राजीव गांधी हत्या का अनदेखा सच! ‘द हंट’ सीरिज में चौंकाने वाले खुलासे”

वैसे तो इस वेव सीरिज में सभी कलाकारों का अभिनय लाजवाब है पर मैं बात कर रहा हूं अपने अनुज जैसे आत्मीय दानिश इकबाल की। दानिश जामिया मिलिया इस्लामिया वि.वि. रिल्ली में मास कम्युनिकेशन पढ़ाते हैं। एनएसडी से पास आउट दानिश नाटकों से जुड़े हैं बहुत बार रायपुर आ चुके हैं। दानिश इकबाल ने जशपुर की पृष्ठभूमि पर एक शानदार फीचर फिल्म ‘‘साधो’’ का निर्देशन किया जिसे हमने रायपुर फिल्म फेस्टीवल में दिखाया, जिसे दर्शकां ने बेहद पसंद किया।

द हंट में वरिष्ठ सीबीआई अधिकारी आमोद कंठ का रोल प्ले करने वाले दानिश इकबाल कहते हैं कि अमोद कंठ की भूमिका निभाना उनके लिए सम्मानजनक और थोड़ा डरावना दोनों थे।

REAL AMOD KANTH

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तो एक दिन दानिश ने अपनी नई वेव सीरिज द हंट की जानकारी देते हुए कहा कि भैय्या इसे देखना। इसके पहले भी दानिश की महारानी-2 में दिलशाद मिर्जा की भूमिका निभाई थी, उसे बहुत पसंद की गई। इंग्लैड में नाटकों की पढ़ाई करने वाले दानिश इकबाल ने ‘द माइटी हार्ट, साधो, ग्रेंड फेस्टिवल, अरण्यक’ में रोल किया। इलाहाबाद के रहने वाले दानिश पिछले 30 सालों से नाटकों में सक्रिय है। तो दानिश के कहने पर जब मैने द हंट-द राजीव गांधी एसेसिनेशन फेस, सीरिज देखी तो एक साथ पूरे सात एपिसोड वाली सीरिज देख डाली। यदि इसे आपने नही देखा है तो जरूर देखें। आपको राजीव गांधी की सहजता, लिट्टे का नेटवर्क और कार्यप्रणाली के बारे में पता चलेगा। साथ ही आपको ब्यूरोक्रेसी और खास करके पुलिस तंत्र के भीतर की राजनीति, क्रेडिट लेने की होड़ भी दिखेगी। सबसे मोस्ट आतंकवादी शिवरासन की घेराबंदी के बाद उस पर लंबे समय तक अटैक नहीं करने को लेकर उपर से आर्डर नहीं आने और शिवदासन को जिंदा पकडऩे की कथित जिद के बावजूद शिवरासन सहित पूरी गैंग की सायनाइड खकर आत्महत्या और एसआईटी के हाथों कोई सबूत नहीं आना, ऐसे बहुत से प्रसंग फिल्म में है।

फिल्म महारानी में दानिश इकबाल

यह थ्रिलर ड्रामा देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या और उसकी जांच के इर्द-गिर्द बुनी गई है। कहानी के केंद्र में हत्या की जांच कर रहे सीबीआई अधिकारियों की टीम है। वह दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले को सुलझाने के लिए 90 दिनों के एक मिशन पड़े हैं। 

सीबीआई की जांच टीम में अपने सारे आईजीपीडीआर कार्तिकेयन की भूमिका में अमित सियाल कुछ सबसे तेज दिमाग वाले लोग शामिल करते हैं। डीआईजी आमोद कांत (दानिश इकबाल), जिन्होंने पहले इंदिरा गांधी की हत्या का मामला सुलझाया था। डीआईजी राजू (गिरीश शर्मा), जो जम्मू और कश्मीर के आतंकवादियों से निपटने में विशेषज्ञ हैं। डीएसपी राघोथमन (बागवती पेरुमल), जो अपराधयिों से पूछताछ में माहिर हैं, और एसपीआई अमित वर्मा (साहिल वैद), जिन्होंने जनरल अरुण वैद्य के हत्यारे और खालिस्तानी आतंकवादी का पता लगाया। आतंकवादियों के मास्टर माइंड के रूप में शिवदासन के रोल में शफीक मुस्तफा ने, सुभा के रोल में गौरी पदम कुमार ने बेहतरीन रोल प्ले किया।

सात एपिसोड की ‘द हंट’ वेब सीरीज सिनेमैटोग्राफर संग्राम गिरी ने 1990 के दशक के तमिलनाडु को बड़े ही प्रामाणिक ढंग से कैद किया है। तापस रेलिया का संगीत कहानी के हिसाब से मूड को सेट करता है। सीरीज की कास्टिंग बिल्कुल सही और बेहतरीन है। अमित सियाल, भगवती पेरुमल, साहिल वैद और दानिश इकबाल, सीबीआई अधकिारियों के अपने किरदारों में दृढ़ विश्वास लाते हैं और इन्हें जीवंत करते हैं। यही काम विद्युत गार्गी ने कमांडो के रूप में किया है। घमंडी शिवरासन के रूप में शफीक मुस्तफा और उग्र लेकिन शांत स्वभाव वाली सुभा के रोल में गौरी पद्मकुमार ने भी छाप छोड़ी है।

