हरिशंकर व्यास
Money and fear : पैसा और भय हिंदू का बेसिक डीएनए
Money and fear : मेरी पत्नी, मेरी बेटी ने पार्थ चटर्जी की करीबी अर्पिता मुखर्जी के घर पर करोड़ों रुपए के लावारिस अंबार को देख आश्चर्य से पूछा- इतना पैसे, ऐसे लावारिस रखा जाता है! मैंने तब उदाहरण दे कर (जगजीवन राम के वक्त सुने किस्सों से लेकर मोदी-शाह के राज के किस्सों) समझाने की कोशिश की कि हम हिंदू लूटने के लिए ही हैं।
Money and fear : नादिर शाह से लेकर अंग्रेज और पिछले 75 वर्षों में लूट, नजराने, शहर कोतवालों के डंडों के भय और भ्रष्टाचार में हिंदुओं के स्थायी तौर पर जकड़े रहने का कारण खुद हिंदू है। तब भला 50 करोड़ या हजार करोड़ रुपए तो मामूली बात हैं। भारत का हर सत्तावान कुर्सी पर बैठता ही लूटने के लिए है।
Money and fear : आजाद भारत में पंडित नेहरू, शास्त्री, मोरारजी देसाई, चरण सिंह भले राजनीति के दलदल में, उसके चुनाव के तकाजे के बावजूद वैयक्तिक ईमानदारी, सादगी और शुचिता से जीवन जी गए अन्यथा सभी हिंदू नेता गुलामी की हजार साल की इस सत्ता और पैसे की भूख में जीये हैं।
Money and fear : इतिहास का यह सत्य मोदी राज में इसलिए एवरेस्ट की ऊंचाई लिए हुए है क्योंकि मोदी-शाह और संघ परिवार ने चुनाव और राजनीति दोनों को पैसे और भय की धुरी पर बांध दिया है। नरेंद्र मोदी की ज्योंहि एब्सोल्यूट सत्ता हुई तो संघ परिवार और भाजपा की पहली भूख क्या झलकी? हर जिले में भव्य बड़े दफ्तर हों।
Money and fear : दिल्ली में भाजपा और संघ का दफ्तर भव्य बहुमंजिला-पांच सितारा होटल जैसा हो। ध्यान रहे अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी के दशकों पुरानी सत्तारूढ़ पार्टी के दफ्तर वैसे नहीं होंगे, इतनी बड़ी तादाद में नहीं होंगे, जितने संघ परिवार ने पिछले आठ सालों में बनाए हैं। मैंने दिल्ली में आडवाणी-वाजपेयी के मूल अजमेरी गेट के दफ्तर और संघ के झंडेवालान के शुरुआती दफ्तर को देखा है।
Money and fear : नानाजी ने एक डीआरआई बिल्डिंग क्या बनाई उससे खुद तब जनसंघ और संघ में बवाल हुआ था। कैसे इतना पैसा इकठ्ठा हुआ, कौन भ्रष्ट है, इसकी अंदरूनी निंदा में एक त्रासदी भी हुई। प्रो. राजेंद्र सिंह, भाऊराव, कुशाभाऊ, सुंदर सिंह भंडारी जैसे लोग कैसे एक सामान्य कमरे में रहते थे और अब मोहन भागवत तथा नरेंद्र मोदी के वक्त में राजनीति के हिंदू आइडिया पर सत्ता की जो लाली छाई है तो मेरी यह धारणा फिर है कि हजार साल के हिंदू गुलाम मनोविज्ञान के चेतन-अचेतन के कण-कण में यह लिप्सा पैठी हुई है कि जब भी हमारी सत्ता होगी, हम उसे भोगेंगे।
Money and fear : खूब धन-पैसा-संपत्ति बनाएंगे। फिर भले उसमें वैयक्तिक तौर पर अपने लिए पैसा बनाते हुए नहीं होना (इस नाते नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत सौ टका ईमानदार) लेकिन प्रजा के वोट खरीदने, अपने जलवे तथा सत्ता को स्थायी बनाने के लिए तो पूरे देश को भ्रष्टाचार का कुंआ बना देने का शासन होता जाता है।
Money and fear : इतिहास सत्य है कि गोरी, नादिर शाह, मुगलों और अंग्रेजों के सत्ता वैभव, उनकी अमीरी को देख कर हर हिंदू तड़पा था। सत्ता, पैसे की भूख व भय के डीएनए दिमाग में बनाते हुए था। विदेशियों की तलवार से, उनके कोतवालों से हिंदुओं के हजार साल भय और भयाकुलता में गुजरे हैं।
इसलिए पहला लक्ष्य– जैसे भी हो सत्ता पर बैठो। दूसरा लक्ष्य सत्ता को पक्का करने के लिए डंडा चलाओ, अपना भय बनाओ, पैसा इकठ्ठा करो ताकि सत्ता बनी रही। तीसरा लक्ष्य- वैसा ही अपना वैभव, अपनी धमक बनाओ, अपना खजाना बनाओ जैसे इतिहास में पूर्ववर्ती शासक बनाते रहे।
Money and fear : मुगलों ने लाल किला बनाया और अंग्रेजों ने राष्ट्रपति भवन और अपनी नई दिल्ली बनाई तो नरेंद्र मोदी और भाजपा-संघ परिवार की परम प्राप्ति तभी है जब उनकी विशाल इमारतें बनें, नई संसद बने, नया सेंट्रल विस्टा बने। नेहरू ने सरकारी कारखानों के मंदिर (जो अब कबाड़ दशा में हैं) बना कर अपने को इतिहास पुरूष बनाया तो दलित नेत्री मायावती ने भी लखनऊ की सत्ता से पत्थर स्मारक (जहां आज कोई झांकता नहीं) बना दलितों का उत्थान हुआ माना तो संघ परिवार में भी धुन इमारतों से अपने वैभव को दर्शाने की है।
सो, भारत का हर हिंदू सत्तावान नेता सत्ता पर बैठने के बाद डीएनए की इस लालासा में पैसा इकठ्ठा करता जाता है और सत्ता को पक्का बनाने के लिए कुबेर का खजाना बनाना व जनता को डराए रखता है वैसे ही जैसे मुसलमान- अंग्रेज शासक करते थे। फर्क इतना भर है कि तब भारत और जनता को लूटने वाले कम थे। तब तलवार, भय से सत्ता थी अब भय के साथ पैसे से वोट खरीदने, राजनीति होने का नया हिंदू खेला है। इसके पैमाने भी ऐसे हो गए हैं कि दाल-तेल बेचने वाले भी सत्ता की मेहरबानी से दुनिया के खरबपति बने हुए हैं। क्या मैं गलत हूं?
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