Shraadhpaksha : मातृ-नवमी तिथि श्राद्ध : नौ माह गर्भ में जीवन देने के बदले में दिवंगत मां के प्रति आभार और श्रद्धा प्रकट करने का भाव समाहित….

Shraadhpaksha :

Shraadhpaksha : श्राद्धपक्ष ( पितृपक्ष )

 मातृ-नवमी तिथि श्राद्ध 

विद्वानों ने त्वमेव माता को सबसे पहले स्थान दिया, उसके बाद पिता, बंधु, सखा, विद्या और धन को

पुत्र कुपुत्र हो सकता है, माता कुमाता नहीं हो सकती

 

Shraadhpaksha : पितृपक्ष में माता के प्रति श्रद्धा का एक विशेष दिन मातृ-नवमी तिथि निर्धारित है। इसके पीछे निश्चित रूप से नौ माह गर्भ में जीवन देने के बदले में दिवंगत मां के प्रति आभार और श्रद्धा प्रकट करने का भाव समाहित है। विद्वानों ने त्वमेव माता को सबसे पहले स्थान दिया, उसके बाद पिता, बंधु, सखा, विद्या और धन को। धर्मग्रंथों में ‘पुत्र कुपुत्र हो सकता है, माता कुमाता नहीं हो सकती’ के माध्यम से ऋषियों ने माता की महिमा बढ़ाई है। मंत्रों और श्लोकों में पहले मातृशक्ति का उल्लेख किया गया है। कहीं भी उल्लेख होता है तो ‘सीताराम, राधाकृष्ण, लक्ष्मीनारायण ‘शब्दों का ही उच्चारण किया जाता है। इस दृष्टि से माता के प्रति हर स्थिति में सम्मान का भाव रखने का निर्देश मनीषियों ने दिया है।

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अतः आज के दिन आप अपने मातृवंश पूर्वजों का श्राद्ध बड़ी ही श्रद्धा के साथ करें। श्राद्ध और तर्पण न भी कर सकें तो उनके नाम पे पंचबलि और गीता पाठ जरूर करें।