‘द हंट – द राजीव गांधी एसेसिनेशन केस’ सीरीज साबित करती है कि एक मनोरंजक कहानी को रोमांचक बनाने के लिए हर बार और लगातार एक्शन की जरूरत नहीं होती। यह एक ऐसी थ्रिलर सीरीज है, जो आपको कम से कम एक बार देखने के लिए मजबूर कर देती है।  यह भी बताते चले की 2009 में हुआ लिट्टे का खात्मा और प्रभाकरन की मौत हुई। 1990 और 2000 के दशक में लिट्टे और सरकार के बीच कई बार सीजफायर की बात हुई और कई बार टूटी। लिट्टे के लड़ाकों औरसरकारी बलों के बीच भारी लड़ाई में हजारों लोग मारे गए। 2006 में यूरोपीय संघ ने प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों की सूची में शामिल कर लिया। इसके दो साल बाद 2008 में श्रीलंका के बलों को बड़ी सफलता मिली और लिट्टे के प्रमुख गढ़ों पर उसने कब्जा कर लिया। आखिरकार जनवरी 2009 में लिट्टे का प्रशासनिक केंद्र किलिनोच्ची शहर सरकार के नियंत्रण में आ गया। मई के मध्य में सैन्य बल विद्रोहियों के अंतिम गढ़ पर कब्जा करने में सफल रहा और लिट्टे नेता प्रभाकरन मारा गया।

रियल कार्तिकेयन

भारत सरकार ने लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई) पर प्रतिबंध को पांच साल के लिए बढ़ा दिया है। गृह मंत्रालय ने कहा है कि ये संगठन जनता के बीच अलगाववादी प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हुए तमिलनाडु में समर्थन आधार बढ़ा रहा है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 3 की उप-धारा (1) को लागू करते हुए ये प्रतिबंध बढ़ाया है। गृह मंत्रालय की अधिसूचना में कहा गया है कि लिट्टे अभी भी उन गतिविधियों में लिप्त है जो देश की अखंडता और सुरक्षा के लिए हानिकारक हैं। लिट्टे की 2009 में श्रीलंका में अपनी सैन्य हार हो गई थी लेकिन भारत सरकार मानती है कि उसने अभी भी ‘ईलम’ (तमिलों के लिए एक स्वतंत्र देश) की अवधारणा को नहीं छोड़ा है और गुप्त रूप से धन जुटाने के साथ-साथ संगठन को खड़ा करने की कोशिश में भी जुटा है।

लिट्टे इस समय भले ही बहुत ज्यादा सक्रिय नहीं दिखता है लेकिन एक समय इस संगठन और इसके नेता प्रभाकरन का ना सिर्फ श्रीलंका में आतंक था बल्कि दक्षिण भारत में भी ये एक्टिव थे। उत्तरी और पूर्वी श्रीलंका में एक स्वतंत्र तमिल राज्य, ईलम स्थापित करने की मांग करने वाले लिट्टे की स्थापना 1976 में वेलुपिल्लई प्रभाकरण ने की थी।

कुछ समय में ही लिट्टे दुनिया के सबसे मजबूत विद्रोही समूहों में से एक बन गया था। संगठन ने गुरिल्ला हमलों से श्रीलंका सरकार को चिंता में डाल दिया था। 1983 में संगठन ने 13 सैनिकों की हत्याकर दी थी, इसके बाद श्रीलंकाई सेना ने जवाबी हमला किया। इसके बाद काफी समय तक श्रीलंका सरकार और लिट्टे के बीच लड़ाई चली थी।

वेलुपिल्लई प्रभाकरण

वेव सीरीज की कहानी में शानदार ढंग से दिखाया गया है कि कैसे यह टीम कई पहेलियों को एक साथ जोड़ती है। अपने नेटवर्क का इस्तेमाल कर रुञ्जञ्जश्व के गुर्गों को ट्रैक करती है। ये वो गुर्गे हैं, जो अपनी चालाक युद्ध रणनीति के लिए कुख्यात हैं। साथ ही उन्हें बड़ी संख्या मे एक खास समूह के आम लोगों की सहानुभूति भी मिली हुई है। एक तरफ ष्टक्चढ्ढ और दूसरी तरफ रुञ्जञ्जश्व, दो समान रूप की अद्भुत ताकतों के बीच की यह लड़ाई पर्दे पर रोमांच और मनोरंजन दोनों लेकर आती है। 1985 तक श्रीलंका में जाफना प्रायद्वीप के अधिकांश हिस्से पर नियंत्रण कर चुका था। लिट्टे ने 1987 तक अपनेप्रतिद्वंद्वी तमिल संगठनों के लोगों को भी मार डाला था। लिट्टे के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए उस समय की भारत सरकार को अपनी सेना श्रीलंका भेजनी पड़ी थी। अक्टूबर 1987 में भारतीय शांति-रक्षा बल (आईपीकेएफ) ने लिट्टे से जाफना को छीन लिया था। हालांकि कुछ समय बाद 90 के दशक में फिर से लिट्टे की ताकत बढ़ी और उसने कई गुरिल्ला हमलों को अंजाम दिया।

