kick ideology to power सत्ता के लिए विचारधारा को लात !

kick ideology to power

हरिशंकर व्यास

kick ideology to power सत्ता के लिए विचारधारा को लात !

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kick ideology to power सत्ता के लिए विचारधारा को लात !

kick ideology to power आज से 42 साल पहले जब भाजपा का गठन हुआ था तब इसके कई नारों में एक नारा ‘पार्टी विद डिफरेंस’ का भी था। भाजपा अपने को सबसे अलग पार्टी बताती थी। हाल के दिनों तक पार्टी की वेबसाइट खोलने पर प्रमुखता से यह वाक्य लिखा दिखता था। लेकिन अब इसे वेबसाइट से हटा दिया गया है। क्योंकि अब भाजपा बाकी पार्टियों से अलग पार्टी नहीं है।

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kick ideology to power  वह बाकी पार्टियों की तरह ही एक पार्टी है, जिसके लिए सत्ता सबसे अहम है और विचारधारा उसके बाद की चीज है। सोचें, कुछ दिन पहले तक क्या स्थिति थी। भाजपा में बाहर के लोगों की एंट्री नहीं होती थी। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से प्रशिक्षण लिए हुए लोगों के लिए ही पार्टी में जगह थी।

kick ideology to power  अगर दूसरी पार्टी से कोई नेता भाजपा में शामिल होता था तो उसे कोई पद हासिल करने के लिए बरसों इंतजार करना होता है। पार्टी का पूरा नजरिए शुद्धतावादी था।

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लेकिन अब विचारधारात्मक आग्रह खत्म हो गया है। पार्टी ने शुद्धतावादी नजरिया छोड़ दिया है। अब ऐसे हर नेता का पार्टी में स्वागत है, जो पार्टी को सत्ता दिलाने में मददगार हो। फिर चाहे उसकी पृष्ठभूमि कैसी भी हो और वह किसी भी विचारधारा का आदमी हो।

kick ideology to power उसे न सिर्फ पार्टी में शामिल किया जा रहा है, बल्कि सत्ता और संगठन दोनों में ऊंचे स्थान पर बैठाया जा रहा है। थोड़े दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया था लेकिन ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस युक्त भाजपा बनाया जा रहा है।

अब तक भाजपा के नेताओं का समर्पण पार्टी और उसके सर्वोच्च नेता से ज्यादा आरएसएस के प्रति होता था। नागपुर से पार्टी के नेता संचालित होते थे। लेकिन जो नेता दूसरी पार्टियों से लाए जा रहे हैं और ऊंचे पदों पर बैठाए जा रहे हैं उनका संघ से कोई नाता नहीं है इसलिए संघ के प्रति कोई समर्पण भी नहीं है। वे नागपुर और आरएसएस की बजाय मोदी, शाह के प्रति समर्पित हैं।

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kick ideology to power पूर्वोत्तर में 2014 से पहले भाजपा काफी कमजोर थी और सरकार में नहीं थी। लेकिन आरएसएस ने बरसों की मेहनत से पूर्वोत्तर में जमीन तैयार की थी। संघ के अनेक नेता पूर्वोत्तर में काम करते थे। लेकिन अब पूर्वोत्तर की पूरी राजनीति संघ के हाथ से लेकर हिमंता बिस्वा सरमा को सौंप दी गई है। पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में हिमंता बिस्वा सरमा के हिसाब से काम होता है।

वे राज्यों के बीच सीमा विवाद भी सुलझा रहे हैं, अलगाववाद की समस्या भी सुलझा रहे हैं और राजनीतिक समीकरण भी बना रहे हैं। अलग अलग राज्यों में गठबंधन और भाजपा की सरकारों का गठन उनके प्रयासों से हुआ है। वे लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी में रहे हैं।

kick ideology to power तरुण गोगोई की 15 साल चली सरकार में मंत्री थे। उस दौरान उनके ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे। उनकी इस पृष्ठभूमि का बावजूद भाजपा ने न सिर्फ उनको पार्टी में लिया है, बल्कि स्वंयसेवक सर्बानंद सोनोवाल को हटा कर उनकी जगह सरमा को मुख्यमंत्री बनाया है।

पूर्वोत्तर के कई राज्यों में कांग्रेस या दूसरी पार्टियों से आए नेताओं को भाजपा ने मुख्यमंत्री बनाया है। अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस पेमा खांडू अब भाजपा के मुख्यमंत्री हैं। पहले पेमा खांडू और उनके पिता दोरजी खांडू दोनों कांग्रेस के मुख्यमंत्री थे। इसी तरह मेघालय में कांग्रेस और एनसीपी में रहे दिवंगत पीए संगमा के बेटे कोनरेड संगमा के साथ भाजपा का तालमेल है।

भाजपा के सहयोग से संगमा मुख्यमंत्री हैं। त्रिपुरा में भाजपा ने जिन मानिक साहा को मुख्यमंत्री बनाया है, वे तो चार-पांच साल पहले ही कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए हैं। पार्टी ने अपने पुराने कार्यकर्ता रहे बिप्लब देब को हटा कर उनकी जगह कांग्रेस से आए मानिक साहा को मुख्यमंत्री बनाया है। नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो भी कांग्रेस की राजनीति से ही निकले हैं।

दक्षिण भारत के सिर्फ एक राज्य कर्नाटक में भाजपा सरकार में है। बीएस येदियुरप्पा के प्रयासों से पहली बार कर्नाटक में भाजपा की सरकार बनी। किसी जमाने में येदियुरप्पा राज्य के इकलौते विधायक होते थे और वहां से उन्होंने पार्टी को सत्ता में पहुंचाया। वहां पर भाजपा ने जनता दल ये आए नेता बासवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया है।

उनका भी कोई संघ कनेक्शन नहीं है और न संघ के लिए कोई प्रतिबद्धता है। तो कम से कम चार मुख्यमंत्री तो ये ही हो गए, जिनका संघ के साथ कोई लेना-देना नहीं है। इसके अलावा संगठन के अनेक नेता, राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष और सरकारों के मंत्री, केंद्र सरकार के मंत्री आदि ऐसे हैं, जिनका संघ से संबंध नहीं रहा है। वे दूसरी पार्टियों से आए हैं या किसी दूसरे क्षेत्र में सक्रिय थे।

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कोई खिलाड़ी था, कोई फिल्मों में काम करता था, कोई यूट्यूबर था उनको ला कर पार्टी में अहम जिम्मेदारी दी गई। इन सबका कोई विचारधारात्मक जुड़ाव नहीं है लेकिन ये सत्ता दिलाने या पार्टी की ताकत बढ़ाने में भागीदार हैं तो इनको महत्वपूर्ण जगहों पर रखा गया है। आज भाजपा हर दिन किसी किसी विवाद में फंसती है और राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनामी होती है तो उसका कारण ऐसे नेता भी हैं, जो बिना किसी प्रतिबद्धता और राजनीतिक प्रशिक्षण के हैं।

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