समाज को सबसे ज्यादा जरूरत है चारित्रिक उत्थान की- जन्मजय नायक

सदव्यवहार व विचार के बिना चारित्रिक उत्थान संभव नहीं

सरायपाली – इन दिनों समाचार पत्रों एवं सोशल मीडिया पर किस्म-किस्म के समाज सेवकों की सामाजिक सेवा खूब देखने व पढ़ने को मिल रही है और ये सामाजिक सेवक स्वयं अपने फोटो और विडियो जमकर शेयर करते नजर आ रहे हैं। समाज सेवा का खूब व झूठा प्रचार किये जाने की होड़ लगी है । किसी हॉस्पिटल में मरीजो को दो केला देते 10 कथित सेवा समिति फोटी खिंचाते दिखाई दे देंगे । इसी तरह के बहुत से उदाहरण प्रतिदिन दिखाई देते हैं । यह सेवा भावना नही प्रचार भावना है ।”
इस संदर्भ में वंदे मातरम् सेवा संस्थान छ.ग के उपाध्यक्ष एवं गोपनाथ आश्रम विद्या मंदिर हा.से.स्कूल जोगनीपाली के संचालक जन्मजय नायक ने संस्थान में आयोजित एक कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त करते हुवे कहा कि-अगर हम समाज सेवी हैं तो हमें इसका प्रचार-प्रसार क्यों करना पड़ता है? आज आप किसी भी शहर में चले जाओ,समाज सेवियों के होर्डिंग्स आपको लिखे हुए मिलेंगे।ये समाज सेवी,फलाने समाज सेवी,ये फलाने समाज के समाज सेवी।जब आप समाज के सेवी हो तो समाज के सेवा करने का प्रचार समाज को करना चाहिए। नायक ने आगे कहा है आज हमारा समाज कहाँ जा रहा है..?हमारे समाज का चारित्रिक पतन भयंकर हो रहा हैऔर इसे दूर करना सबसे बड़ी सामाजिक सेवा होगी,तभी सामाजिक उत्थान होगा। नायक ने सवालोत्तर करते हुए कहा है-समाज सेवा किसको कहते हैं..?समाज की सेवा की जरूरत किसको है..?जो हमारे समाज में सबसे नीचे खड़ा है,छोटे लेबल पे है।जिसके पास एक समय की रोटी भी नहीं है,हम उसकी सेवा करें।हम उसके साथ खड़े रहें पर उसका प्रचार न करें।बड़ों के यहाँ जाके सैलुट मत मारो वह तो अपने आप जो कुछ करना है कर लेंगे।नायक ने आगे कहा है मैं एक जगह समाज सेवा देख रहा था जहॉं एक आदमी को एक पैकेट में 15 केला दे रहे थे और फोटो खिंचवाने वाले 35 अब ये सेवा है या प्रदर्शन..?आज समाज में सबसे बड़ी सामाजिक सेवा कीआवश्यकता है तो वो है सामाजिक चारित्रिक उत्थान की जो पतन हो चुका है।इतना लंबा पतन है कि बाप के यहाँ बेटी सुरक्षित नहीं,ससुर के साथ बहु सुरक्षित नहीं,भाई के साथ बहन सुरक्षित नहीं,बेटे के साथ माँ सुरक्षित नहीं।इससे बड़ा और क्या पतन होगा..!ये भारत है..?लंका में भी इतने बुरे काम नहीं होते थे।लंका में भी सूर्पनखा सुरक्षित थी।हम रावण को राक्षस कहते हैं,क्या कभी हम अपने अंदर झांके कि हम लोग कितने बड़े राक्षस हैं।हम किसी की स्त्री के सामने चले जाएँ तो वो डर जाती है पता नहीं ये क्या करेगा!और हम कहते हैं सामाजिक उत्थान।चार केले,कुछ कापी-कलम बाँटकर समाज सेवी नहीं हो सकते न ही समाज का कुछ उत्थान हम कर सकते हैं।आज अगर सबसे ज्यादा जरूरत है समाज को उत्थान की तो चारित्रिक लेबल पे।जहॉं बहन-बेटियाँ निकल जाएँ,तो ये कहें कि मेरे बाप,मेरे भाई, मेरे चाचा,खड़े हैं।सब समाज के लोग मेरे अपने हैं।किसी को भी नजर चुराना न पड़े,तब समझना हमारा भारत विकास कर रहा ।