Lord Shri Krishna : अधर्म को चुनौती देने का साहस व प्रत्येक कर्म का पूर्ण निष्ठा से निर्वहन
Lord Shri Krishna : जिसे सीमित शब्दों में परिभाषित किया जा सके वो कभी भी कृष्ण नहीं हो सकता, क्योंकि कृष्ण होने का अर्थ ही यह है कि जिसके लिए सारे शब्द कम पड़ जाएं व सारी उपमाएं छोटी। जिसकी महिमा जितनी गाई जाए उतनी ही कम लगती है।
जो दूसरों के चित्त को अपनी ओर आकर्षित करे वो श्री कृष्ण है। बाल भाव से बच्चे उनकी तरफ खिंचते हैं तो प्रौढ़ गाम्भीर्य भाव से। कान्त भाव से गोपियाँ उनको अपना सर्वस्व दे बैठीँ तो योगिराज बनकर उन्होंने योगियों को अपना बनाया।
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केवल बाहर ही नहीं अपितु हमें अपने भीतर भी कृष्ण को जन्म देना होगा। अनीति व अत्याचार के विरोध की सामर्थ्य, कठिनतम परिस्थितियों में भी धर्म रक्षार्थ कृत संकल्प, पग-पग पर अधर्म को चुनौती देने का साहस व प्रत्येक कर्म का पूर्ण निष्ठा से निर्वहन, वास्तव में अपने भीतर कृष्ण को जन्म देना ही है।