Open games : ओपन गेम्स पर ताला, हताश हो रहे खिलाड़ी

Open games :

राजकुमार मल

Open games :  राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी दे चुके अपने शहर ने छोड़ दी उम्मी

 

 

Open games :  भाटापारा– खुली खेल स्पर्धाएं कब होंगी ? जैसे सवालों का उठना अब बंद हो चुका है क्योंकि जवाब नहीं मिलते। खेल एवं युवा कल्याण विभाग तो शहर का नाम ही भूल चुका है। थोड़ी बहुत आशा थी जिला क्रीड़ा विभाग से लेकिन रवैया बेहद हताश करता है।

 

राज्य और राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी दे चुके अपने शहर ने उम्मीद छोड़ दी है कि खुली स्पर्धा जैसे आयोजन शहर के हिस्से में आएंगे। नहीं मिलेगा यह अवसर, इसलिए कहा जाने लगा है क्योंकि खिलाड़ी ही नहीं, खेल मैदानों की भी जमकर उपेक्षा की जा रही है। ऐसे में जैसे-तैसे करके अभ्यास की निरंतरता जारी रखे हुए हैं खिलाड़ी।

Open games :  अरसा बीता ओपन को

 

 

राज्य और जिला स्तर तो दूर, खंड स्तरीय खुली खेल स्पर्धाओं को बंद हुए अरसा बीत चुका है। क्यों बंद की गई ? यह सवाल खिलाड़ी उठाते रहे। जवाब नहीं मिले। जनप्रतिनिधियों के दरवाजे तक बात पहुंचाई गई लेकिन निराशा ही हाथ आई। अफसर तो अभी भी ठान कर बैठे हैं कि जवाब नहीं देंगे।

Open games :  हताश करता है विभाग

 

खेल और युवा कल्याण विभाग की राह पर चल रहा है जिला क्रीड़ा विभाग। खानापूर्ति जैसी हरकतों से नाराज शहर जब भी सवाल करता है, तो जवाब रटा- रटाया ही मिलता है, योजना है, प्रस्ताव बनाकर बहुत जल्द भेजा जाएगा। किस खेल को बढ़ावा दें रहें हैं ? कौन सी योजना है। प्रारूप कैसा होगा ? जैसे प्रश्न के उत्तर कभी नहीं मिले।

हताश यह भी

 

शहर, खेल प्रेमी और खिलाड़ियों के बाद खेल सामग्री बेचने वाली संस्थानें भी इस रवैये से हताश होने लगीं हैं। श्री स्पोर्ट्स के संचालक भूपेंद्र वर्मा पूरी तरह सहमत है कि ओपन गेम्स को लेकर जैसा रवैया अपनाया जा रहा है, वह खिलाड़ियों के भविष्य के लिए जरा भी सही नहीं है। खेल सामग्री कीमत स्थित जरूर है लेकिन क्रय शक्ति से अभी भी बाहर है।

राहत नहीं देते निरीक्षण

 

 

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तत्कालीन जिलाधीश रजत बंसल ने अपने तबादले के पूर्व खेल मैदानों का जायजा लिया था। समस्याएं सुनीं थीं। शीघ्र हल का आश्वासन भी दिया था लेकिन यह कब पूरी होगी ? जैसे सवाल इसलिए नहीं उठते क्योंकि महज खानापूर्ति ही करते हैं, जिले के अधिकारी और विभाग।

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