॥ कोई नहीं जानेगा ॥
कभी कोई नहीं जान पाएगा
कि हम जीवित थे,
कि इन गलियों में
पड़ते थे हमारे क़दम
कि हम ख़ुशी से नाचा करते थे,
कभी किसी को अनुमान नहीं होगा
कि हमने रेल की खिड़कियों से
समुद्र को देखा था,
कि जो हवा काफ़े की
कुर्सियों पर बैठी है
उसमें कभी हमने साँस ली थी,
कभी कोई नहीं जानेगा
कि हम खड़े रहे ज़िंदगी के कोठे पर
जब तक कि दूसरे वहाँ न आ गए।— नीनो पेद्रेत्ती (1923-1981)
कोठा = terrace, छत।

(मूल कविता इटली की क्षेत्रीय भाषा रूमन्योल में। अंग्रेज़ी से अनुवाद : असद ज़ैदी)
Poem courtesy Amarjit Chandan