रायपुर। 25 जुलाई 2025 की सुबह 8:30 बजे दुर्ग रेलवे स्टेशन से शुरू हुआ ‘नन गिरफ्तारी विवाद’ अब 9 दिन बाद एक बड़े मोड़ पर पहुंच गया है। मानव तस्करी और धर्मांतरण के आरोप में गिरफ्तार कैथोलिक नन प्रीति मैरी और वंदना फ्रांसिस को बिलासपुर NIA कोर्ट ने जमानत दे दी है।

कैसे शुरू हुआ मामला
25 जुलाई को बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने स्टेशन पर 3 आदिवासी युवतियां, एक युवक और 2 मिशनरी सिस्टर्स को रोक लिया। आरोप लगाया गया कि ये सभी युवतियों को नौकरी के बहाने आगरा ले जा रहे थे, जहां उनका धर्मांतरण और मानव तस्करी की योजना थी। बजरंग दल ने GRP थाने में FIR दर्ज कराई। मामला BNS धारा 143 (मानव तस्करी) और छत्तीसगढ़ धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 1968 की धारा 4 के तहत दर्ज हुआ। दोनों धाराएं गैर-जमानती हैं।

गिरफ्तारी के बाद राजनीतिक और सामाजिक बवाल
गिरफ्तारी के बाद छत्तीसगढ़ के कई जिलों में ईसाई संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किए। मामला लोकसभा और राज्यसभा में भी उठा। केरल से सांसदों का प्रतिनिधिमंडल दुर्ग जेल पहुंचा और ननों से मुलाकात की। मेघालय के CM कॉनराड संगमा ने केस रद्द करने की मांग की। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भी गिरफ्तारी को “धार्मिक असहिष्णुता” करार देते हुए सोशल मीडिया पर भाजपा सरकार को घेरा।
29 जुलाई को केरल के कई शहरों में बिशप्स, नन और नागरिकों ने बड़े प्रदर्शन किए। प्रतिनिधिमंडल ने CM विष्णुदेव साय से भी मुलाकात कर ननों के समर्थन में अपनी बात रखी।
दुर्ग कोर्ट से NIA कोर्ट तक
30 जुलाई को दुर्ग सेशन कोर्ट ने ननों की जमानत याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि NIA मामलों में सुनवाई का अधिकार दुर्ग कोर्ट को नहीं है। साथ ही यह गंभीर मामला है जिसमें जनजातीय बालिकाओं को राज्य से बाहर ले जाने और दबावपूर्वक धर्म परिवर्तन की कोशिश के आरोप हैं। कोर्ट को यह भी बताया गया कि गिरफ्तारी के बाद राजनीतिक संगठनों के प्रदर्शन से सामाजिक तनाव पैदा हुआ था, जो जमानत मिलने पर दोबारा हो सकता है।
इसके बाद मामला बिलासपुर NIA कोर्ट में पहुंचा। 2 अगस्त को NIA कोर्ट के जज सिराजुद्दीन कुरैशी ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद ननों को जमानत दे दी। ननों के वकील ने कहा कि पुलिस के पास ठोस सबूत नहीं हैं।
पीड़िता का पलटा बयान
1 अगस्त को तीन में से एक युवती, कमलेश्वरी प्रधान, मीडिया के सामने आई और कहा कि ननों ने उसके साथ कोई गलत व्यवहार नहीं किया। “हम अपनी मर्जी से आगरा जा रहे थे, लेकिन दुर्ग में हमें पीट-पीटकर जबरन बयान दिलवाया गया।” उसने बताया कि उसका परिवार पिछले 5-6 साल से ईसाई धर्म मान रहा है और आगरा जाने का उद्देश्य अस्पताल में सिस्टरों और मरीजों की सेवा करना था।
मानव तस्करी कानून का संदर्भ
मानव तस्करी एक संगठित अपराध है जिसमें धोखे, लालच या बलपूर्वक लोगों को घर या देश से दूर ले जाकर उनका शोषण किया जाता है। इसमें बच्चों या महिलाओं के मामलों में FIR होते ही गिरफ्तारी अनिवार्य है। दोषी पाए जाने पर 10 साल से आजीवन कारावास और जुर्माना हो सकता है।
वर्तमान स्थिति
ननों को जमानत मिल चुकी है, लेकिन मामला अभी खत्म नहीं हुआ है। NIA और पुलिस की जांच जारी है। इस केस ने न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि दिल्ली और केरल तक राजनीतिक हलचल मचा दी है। अब सभी की नजरें आगे की कानूनी प्रक्रिया और जांच की दिशा पर टिकी हैं।