(Opposition’s regret on China) चीन पर विपक्ष की हाय तौबा

(Opposition's regret on China)

अजय दीक्षित

(Opposition’s regret on China) चीन पर विपक्ष की हाय तौबा

 

(Opposition’s regret on China) चीन पर विपक्ष की हाय तौबा चीन के मुद्दे पर सत्ता और विपक्ष बिल्कुल घंटे हैं। लोकतंत्र में सत्ता और विपक्ष के बीच मतभेदों की एक लकीर होती है, लेकिन ऐसी जुबानी ‘जंग नहीं होनी चाहिए, जो देश की अखंडता, सेना, सुरक्षा और सीमाओं को ही सवालिया बना दे। कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद राहुल गांधी देश की सेना, सरकार, सुरक्षा, संसद आदि सभी से खफा हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने बयान दिया है कि प्रधानमंत्री मोदी बाहर से शेर की तरह बर्ताव करते हैं, लेकिन उनका चलना चूहे की तरह है।’ ऐसे आपत्तिजनक बयानों का मतलब लोकतंत्र नहीं है।

(Opposition’s regret on China) चीन पर विपक्ष की हाय तौबा आप देश के प्रधानमंत्री के लिए ऐसी विद्रूप उपमाओं का कब तक प्रयोग करते रहोगे और उससे हासिल क्या होगा? कांग्रेस के ही सांसद मनीष तिवारी ने चीन की सीमा, वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर, सेना की तैनाती को ही गलत करार दिया है। वाह! आश्चर्य है कि अब सेना की कमान नहीं, कांग्रेस पार्टी, सरहदों पर सैन्य तैनाती का पाठ पढ़ाएगी! राहुल गांधी ने कहा था कि एलएसी पर हमारे सैनिकों को ‘पीटा’ जा रहा है सरकार सोई हुई है।

(Opposition’s regret on China) चीन पर विपक्ष की हाय तौबा  चीन युद्ध की तैयारियां कर रहा है। उसने हमारी 2000 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया है। सरकार किसी भी सवाल का जवाब नहीं देना चाहती। प्रधानमंत्री चीन का नाम लेने से डरते हैं। आखिर कांग्रेस नेता चीन की भाषा बोल कर और सैनिकों को अपमानित कर क्या पा लेना चाहते हैं? कमोबेश राहुल गांधी और मनीष तिवारी सरीखे सांसदों के बयान अनैतिक, गलत ही नहीं हैं, बल्कि देशहित के भी खिलाफ हैं। विदेश मंत्री जयशंकर पर भी टिप्पणी की गई थी कि वह पाकिस्तान पर अपनी सोच और समझ बड़ी करें। विडंबना है। कि अब एक औसत सांसद एक पेशेवर राजनयिक, कई देशों में राजदूत रहे और

देश के पूर्व विदेश सचिव सी शख्सियत पर ऐसे याहियात सवाल करेंगे। विदेश मंत्री जयशंकर ने राज्यसभा में, किसी भी सांसद का नाम लिए बिना, तल्ख अंदाज में सरकार का पक्ष रखा कि यदि सरकार उदासीन होती, तो एसएसी पर इतनी सेना तैनात करने का आदेश क्यों देती? सेना के ‘पिटने’ के साफ मायने हैं कि आप प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से सेना, सैनिक, उनके परिजनों और अंतत: देश का अपमान कर रहे हैं, उन्हें आहत भी कर रहे हैं। बहरहाल इस राजनीतिक पक्ष के अलावा, सेना के विभिन्न पूर्व जनरलों ने ऐसे नेताओं को लानत दी है, जो सेना को गालियां दे रहे हैं। हमारे सैनिक 13-17,000 फुट की ऊंचाई पर, बर्फीले मौसम और माइनस तापमान में भारत की चौकियों और सीमा की रक्षा कर रहे हैं। सेना कुछ मायनों में स्वायत्त है और वह सीमा पर रणनीति हालात के मुताबिक बना सकती है। कोई भी सरकार न तो सेना की उपेक्षा कर सकती हैं और न ही उसके हाथ बांध सकती है। चीन के साथ हमारे सीमा- विवाद बेहद अस्पष्ट हैं। चीन ‘मैकमोहन ‘रेखा’ को ही नहीं मानता, लिहाजा विवाद गहराते और उलझते रहे हैं। चीन ऐसी हरकतें बहुत पहले से करता रहा है, क्योंकि यही उसकी फितरत है। जनरलों का साफ कहना है कि संसद में यह चर्चा नहीं की जा सकती कि हमारे लड़ाकू विमान कहां तैनात हैं। सेना की रणनीतिक व्यूह रचना क्या है? हमारे परमाणु हथियारों की स्थिति क्या है? इसी दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने भी पूर्वोत्तर में संबोधित करते हुए स्पष्ट किया है कि बॉर्डर पर नए पुल, नई सडकों, नई सुरंगों, हवाई पट्टियों आदि का निर्माण डके की चोट पर किया जा रहा है। जितनी आवश्यकता होगी, हम उतना निर्माण करते रहेंगे। बॉर्डर के इलाके देश की सुरक्षा के गेट-वे हैं ।

 

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