सिर्फ 17,500 रुपये में मिलेगा 7 करोड़ का प्लॉट, 62 साल बाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला…

फरीदाबाद। दिल्ली से सटे हरियाणा के फरीदाबाद जिले में न्याय की एक मिसाल सामने आई है। 62 वर्षों तक चली कानूनी लड़ाई के बाद एक बुजुर्ग को आखिरकार इंसाफ मिला। जिस जमीन के लिए उन्होंने जीवन का बड़ा हिस्सा अदालतों के चक्कर लगाते हुए बिताया, उसकी कीमत आज करीब सात करोड़ रुपये है, लेकिन हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार यह जमीन उन्हें महज 17,500 रुपये में मिलेगी।

इस लंबी लड़ाई की शुरुआत तब हुई थी, जब याची की उम्र सिर्फ 18 साल थी। अब 80 वर्ष की उम्र में उन्होंने यह मुकदमा जीत लिया। फैसला सुनते ही उनकी आंखें भर आईं और उन्होंने अदालत में हाथ जोड़कर न्यायपालिका का आभार जताया।

14 हजार से 7 करोड़ तक पहुंचा प्लॉट का मूल्य
जिस भूखंड को लेकर यह विवाद था, उसे मूल रूप से 14 हजार रुपये में खरीदा गया था। पारिवारिक संपत्ति के इकलौते उत्तराधिकारी होने के नाते याची ने इस जमीन के अधिकार के लिए पूरी उम्र संघर्ष किया। 62 साल की कानूनी लड़ाई के बाद अदालत ने भूखंड याची के नाम करने का आदेश दिया है। मौजूदा बाजार मूल्य भले ही सात करोड़ रुपये हो, लेकिन कोर्ट ने 25 प्रतिशत अतिरिक्त राशि लेकर जमीन सौंपने का निर्देश दिया है। इस तरह सात करोड़ का प्लॉट मात्र 17,500 रुपये में मिलेगा।

सूरजकुंड के इरोस गार्डन कॉलोनी से जुड़ा है मामला
यह पूरा मामला फरीदाबाद जिले के सूरजकुंड के पास स्थित इरोस गार्डन रिहायशी कॉलोनी का है। कॉलोनी की बसावट 1933 में शुरू हुई थी। उस दौरान आरसी सूद एंड कंपनी लिमिटेड ने सीके आनंद की मां ननकी देवी से एडवांस लेकर 350 वर्ग गज और 217 वर्ग गज के दो प्लॉट देने का वादा किया था। ननकी देवी ने तय कीमत का करीब आधा भुगतान भी कर दिया था, लेकिन इसके बावजूद उन्हें जमीन का कब्जा नहीं दिया गया और बाद में बिल्डर ने हाथ खींच लिए।

कानून बदले, मामला उलझता चला गया
जमीन की बुकिंग के बाद पंजाब में अनुसूचित सड़कें और नियंत्रित क्षेत्र अधिनियम, 1963 लागू हुआ, जिसका उद्देश्य अव्यवस्थित निर्माण पर रोक लगाना था। इसके बाद हरियाणा शहरी क्षेत्र विनियमन अधिनियम, 1975 अस्तित्व में आया। इन कानूनों का हवाला देकर बिल्डर कब्जा देने से टालता रहा और मंजूरी मिलने का आश्वासन देता रहा। इसी बीच समय बीतता गया और मामला और जटिल हो गया।

साल 2002 में पहुंचा अदालत तक विवाद
इस जमीन को लेकर वर्ष 2002 में पहली बार अदालत का दरवाजा खटखटाया गया। निचली अदालतों ने आवंटी परिवार के पक्ष में फैसला दिया, लेकिन बिल्डर ने इसे चुनौती देते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। डेवलपर ने दलील दी कि आवंटन 1964 में ही रद्द हो चुका था और दावा समय-सीमा के बाहर है। साथ ही मौजूदा कीमत को देखते हुए पुराने समझौते को लागू करना अनुचित बताया।

हाईकोर्ट ने खारिज की डेवलपर की दलीलें
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में जस्टिस दीपक गुप्ता ने 22 पन्नों के फैसले में डेवलपर की सभी दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि दशकों तक की गई देरी का लाभ बिल्डर को नहीं मिल सकता।

कौन हैं सीके आनंद?
टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक, सीके आनंद सूरजकुंड निवासी हैं और ननकी देवी के इकलौते पुत्र हैं। माता-पिता के निधन के बाद वे इस संपत्ति के अकेले वारिस हैं। जब उनकी मां ने 5,103 वर्ग फुट जमीन खरीदी थी, तब उसकी कीमत 14 हजार रुपये थी, जो अब करीब सात करोड़ रुपये आंकी जा रही है। जीवनभर चली इस कानूनी जंग के बाद अदालत ने जमीन याची के नाम करने का आदेश दिया है और बिल्डर को 1933 की दर के अनुसार 25 प्रतिशत अतिरिक्त राशि लेकर भूखंड सौंपने के निर्देश दिए हैं।

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