Sakti Latest News : श्री कृष्णा की लीलाओं में दिव्य आनंद और सतत सत्कर्म करते हुए भक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा

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Sakti Latest News : श्री कृष्णा की लीलाओं में दिव्य आनंद और सतत सत्कर्म करते हुए भक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा

 

Sakti Latest News : सक्ती। सक्ती। नगर में मित्तल परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद् गया भागवत के छठवें दिन व्यास पीठ से प्रसिद्ध भागवत आचार्य राजेंद्र जी महाराज द्वारा श्री कृष्ण के विभिन्न लीलाओं का सरस वर्णन करते हुए बताया गया कि भगवान श्री कृष्णा की लीलाओं में दिव्य आनंद और सतत सत्कर्म करते हुए भक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा है ।

आचार्य द्वारा रासपंच अधयायी का व्याख्यान करते हुए बताया गया कि भारतीय साहित्य में श्रृंगार रस को रसराज का सम्मान दिया गया है , श्रृंगार रस के देवता श्री कृष्ण ही है । विविध रसों और भाव अनुभाओ युक्त नटनागर भगवान श्री कृष्ण द्वारा किए गए नृत्य को रास कहा है । श्री कृष्णा सर्वात्मा है,वे तो पतियों के भी पति है ।

Sakti Latest News : भगवान श्री कृष्ण ने रासलीला के प्रारंभ में गोपियों महाभागा शब्द से स्वागतम कहा है , महाभाग उन्हीं का होता है जो भगवान को अपने साथ रखते हैं । शरद ऋतु की पूर्णिमा की रात्रि भगवान ने गोपियों के साथ रास की दिव्य लीला की, गोपियों के मन में श्री कृष्ण केवल मेरे ही है यह अहंकार भाव आने पर भगवान ने गोपियों का साथ छोड़ दिया और वह अंतर ध्यान हो गए।

अहंकार होने पर भगवान साथ छोड़ते हैं इसलिए अहंकार की दीवार गिरने पर ही भगवान मिलते हैं । गोपियों के मन में श्री कृष्णा विरह की अग्नि जल उठी , वे श्री कृष्ण के लिए तरसती नहीं और कृष्णा कृष्णा पुकारती रही ।

आचार्य ने बताया कि भक्ति की आतुरता होने पर ही भगवान मिलते हैं , गोपियों के अहंकार त्याग कर क्षमा मांगने पर भगवान उन्हें दर्शन दिए । श्री कृष्ण के मथुरा गमन होने पर मथुरा के लोगों को परम आनंद की अनुभूति हुई क्योंकि आज उनका खोया हुआ खजाना मिल गया , श्री कृष्णा 11 वर्ष बाद अपने माता-पिता के पास पहली बार गए थे । श्री कृष्ण के मन में यह पश्चाताप के साथ आंखों में आंसू आ गए कि मैं इतने लंबे कल तक अपने इन हाथों से माता-पिता की सेवा नहीं कर सका ।

Sakti Latest News : श्रीमद् भागवत के इस प्रसंग में आचार्य ने कहा की जो स्वस्थ शरीर और धन भी कमा कर अपने हाथों से अपने बूढ़े माता-पिता की सेवा नहीं करते उन्हें यह के दूत मृत्यु उपरांत दंड देते हुए कहते हैं की माता-पिता के अपमान और उन्हें दुख देने के कारण तुम्हें अपने ही शरीर के मांस को खाना पड़ेगा । इस धरती पर माता-पिता ही हमारे साक्षात भगवान है , इन्हीं की सेवा सर्वोपरि है तभी भगवान अपनी सेवा स्वीकार करते हैं ।

आचार्य द्वारा जरासंध युद्ध और काल यवन को राजा मचुकंद के नेत्रों से भस्म होने की कथा के साथ रुक्मणी जी का हरण और द्वारिका पुरी में रुक्मणी कृष्ण विवाह उत्सव का विस्तार से वर्णन किया गया ।

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आयोजक परिवार एवं सैकड़ो कथा श्रोताओं ने संपूर्ण कथा प्रसंग का दिव्य आनंद लिया । इस अवसर पर ओमप्रकाश  बंसल , जगदीश बंसल , अजय अग्रवाल , हसतराम देवांगन , समारू देवांगन , रामकिशन देवांगन , अमर अग्रवाल , हरिओम शर्मा , अनुभव तिवारी , एवं अनेक श्रोता उपस्थित थे । गया भागवत के आयोजन  मीरा महेंद्र मित्तल,  माधुरी राजकुमार मित्तल एवं  सुनीता नरेंद्र कुमार मित्तल द्वारा आधिकारिक संख्या में कथा श्रवण का पुण्य लाभ प्राप्त करने अपील की गई है ।

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