Novel: आनंद हर्षुल की रचनाओं पर हुआ आख्यान-कला, साहित्यकारों ने की हर्षुल के लेखनी की प्रशंसा

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वरिष्ठ कथाकार आनंद हर्षुल की कहानी संग्रह चिड़िया और मुस्कुराहट, उपन्यास रेतीला और देखना पर परिचर्चा का आयोजन किया गया. प्रदेश के जानेमाने कथाकार और लेखकों ने इस आख्यान-कला में अपने विचार प्रकट किए. इस दौरान सभी ने आनंद हर्षुल की लेखनी की प्रशंसा की.

राजधानी रायपुर के वृंदावन हॉल में छत्तीसगढ़ फ़िल्म एंड विजुअल आर्ट सोसायटी की ओर से आनंद हर्षुल की रचनाओं पर आख्यान-कला का आयोजन किया गया. साहित्यकार जयशंकर ने कहा कि वे 20-25 साल से उनकी कहानियां पढ़ रहे हैं. उनकी लेखन में एक विशेष शैली है. सारी कहानी महत्वपूर्ण और विशेष है. बूढ़े मां-बाप अपने बच्चे का सहारा ढूंढ रहे. आज का समाज युवाओं का समाज हो गया है. जहां बच्चे और बूढ़े हाशिये पर चले गए है, पुस्तक की दूसरी कहानी गंध एक ऐसे युवक की है जो अमीरों के कुत्तों को पालता है पर खुद के घर कोई कुत्ता नही है. लोगों को उसके शरीर से कुत्ते की गंध आती है. इस तरह उन्होंने अपने लेखन के माध्यम कल्पनाओं को जीवंत बना देते हैं.


उन्होंने श्री हर्षुल की रचना की कुछ पंक्तियों का भी उदाहरण दिया. ‘चिड़िया पृथ्वी पर रहती है ताकि वो आसमान नाप सके’. आनंद भी इसी तरह के कथाकार है. जो अराजकता में भी प्रकृति प्रेम तलाश लेते हैं. साहित्य का एक काम जीवन का अविष्कार भी करना है. और आनंद ने यह काम बेहतर ढंग से किया है.
डॉ. सियाराम शर्मा ने कहानी संग्रह और उपन्यास पर चर्चा करते हुए कहा कि उनकी कहानियां तो पढ़ता रहा हूं पर पहली बार इनका उपन्यास पढ़ा. हमारे यहां निजी अस्पतालों के माध्यम से जो लूट होती है उनकी यह कहानी पढ़ कर मैं स्तब्ध रह गया. यथार्त को मार्मिक ढंग से पेश किया है. रेतीला उपन्यास आदिवासियों को लेकर लिखा गया है. इनके प्रकृति के साथ मार्मिक संबंध को अत्यंत सुंदरता से रचा गया है. आदिवासियों का जीवन प्रकृति के साथ लय होता है.

डॉ. शर्मा ने कहा कि मनुष्य ही प्रकृति का सबसे अंतिम उत्पाद है, किंतु यही उत्पाद प्रकृतिको नष्ट करने में लगा है. आज का समय धार्मिक संकीर्णता का समय है. एक खास समाज के लिए उन्माद फैलाया जा रहा है. धर्म कभी भी लोगों को हिंसा करना नही सीखाता. मनुष्य और प्रकृति को तोड़ने का काम पूंजीवाद ने किया. प्रकृति की लूट में देश का पूरा तंत्र शामिल है. इन्ही सब को उभारने की कोशिश इस रेतीला उपन्यास में की गई है. एक ही उपन्यास में 2 अलग अलग तरह की शैली देखने को मिल सकती है कहीं कहीं जादुई यथार्थवाद भी देखने को मिलता है. लेखन में जादुई समायोजन किया है.

जयप्रकाश: मैं आनंद की कहानी का प्रारंभ से पाठक हूं. रेतीला वैसे तो छोटा सा उपन्यास है लेकिन 2 ऐसे अध्याय है जो हिंदी के श्रेष्ठतम गद्यों में से एक है. ‘जैसे समुद्र को सुनती थी नदियां, वैसे नदी को सुनती थी नदी की वनस्पतियां’ . ये पंक्तियां बताती है कि नदी भी मनुष्य की तरह व्यव्हार करती है. ऐसे विलक्षण सौंदर्य से भरा ये उद्धरण है. प्रकृति आनंद के व्याख्यान की सुंदर कला है. धर्म को लेकर जो माहौल बना है उसी पर सुंदर रचना भी है. ऐसे मारक गद्य है जो हमें भीतर से विचलित कर देता है.
आख्यान-कला के अंत में के अंत में मनोज रूपणा और आनंद हर्षुल में यथार्थ पर अत्यंत ही विचारात्मक संवाद हुआ. कार्यक्रम का संचालन छत्तीसगढ़ फ़िल्म एंड विजुअल आर्ट सोसायटी के अध्यक्ष सुभाष मिश्र ने किया. कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. संजय अलंग, योग मिश्रा , मिनहाज असद , तुषार वाघेला प्रियंका वाघेला , मधु राजकुमार सोनी , अधीर भगनानी , राजेन्द्र ओझा , राजेश गनोदवाले , राहुल सिंह , दिनेश प्रभाकर , डॉ बिप्लव बंधोप्पायाय , नवीन श्रीवास्तव , डॉ अखिलेश त्रिपाठी , राजेन्द्र जैन, मधु चतुर्वेदी मौजूद थे.