निदेशक नागेश कुकुनूर अपने किरदारों के गहन और रोजमर्रा के पलों को एकसाथ दिखाने में सफल रहे हैं।  उदाहरण के लिए, खूंखार आतंकवादी शिवरासन और उसकी सहयोगी सुभा (गौरी पद्मकुमार) आम जीवन में रजनीकांत की फिल्म का लुत्फ उठाते हैं। सुभा अपने राइफल से ठिकाने की रखवाली करते हुए नाखूनों पर पेंट लगाती है। अमित और राघोथमन, एक मुखबिर से मिलने से ठीक पहले एक ढाबे पर खाना खाते हैं। उत्तर भारतीय बनाम दक्षिण भारतीय खाने के बारे में दोनों अपनी बात रखते हैं। अमोद कांत इस जांच में किस्मत के बारे में बात करते हैं, और दर्शकों को याद दिलाते हैं कि एसआईटी को दी गई खंडहर इमारत को अभिशप्त माना जाता था, क्योंकि यहां रहने वाला कोई भी, कभी भी सफल नहीं हुआ। यह सीरीज मनोवैज्ञानिक तकरार और रणनीतिक गहराई को बहुत ही प्रभावी तरीके से दिखाती है।

हत्याओं को गांधी परिवार द्वारा माफी

सुप्रीम कोर्ट ने राजीव गांधी की हत्या के मामले में उम्र क़ैद की सज़ा काट रहे छह कैदियों को जेल से रिहा कर दिया है। शीर्ष अदालत ने नलिनी और आरपी रविचंद्रन समेत सभी दोषियों की रिहाई का आदेश दे दिया। कोर्ट का आदेश आने के एक घंटे बाद ही उम्र क़ैद की सज़ा काट रहे सभी दोषियों को रिहा कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बी वी नागरत्न की बेंच ने कहा कि इन लोगों के केस में भी एक अभियुक्त ए जी पेरारिवलन के मामले में दिया गया फ़ैसला लागू होगा।

इस साल 18 मई को कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 में दिए गए असाधारण शक्तियों का हवाला देकर पेरारिवलन को रिहा कर दिया था। पेरारिवलन राजीव गांधी हत्याकांड में 30 साल उम्र क़ैद की सज़ा काट चुके थे। जबकि श्रीहरन, रविचंद्रन, संथन, मुरुगन, एजी पेरारिवलन और रॉबर्ट पायस और जयकुमार को उम्र क़ैद की सज़ा दी गई थी और ये 23 साल जेल में बिता चुके हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि उन्होंने और उनकी बहन प्रियंका गांधी ने अपने पिता राजीव गांधी के हत्यारों को पूरी तरह से माफ कर दिया है। राहुल ने अपने पिता के हत्यारों को माफ करने के सवाल पर कहा, ‘हम कई सालों तक बहुत परेशान और दुखी रहे। हम बहुत गुस्सा भी थे, लेकिन फिर हमने किसी तरह…असल में पूरी तरह से उन्हें माफ कर दिया।’

राहुल गांधी ने कहा कि जब आप यह महसूस करते हैं कि यह विचारों के टकराव के नतीजे में हुई घटनाएं थी तो आपको चीजें समझ में आती हैं। राहुल ने कहा कि जब उन्होंने टीवी पर प्रभाकरन की लाश देखी तो उनके मन में दो तरह के विचार आए, ‘पहला- इस आदमी के साथ इस तरह का व्यवहार क्यों किया गया। दूसरा- मुझे उसके बच्चों पर दया आई, सहानुभूति हुई।’ राहुल ने कहा कि उन्होंने और उनकी बहन ने यह झेला है, हिंसा देखी है, इसलिए वे किसी भी सूरत में हिंसा को पसंद नहीं करते हैं। उन्होंने कहा, ‘हम दोनों भाई-बहन किसी से नफरत नहीं कर पाते हैं। हम सबको पता था कि पापा और दादी की जान जा सकती है। अगर आप राजनीति में गलत ताकतों से टकराते हैं, किसी चीज के लिए खड़े होते हैं तो आपकी मौत तय है। यह साफ है।’

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