जगदलपुर। विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा (Bastar Dussehra) इस बार परंपरा को लेकर विवादों में घिर गया है। पटेल समाज ने 60 साल पुरानी परंपरा को पुनर्जीवित करने की मांग करते हुए साफ कहा है कि यदि रथ पर राजा-रानी एक साथ सवार नहीं होंगे तो वे रथ को आगे बढ़ने नहीं देंगे।

पटेल समाज के अध्यक्ष अनंत राम कश्यप ने कहा कि अब तक बस्तर राजकुमार कमलचंद्र भंजदेव अविवाहित रहते हुए परंपरा निभाते रहे, लेकिन उनके विवाह के बाद समाज चाहता है कि रथ पर राजा और रानी दोनों एक साथ विराजें। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर इस मांग को नजरअंदाज किया गया तो समाज रथ के सामने धरना देकर परिक्रमा रोक देगा।
प्रशासन का रुख
इस विवाद पर जगदलपुर तहसीलदार राहुल गुप्ता ने कहा कि यह मुद्दा पहले भी शासन के संज्ञान में लाया जा चुका है। इस पर निर्णय प्रशासनिक स्तर पर नहीं लिया जा सकता। जो भी निर्देश शासन से मिलेंगे, उसी के अनुरूप कार्रवाई होगी।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
गौरतलब है कि 1966 में बस्तर राजा प्रवीणचंद भंजदेव के निधन के बाद से रथ पर केवल मंदिर के पुजारी माता दंतेश्वरी का छत्र लेकर सवार होते रहे हैं। लेकिन करीब छह दशक बाद, राजकुमार कमलचंद्र भंजदेव के विवाह के चलते अब पटेल समाज पारंपरिक स्वरूप को बहाल करने पर अड़ा हुआ है।
रियासत काल की परंपरा
बस्तर दशहरा केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि आस्था, संस्कृति और परंपरा का भव्य संगम है। रियासत काल में जब रथ यात्रा निकलती थी, तब राजा-रानी स्वयं छत्र लेकर रथ पर विराजते थे। अंतिम बार यह परंपरा 1961 से 1965 के बीच निभाई गई थी, जब राजा प्रवीणचंद भंजदेव रथ पर छत्र लेकर बैठे थे।

इस विवाद ने बस्तर दशहरा की ऐतिहासिक और धार्मिक गरिमा को लेकर नई बहस छेड़ दी है।