Poetry: अंतरतम को झंझोरती इटली की कविता… ‘कभी कोई नहीं जान पाएगा कि हम जीवित थे’

॥ कोई नहीं जानेगा ॥

कभी कोई नहीं जान पाएगा
कि हम जीवित थे,
कि इन गलियों में
पड़ते थे हमारे क़दम
कि हम ख़ुशी से नाचा करते थे,
कभी किसी को अनुमान नहीं होगा
कि हमने रेल की खिड़कियों से
समुद्र को देखा था,
कि जो हवा काफ़े की
कुर्सियों पर बैठी है
उसमें कभी हमने साँस ली थी,
कभी कोई नहीं जानेगा
कि हम खड़े रहे ज़िंदगी के कोठे पर
जब तक कि दूसरे वहाँ न आ गए।

— नीनो पेद्रेत्ती (1923-1981)

कोठा = terrace, छत।

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