कई प्रयास भी किए लेकिन आखिर में उसका अंत भगवान श्रीकृष्ण के हाथों ही हुआ.कंस के आठ भाई और पांच बहनें थीं.वह भाई-बहनों में सबसे बड़ा था.
उसकी बहनों का विवाह वसुदेव जी के छोटे भाईयों से हुआ था कंस इतना दुष्ट था कि शूरसेन जनपद का राजा बनने के लिए उसने अपने ही पिता उग्रसेन को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया था कंस का अपनी चचेरी बहन देवकी से काफी स्नेह था,लेकिन एक भविष्यवाणी ने सबकुछ बदल दिया भविष्यवाणी में देवकी के 8वें पुत्र के हाथों कंस वध की बात कही गई थी मौत की भविष्यवाणी सुन कंस बौखला गया और उसने अपनी ही बहन देवकी और उनके पति वसुदेव को बंदी बनाकर कारागृह में डाल दिया कंस ने कारागृह में जन्में देवकी के 6 पुत्रों को मार दिया भगवान विष्णु माता देवकी के गर्भ में स्वय आकर उनकी 8वीं संतान बने.
भविष्यवाणी में 8वें पूत्र द्वारा ही वध करने का कहा गया था जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ तो कारागार खुद ब खुद खुल गए और सभी सैनिक सो गए. वसुदेव जी बालकृष्ण को नंदबाबा के यहां पहुंचाने में सफल हुए.कंस को जब श्रीकृष्ण जी के गोकुल में होने की सूचना मिली तो उसने उन्हें मारने के लिए कई प्रयास किए.
कई असुरों को भेजा लेकिन कृष्ण लीला के आगे उसकी एक भी नहीं चली एक बार कंस ने कृष्णजी को मारने के लिए अपने दरबार में आमंत्रित किया.यहीं पर कृष्णजी ने मामा कंस का वध कर प्रजा को उसके अत्याचारों से मुक्त कराया था.