Signal or an event संकेत या एक घटना?

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Signal or an event संकेत या एक घटना?

Signal or an event भारत पश्चिम और रूस-चीन के खेमों में बढ़ते टकराव के बीच दोनों से लाभ उठाने की रणनीति पर चलता रहा है। अब तक ये रणनीति कारगर थी। लेकिन अब हालात बदल रहे हैं।

Signal or an event भारत की एक पेट्रोकेमिकल कंपनी पर प्रतिबंध लगाने का अमेरिका के फैसले को संभवत: पश्चिमी देशों में भारत के प्रति बढ़ती बेसब्री का संकेत माना जाना चाहिए। अमेरिका ने ऐसा ही संकेत पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमानों के 45 करोड़ डॉलर के पाट-पुर्जे देने की घोषणा करके भी दिया था।

यही नहीं, अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस बारे में पूछे जाने पर भारत और पाकिस्तान दोनों को समान महत्त्व का मित्र देश बता दिया। ऐसा वर्षों बाद हुआ है, जब अमेरिका ने ऐसा रुख दिखाया है। हकीकत यह है कि यूक्रेन युद्ध के मामले में भारत के तटस्थ रुख ने अमेरिका और पश्चिमी खेमे की गणनाएं बिगाड़ दीं।

चीन के खिलाफ अपनी लामबंदी में अमेरिका ने भारत को मुख्य मोर्चा बनाने की रणनीति बनाई थी। लेकिन यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद बनी नई भू-राजनीतिक पररिस्थितियों के बीच अब उसका इस रणनीति पर भरोसा नहीं रह गया है। जाहिर है, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल में जिस आक्रामक लहजे में पश्चिमी अपेक्षाओं के जवाब दिए हैं, वह भी अमेरिका और यूरोपीय राजधानियों में नागवार गुजरा होगा।

तो अब अमेरिका ने संकेत देना शुरू किया है। भारत की मुश्किल यह है कि वह पश्चिम और रूस-चीन के खेमों में बढ़ते टकराव के बीच दोनों से लाभ उठाने की रणनीति पर चल रहा है। कहा जा सकता है कि अब तक ये रणनीति कारगर थी। लेकिन यह तो आरंभ से तय था कि दो नावों पर एक साथ सवारी नहीं की जा सकती- खास कर वे नौकाएं अलग-अलग दिशाओं में जा रही हों।

तो संभवत: अब वो वक्त आ गया है कि जब भारत को या तो इस रणनीति में असाधारण कौशल दिखाना होगा या उसे दोनों में से किसी एक खेमे को चुनना होगा। दरअसल, भारत को सबसे पहले इस भ्रम से उबरने की जरूरत है कि उसकी बड़ी अर्थव्यवस्था और भू-राजनीतिक स्थिति ऐसी है कि दुनिया की कोई ताकत उसकी उपेक्षा करके आगे नहीं बढ़ सकती।

सामान्य समय में ऐसी धारणाओं को लेकर चला जा सकता है, लेकिन जब दुनिया स्पष्टत: दो खेमों में बंट रही हो, तो उस समय साफ नीति और ठोस रुख तय करना ही एकमात्र रास्ता होता है।

 

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