सुभाष मिश्र
गले में रंग-बिरंगे गमछे के साथ सिनेमा और नाटकों पर गंभीर विमर्श और लेखन करने वाले अंर्तराष्ट्रीय ख्यातिनाम समीक्षक अजीत राय का बुधवार को लंदन में दिल का दौरा पडऩे से निधन हो गया। वे लंदन में हो रहे जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में भाग लेने लंदन गये हुए थे। दोस्तों के बीच रंगबाज़ के नाम से जाने जाने वाले अजीत राय के यारबाजी के बहुत से किस्से मशहूर हैं। यायावर कि़स्म का यह फक्कड़ इंसान देश दुनिया में होने वाले फि़ल्म, थिएटर और साहित्य समारोह में उपस्थित रहकर उसकी जीवंत रिपोर्टिंग करने वाले ऐसे पत्रकार, कोर्स डायरेक्टर रहे हैं. जिन्होंने देश के छोटे शहरों तक फिल्म और थिएटर फेस्टिवल को पहुंचाया। एक अक्टूबर को पहले दिल्ली में और अब कुछ सालों से मुंबई में कला, साहित्य, सिनेमा और रंगमंच से जुड़ी ख्यातिनाम से लेकर नवोदित कलाकारों के साथ जन्मोत्सव को कला संस्कृति उत्सव में तब्दील करने वाले अजीत राय का इस तरह जाना यकीन करने लायक़ नहीं है।
छत्तीसगढ़ फि़ल्म एंड विज़ुअल आर्ट सोसायटी द्वारा आयोजित रायपुर इंटरनेशनल फि़ल्म फेस्टिवल के डायरेक्टर के रूप में अजीत राय ने जिस तरह की फि़ल्में दिखाई, नामचीन कलाकारों को रायपुर लाया और फि़ल्म और थिएटर एप्रिसिएशन कोर्स कराया वह अविस्मरणीय है। राष्ट्रीय नाट्य संस्थान की पत्रिका रंग प्रसंग हो या दूरर्दशन की पत्रिका दृश्यांतर का बेहतरीन संपादन करके नई प्रतिभाओं को आगे लाने के काम अजीत राय ने बखूबी किया। चाहे कांस फि़ल्म फेस्टिवल हो या अरब का फेस्टिवल हो, सबकी रिपोर्टिंग करके तुरंत भेजना उनकी अपने काम के प्रति ईमानदारी और लगाव को दर्शाता है। अभी शुक्रवार को उन्होंने मुझे व्हाट्सएप मैसेज करके बताया कि आपका फ़ोन नहीं उठा पाया क्योंकि ‘अचानक मुझे सोमवार 14 जुलाई को लंदन के एक अस्पताल में हार्ट की जांच के लिए भर्ती होना पड़ा। कल बुधवार 16 जुलाई की शाम डिस्चार्ज होकर घर आ गया। आराम कर रहा हूं। बाकी सब ठीक है।

तीन दिन पहले मैंने पंचायत में बिनोद की भूमिका अदा करने वाले कलाकार अशोक पाठक का इंटरव्यू देखा। वे हिसार में हुए थिएटर एप्रिसिएशन कोर्स का जि़क्रकरते हुए अजित राय का नाम लेते हुए उन्हें याद कर रहे थे। मैंने अजीत भाई को फ़ोन किया और इस इंटरव्यू का जि़क्र किया तो वो कहने लगे हम तो अपना काम करते हैं कुछ लोग याद करते, कुछ भूल जाते हैं पर अपना काम तो जारी रहता है। अजीत राय के जन्मदिन पर पूरे देश के कोने-कोने से लोग पहुंचते हैं, चाहे वे भोपाल से पहुँचने वाले वरिष्ठ पत्रकार गिरजाशंकर हों या आज़मगढ़ से पहुँचने वाले अभिषेक पंडित या सीधी से पहुँचने वाले नीरज कुंदेर। मुंबई-दिल्ली से बहुत से ख्यातिनाम साहित्यकार, समीक्षक, रंगकर्मि हों या फि़ल्म के एक्टर, डायरेक्टर। स्वर्गीय केदार नाथ सिंह, तस्लीमा नसरीन, वामन केन्द्, पीयूष मिश्रा, रोमी जाफरी, मुकेश छाबड़ा, नीरज धायवान, जंयत देशमुख, योगेंद्र चौबे, तिरूपुरारी शरण, अखिलेंद्र मिश्रा, यशपाल शर्मा, फिरोज अब्बास खान, शाफत खान, रामगोपाल बाजाज, असगर वजाहत जैसे बहुत से नाम शामिल है।
अजीत राय ज्ञान और जुगाड़ का उपयोग करने वाले ऐसे व्यक्ति थे जिनके पास पैसा नहीं होने के बावजूद वे पुरी दुनिया घुमते थे, धूमधाम से जन्मदिन मनाते थे और अपनी हर शाम रंगीन करते थे। दुनिया के मशहूर अमीर गोपीचंद हिन्दूजा हो या हिन्दुस्तान की किसी कस्बे में बैठा थियटर का आर्टिस्ट हो अजीत राय सबके हरदिल अजीज थे। उन्होने हिन्दूजा एण्ड बालीवुड किताब लिखी। लंदन में एक्टर अक्षय कुमार ने किताब का विमोचन किया। अपने तमाम आयोजन वक्तवयों को सोशल मीडिया पर तत्परता से पोस्ट करने वाले अजीत राय अब हमारे बीच नहीं है। अजीत राय के व्यक्तित्व में एक खुलापन था, वे अपनी किसी भी चीज को छिपाते नहीं थे।

हाथ में वाइन का गिलास हो और बगल में सुंदर स्त्रियां हो ये अजीत राय की एक पहचान सी बन गई थी। आप अजीत राय को पसंद करें या न करें पर आप उनकी प्रतिभा और जुझारू पन और नाटक और सिनेमा के प्रति उनकी लगाव को कतई खारिज नहीं कर सकते। अजीत भाई तुम बहुत याद आओगे…। तुमसे जुड़ी सैकड़ों स्मृतियां है फिर चाहे व गोवा फिल्म फेस्टिवल हो, रायपुर का इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल हो या दिल्ली-मुंबई की अनगिनत यादें हो, तुम सब जगह उसी तरह उपस्थित हो जैसे तुम अपनी फेसबुक वाल पर….।