नई दिल्ली, 22 दिसंबर 2025। अरावली रेंज की पर्यावरण सुरक्षा उपायों को कथित रूप से कमजोर करने वाले मामले में पर्यावरण कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता हितेंद्र गांधी ने मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत को पत्र लिखकर ‘100-मीटर टेस्ट’ नियम की समीक्षा की मांग की है। पत्र की प्रति राष्ट्रपति को भी भेजी गई है।
पत्र में पर्यावरण मंत्रालय की सिफारिश को मंजूरी देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले की समीक्षा करने का अनुरोध किया गया है। नई परिभाषा के अनुसार, अरावली पहाड़ी नामित जिलों में कोई भू-आकृति है जिसकी ऊंचाई स्थानीय भू-भाग से 100 मीटर या अधिक हो तथा अरावली रेंज ऐसी दो या अधिक पहाड़ियों का समूह है जो एक-दूसरे से 500 मीटर के दायरे में हों।
पर्यावरणविदों का कहना है कि यह नई परिभाषा कानूनी सुरक्षा की कमी से क्षेत्र के 90 प्रतिशत हिस्से को प्रभावित कर सकती है। गांधी ने पत्र में कहा कि 100 मीटर का नियम उन इकोलॉजिकली महत्वपूर्ण हिस्सों को बाहर करने का जोखिम पैदा करता है जो ऊंचाई की सीमा पूरी नहीं करते, लेकिन कार्यकीय दृष्टि से आवश्यक हैं। निचली पहाड़ियों और जल रिचार्ज क्षेत्रों की रक्षा आवश्यक है।
गांधी ने मुख्य न्यायाधीश से 20 नवंबर 2025 के आदेश में अरावली पहाड़ियों एवं पर्वत श्रृंखलाओं की पहचान के लिए अपनाए गए परिभाषा फ्रेमवर्क पर पुनर्विचार या स्पष्टीकरण की अपील की है। उन्होंने चेतावनी दी कि ऊंचाई आधारित मानदंड अनजाने में उत्तर-पश्चिम भारत में पर्यावरण संरक्षण को कमजोर कर सकता है।
अपनी दलीलों में गांधी ने संवैधानिक सिद्धांतों का हवाला दिया, जिसमें अनुच्छेद 21 द्वारा स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार की गारंटी, अनुच्छेद 48ए तथा 51ए(जी) का उल्लेख किया, जो राज्य और नागरिकों पर पर्यावरण रक्षा का कर्तव्य डालते हैं।