इंदौर: पत्रकारिता के अलावा वंचित समाज के हितों के लिए निरंतर सक्रिय रहे पत्रकार संजीव की स्मृति को वैचारिक मंथन के माध्यम से याद किया गया। देश के विभिन्न अंचलों से आए संजीव के मित्र, पत्रकार अन्य प्रबुद्ध जन इंदौर में एकत्र हुए। संदर्भ केंद्र, प्रगतिशील लेखक संघ, जन नाट्य संघ (इप्टा )स्टेट प्रेस क्लब द्वारा आयोजित अंतर्संवाद और व्याख्यान के माध्यम से क्रांतिकारी बदलाव में मीडिया की भूमिका एवं वैज्ञानिक नजरिए की जरूरत पर खुलकर चिंतन-मनन हुआ।
दिनभर चले दो सत्रों में दिल्ली से आए प्रसिद्ध वैज्ञानिक गौहर रजा, भोपाल से अनुराग द्वारी, पूजा सिंह, संदीप कुमार, कवि अनिल करमेले, औरंगाबाद से विनोद बांडावाला इंदौर से हरनाम सिंह ने संबोधित किया। संचालन एवं हस्तक्षेप का काम किया प्रलेसं के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी ने।
अभिनव कला समाज सभागृह में बड़ी तादाद में उपस्थित सुधि जनों को संबोधित करते हुए गौहर रजा ने कहा की हम सब उस ख्वाब का हिस्सा है जिसे संजीव सहित उन मित्रों ने देखा था जो अब हमारे बीच नहीं है। युवा पीढ़ी से अपेक्षा है कि वह समाजवादी समाज व्यवस्था के स्वप्न को साकार करने में वह सक्रिय रहेगी। उन्होंने कहा कि हजारों वर्षों से यह वैचारिक संघर्ष जारी है कि हम कहां से आए हैं ? कहां जाएंगे ? ब्रह्मांड के बारे में बहुत कुछ जाना गया है और अभी और भी जानने की जरूर बनी हुई है। इंसान ने सवाल पूछना कब शुरू किया ? क्या जानवर भी सवाल पूछते हैं ? ऐसी कई जिज्ञासाओं का समाधान होना है।
सृष्टि में मानव के पैदा होने की अनेक कहानियां प्रचलित है। सभी धर्मों की अपनी-अपनी व्याख्याएं हैं। देश में वर्ष 2014 से धर्म की बरसात हो रही है। सार्वजनिक स्थलों, शिक्षण संस्थाओं, अस्पतालों सहित शायद ही कोई संस्थान होगा जहां धार्मिक संरचनाएं, तस्वीरें आदि नहीं होगी। बच्चों के पैदा होने से उसकी मृत्यु तक व्यक्ति को धार्मिक संदेश, उपदेश मिलते रहते हैं। दुनिया में सर्वाधिक बिक्री धार्मिक पुस्तकों की ही होती है, बावजूद इसके युद्ध, हिंसा अनैतिकता में कोई कमी नहीं आई है।
गौहर रजा ने कहा कि विज्ञान और तकनीक के बिना कोई भी धार्मिक आयोजन सफल नहीं होता। तमाम संत- महात्मा, पीर- फकीर विज्ञान के बिना चल ही नहीं सकते। विडंबना है कि बावजूद इसके विज्ञान को ही कटघरे में खड़ा किया जाता है। उन्होंने अपनी विख्यात नज़्म जब सब ये कहें खामोश रहो सुनाई।
क्रांतिकारी बदलाव में मीडिया की भूमिका विषय पर अपने सारगर्भित वक्तव्य में वरिष्ठ पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव ने कहा कि क्रांतिकारी बदलाव में वर्तमान मीडिया की भूमिका नकारात्मक है। इसमें सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है। भारतीय मीडिया का चरित्र जन विरोधी है। वह राज्य और वैश्विक पूंजी का हित चिंतक हैं। मीडिया के मालिकों और उद्योगपतियों में गठजोड़ है। वैकल्पिक मीडिया वह पत्रकारिता है जो जन आंदोलन के साथ खड़ी है।
एनडीटीवी के अनुराग द्वारी ने कहा कि हम अपने हिस्से की ईमानदारी बरतें, तो ही मीडिया में बदलाव आ सकता है। वर्तमान में खबरों की सच्चाई को रेटिंग से मापा जाता है। हम अपनी इंसानियत को बचाए रखकर ही कर्तव्य पालन कर सकते हैं।
भोपाल की वरिष्ठ पत्रकार पूजा सिंह ने मीडिया के भीतर बदलाव की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने मीडिया में व्याप्त लैंगिक असमानता और समाचारों तथा न्यूज़ रूम पर इसके दुष्प्रभावों को उदाहरणों के साथ सामने रखा। उन्होंने कहा कि विभिन्न मीडिया संस्थानों और मीडिया स्कूल्स को जेंडर सेंसिटिव बनाए बिना मीडिया के भीतर लैंगिक संवेदनशीलता नहीं आएगी।
बिज़नेस स्टैंडर्ड के वरिष्ठ पत्रकार संदीप कुमार ने मीडिया की भूमिका में आ रहे बदलाव और मीडिया कर्मियों में वैचारिक विचलन को लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि बिना विचार का पत्रकार चैट जीपीटी की तरह केवल कमांड फॉलो करता है जो अपने आप में एक खतरनाक बात है।
हरनाम सिंह ने कहा कि मीडिया हर दौर में बदलाव का माध्यम रहा है। इसका उपयोग स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ही नहीं, समाज सुधार के क्षेत्र में भी हुआ है। मीडिया के पतन का दौर 1957 से ही प्रारंभ हो गया था जब देश और दुनिया की पहली निर्वाचित कम्युनिस्ट सरकार को सी आई ए की मदद से गिराया गया था।
उस दौरान समाचार पत्रों की भूमिका बेहद शर्मनाक थी। उन्होंने झूठे ,आक्रामक प्रचार के माध्यम से सरकार के खिलाफ माहौल बनाया। पीत पत्रकारिता से प्रारंभ भारतीय पत्रकारिता वर्तमान में प्रोपेगेंडा पत्रकारिता में तब्दील हो चुकी है।
हरनाम सिंह ने कहा कि आर्थिक उदारीकरण की नीतियों के कारण मीडिया संस्थानों पर औद्योगिक समूहों का कब्जा हो गया है। मीडिया से गांव, गरीब, आदिवासी, मजदूर के मुद्दे गायब कर दिए गए हैं। बाजार आधारित पत्रकारिता ने जनता को पक्षधरता को कमजोर किया है।
आयोजन का संचालन करते हुए विनीत तिवारी ने कहा कि इंकलाब के ख्वाब को साकार करने की जरूरत है। भोपाल से आए कवि अनिल करमेले ने “गोरे रंग का मर्सिया” कविता का पाठ किया। आयोजन का शुभारंभ शर्मिष्ठा द्वारा गाए गए जन गीतों से हुआ, तबले पर संगत विनय कुमार राठौर ने की। परिचर्चा में अशोक शर्मा, चुन्नीलाल वाधवानी जया मेहता, मौली शर्मा, जयप्रकाश, सुभाष मिश्रा, संजय वर्मा, सारिका श्रीवास्तव, चक्रेश जैन, अथर्व आदि ने भाग लिया। आभार प्रदर्शन बालकराम ने किया
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