महाकुंभ 2025: नदियों की स्वच्छता का संकट और समाधान की ओर कदम…

सुभाष मिश्र, प्रयागराज (इलाहाबाद) में जनवरी 2025 से 26 फरवरी 2025 तक आयोजित होने वाला महाकुंभ इस बार एक विशाल आयोजन होगा। इस महापर्व का धार्मिक महत्व तो है ही, लेकिन इसके साथ ही यह नदियों की स्वच्छता और जल स्त्रोतों की रक्षा की एक बड़ी आवश्यकता की ओर भी इशारा करता है। महाकुंभ हर 12 साल में आयोजित होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु गंगा में स्नान करने आते हैं और अपनी आत्मा की शुद्धि की कामना करते हैं।

महाकुंभ 2025 का भव्य आयोजन
उत्तर प्रदेश सरकार ने इस बार महाकुंभ 2025 के लिए ₹5,435.68 करोड़ का बजट निर्धारित किया है, जो पिछले महाकुंभ के मुकाबले अधिक है। इस बार के मेले में 40 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं के आने की संभावना है, जो 2013 के पिछले कुंभ मेले से तीन गुना अधिक है। सुरक्षा के दृष्टिकोण से, 56 थानों और 144 चौकियों की स्थापना की जाएगी। संगम क्षेत्र में सुरक्षा के लिए अत्याधुनिक तकनीकों जैसे अंडरवाटर ड्रोन, सोनार सिस्टम और लाइफ जैकेट का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके अलावा, मेला क्षेत्र में 1.5 लाख शौचालयों का निर्माण किया जाएगा ताकि श्रद्धालुओं को बुनियादी सेवाएं उपलब्ध कराई जा सकें।

नदियों के प्रति हमारे व्यवहार का विरोधाभास
भारत में नदियों के किनारे धार्मिक मेलों और उत्सवों का आयोजन एक पुरानी परंपरा है। कार्तिक मास में नदियों में स्नान, छठ पूजा और अन्य धार्मिक आयोजन नदियों के किनारे होते हैं। लेकिन इन धार्मिक आयोजनों के दौरान एक बड़ा मुद्दा नदियों की स्वच्छता है। एक ओर हम नदियों को पवित्र मानकर उनकी पूजा करते हैं, वहीं दूसरी ओर, हम उन्हीं नदियों में गंदगी, कचरा, और विषैले तत्व प्रवाहित कर देते हैं।

धार्मिक परंपराओं के तहत नदियों में शव बहाना, अस्थि विसर्जन करना और उत्सवों के बाद देवी-देवताओं की प्रतिमाओं का विसर्जन करना हमारे संस्कारों का हिस्सा बना हुआ है। हालांकि, इन क्रियाओं के कारण नदियों में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। खासकर गंगा नदी, जिसे हम सबसे पवित्र मानते हैं, उसके जल में अब आचमन करना भी दूभर हो चुका है। गंगा का जल, जो कभी मरते हुए व्यक्ति को मुक्ति दिलाने का कारण माना जाता था, अब उस पवित्रता को खो चुका है।

नदियों के जल संकट का समाधान
भारत में कई सालों से नदियों के संरक्षण की दिशा में कुछ प्रयास किए जा रहे हैं। गंगा नदी की स्वच्छता के लिए सरकार ने कई योजनाएं बनाई हैं, जिनमें सबसे प्रमुख योजना ‘गंगा कार्य योजना’ है, जो 1985 में शुरू की गई थी। इसके बाद, 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘नमामि गंगे’ मिशन की शुरुआत की, जो गंगा नदी को पुनर्जीवित करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है। इस मिशन के तहत 2019-2020 तक गंगा की सफाई के लिए ₹20,000 करोड़ का बजट निर्धारित किया गया था।

इसके साथ ही, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) का गठन किया गया, जो गंगा के जल को साफ करने और उसका पुनरुद्धार करने के लिए विभिन्न योजनाओं पर काम कर रहा है। हालांकि, अब तक इस मिशन के तहत केवल 75% बजट ही खर्च किया जा सका है, और शेष राशि को जल्द खर्च करने की योजना है।

नदियों से जुड़ी समस्याएं
भारत में नदियों का जल संकट कई कारणों से बढ़ रहा है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि नदियों से रेत का अवैध उत्खनन किया जा रहा है, जिससे नदियों का जल स्तर घटता जा रहा है। इसके अलावा, नदियों के किनारे मिट्टी का कटाव भी तेज़ी से हो रहा है, और जगह-जगह बांधों के निर्माण से नदियों के जल प्रवाह में रुकावट आ रही है, जिसके कारण कई नदियाँ सूखने के कगार पर हैं।

पानी के बंटवारे को लेकर राज्यों और पड़ोसी देशों जैसे नेपाल, बांगलादेश और पाकिस्तान के बीच विवाद भी एक गंभीर समस्या बन गया है। इन समस्याओं को हल करने के लिए एक ठोस जल नीति की आवश्यकता है।

जल स्रोतों की सफाई और संरक्षण की आवश्यकता
हमारे पास नदियों, तालाबों और बावड़ियों की सफाई और संरक्षण के लिए कोई ठोस योजना नहीं है। यह कार्य केवल सरकार के स्तर पर नहीं, बल्कि हर नागरिक को अपनी जिम्मेदारी समझकर करना होगा। हमें अपनी नदियों को केवल पूजा का स्थान नहीं, बल्कि उनकी स्वच्छता और संरक्षण की दिशा में भी कदम उठाने होंगे।

अगर हम सचमुच अपनी नदियों को बचाना चाहते हैं, तो हमें नदियों को गंदगी से बचाने के लिए और जल स्रोतों की सफाई के लिए व्यापक कदम उठाने होंगे। यह सिर्फ एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि हमारे पर्यावरण और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बड़ी जिम्मेदारी भी है।

निष्कर्ष:
महाकुंभ के इस मौके पर हमें नदियों की स्वच्छता और जल संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है। सरकार के द्वारा किए गए प्रयासों के साथ-साथ, हमें खुद को भी इस दिशा में सशक्त कदम उठाने के लिए प्रेरित करना होगा। अगर हम सच में गंगा जैसी पवित्र नदियों को बचाना चाहते हैं, तो यह सिर्फ धार्मिक आस्थाओं का प्रश्न नहीं है, बल्कि हमारी सामाजिक और पर्यावरणीय जिम्मेदारी भी है।

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