Phag singing in Bundelkhand रसरंग बिखेरता होली में बुंदेलखंड का फाग गायन

Phag singing in Bundelkhand

Phag singing in Bundelkhand होली में बुंदेलखंड में फाग गायन की बहती रसधारा

 

फाग का रस बरसते ही लोग खो बैठते है सुध . बुध रात की गहराई का एहसास नहीं

Phag singing in Bundelkhand महोबा !  रंगो के त्योहार होली पर देश भर की तरह बुंदेलखंड में भी विशेष धूम रहती है। इस क्षेत्र में होली की छटा कुछ और ही निराली नजर आती है और इस त्योहार के हर्षोल्लास में अपना एक अलग ही रसरंग बिखेरता है यहां गाया जाने वाला लोकगीत “ फाग”।

बुंदेलखंड में फागुन में गांवों की चौपालें रसभरी फागों से गुलजार रहतीं हैं। लोग फाग की धुनो पर झूमते.नाचते नजर आते है।लोक काव्य फाग के अनूठे रंग यहां होली की मस्ती को दोगुना कर देते हैं।

Phag singing in Bundelkhand होली के विविध रंगो में बुंदेलखंड की होली का कहीं कोई सानी नही है। सर्दी के मौसम की बिदाई के उपरान्त ज़ब धूप सुर्ख होने लगती है, पतझड़ के बाद नई कोपलों से पेड़ों का श्रँगार होता है और ऋतुराज बसंत फिजाओं में मादकता भरते हैं तब विंध्ययांचल फाग के आनंद ओर उल्लास में सराबोर होने लगता है। फसल की कटाई, मड़ाई और उसे घर पहुंचाने के दिन भर के काम को निबटा कर गांवों में लोग शाम के वक़्त ज़ब घर वापस लोटते है तो दैनिक कार्यो से निपटते ही उनका मन मयूर भी मस्ती के लिए मचल उठता है, तब गांव की चौपलें गुलजार हो उठती है। इसके साथ ही हारमोनियम की तान, ढोलक की थाप और झाँझ मंजीरा के साथ ज़ब फाग के स्वर गूंजते है तो इसके आकर्षण में लोग दूर .दूर से खिंचे चले आते हैं। फाग का रस बरसते ही लोग सुध . बुध खो बैठते है ओर फिर रात कब गहराई उन्हें इसका एहसास ही नहीं रहता ।

Phag singing in Bundelkhand बुंदेलखंड में फाग लोक काव्य है, यह चोकड़िया छंद गीत की अद्भुत रचना है जो गागर में सागर भरने जैसी है। बुंदेली फाग में सामाजिक चेतना का पाठ है तो साहित्य में श्रँगार रस में की लाज़वाब अनुभूति, रसिक जन फाग के प्रत्येक शब्द में डूब कर उसके रस का आनंद लेते है, यही वजह है की चौपाल में फाग शुरू होते ही स्त्री व् पुरुष घरों की चहरदीवारी से बाहर निकल इसके रासस्वादन को उमड़ पड़ते हैं।

बुन्देलखंडी फाग के प्रमुख रचनाकारो में ईसुरी, गंगाधर ब्यास ,ख्यालीराम आदि हैं, इनमे ईसुरी की फागें सर्वाधिक लोकप्रिय और जन जन के कंठ में रची बसी है। लोक कवि ईसुरी की फागों में श्रँगार रस की अनूठी अभिब्यक्ति है तो सामाजिक बुराईयों व कुरूतियों पर कठोरता से प्रहार किया गया है। उन्होंने लोगो को प्रेम, सदभाव ,समरसता और एकजुटता का मंत्र भी दिया है।

जगनिक शोध संस्थान के सचिव डॉ़ वीरेंद्र निरझर बताते है कि ईसुरी की फागें काव्य ओर शब्द विन्यास की दृष्टि से बेजोड़ हैं। आशु कवि ईसुरी का जन्म महोबा जिले कि कुलपहाड तहसील में अजनर क्षेत्र के बघोरा गाँव में हुआ था। कहा जाता है कि उनकी फागों की नायिका प्रेयसी रजऊ थी उन्होंने फाग के एक .एक छंद में रजऊ के सौन्दर्य को गढ़ा है। ईसुरी कि फागों में रजऊ का नख.से शिख तक का सौन्दर्य वर्णन लोक साहित्य की अनूठी कृति है।अनपढ़ होते हुए बहुअर्थी शब्दों का उन्होंने अपनी रचनाओ में जिस प्रकार पिरोया है वह विद्वानो के लिए शोध का विषय रहा है। महोबा में वीरभूमि राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्रवक्ता डाॅ़ लालचंद्र अनुरागी कहते है की लोक साहित्य में ईसुरी की फागों का कोई मुकाबला नहीं है। उनके काव्य में शब्दों की जादूगरी बेमिसाल है।

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सामाजिक कार्यकत्री सरस्वती वर्मा कहती है कि ईसुरी को बुंदेलखंड कि लोक संस्कृति की गहरी समझ थी। उन्होंने अपनी फागों में बहुत सीधी ओर सरल भाषा में प्रभावशाली तरीके से उकेरा है। ईसुरी की फाग गायन के बिना बुंदेलखंड में होली की कल्पना भी नहीं की जा सकती। हालांकि आधुनिकता के प्रभाव में अब फाग गायन की परम्परा सीमित होती जा रही है लेकिन अब भी यहां होली के साथ- साथ विभिन्न मांगलिक अवसरों पर फाग गायन का बड़ा महत्व है।

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