छत्तीसगढ़ का कश्मीर : चैतुरगढ़ में विराजमान हैं मां महिषासुर मर्दिनी की 18 भुजाओं वाली अद्भुत प्रतिमा, पास ही है रहस्यमयी गुफा

शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व पूरे देश में श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ का कोरबा जिला भी देवी भक्ति का एक अद्भुत केंद्र बना हुआ है। यहां की ऊंची पहाड़ियों और प्राकृतिक किले के बीच स्थित है मां महिषासुर मर्दिनी का प्रसिद्ध धाम चैतुरगढ़, जिसे लोग ‘लाफागढ़’ के नाम से भी जानते हैं।

गुप्तकालीन धरोहर और प्राकृतिक किला

चैतुरगढ़ कोरबा शहर से लगभग 100 किलोमीटर और पाली से करीब 40 किलोमीटर उत्तर दिशा में बसा है। इतिहासकारों के अनुसार इसका निर्माण छठी शताब्दी में गुप्तवंशीय राजाओं ने कराया था। यह एक मजबूत प्राकृतिक किला है, जिसके चारों ओर ऊंची चट्टानी दीवारें बनी हुई हैं। किले के तीन विशाल प्रवेश द्वार — मेनका, हुमकारा और सिंहद्वार — इसकी भव्यता को और बढ़ा देते हैं।

मां महिषासुर मर्दिनी की 18 भुजाओं वाली प्रतिमा

पहाड़ी के शीर्ष पर लगभग पांच वर्ग किलोमीटर का समतल क्षेत्र है, जहां पांच तालाब मौजूद हैं। इनमें से तीन तालाब सालभर पानी से भरे रहते हैं। इसी परिसर में स्थित है मां महिषासुर मर्दिनी का मंदिर, जहां देवी की अठारह भुजाओं वाली अद्भुत प्रतिमा स्थापित है। नवरात्रि के अवसर पर यहां हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए ज्योत प्रज्वलित करते हैं। इस वर्ष मंदिर में लगभग 25 हजार ज्योतें जलाई गई हैं

पहाड़ी के ऊपर तक पहले गाड़ियों की सुविधा थी, लेकिन बरसात और नवरात्रि के कारण श्रद्धालुओं को वाहनों को नीचे खड़ा कर आधा किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पैदल ही करनी पड़ती है। हालांकि, मां के दर्शन मात्र से थकान पल भर में मिट जाती है।

शंकर गुफा का रहस्य

मंदिर से करीब तीन किलोमीटर दूर स्थित है शंकर गुफा, जो 25 फीट लंबी और बेहद संकरी है। मान्यता है कि इसमें केवल वही श्रद्धालु अंत तक पहुंच पाते हैं, जिनका मन और भावनाएं पूरी तरह शुद्ध होती हैं। यही कारण है कि गुफा रहस्य और आस्था दोनों का केंद्र बनी हुई है।

इतिहास और मान्यताएं

चैतुरगढ़ का संबंध कलचुरी शासक पृथ्वीदेव से भी जोड़ा जाता है, जिन्होंने इस किले का निर्माण कराया था। पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित धरोहर घोषित किया है। स्थानीय मान्यता है कि यहां एक गुप्त द्वार स्वर्गलोक और कुबेर के खजाने तक जाता है।

भक्ति और सेवा का संगम

नवरात्रि के दौरान आसपास के नौ गांवों द्वारा निशुल्क भंडारे और भोग का आयोजन किया जाता है। बारिश और दुर्गम चढ़ाई के बावजूद श्रद्धालुओं की भीड़ दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

प्राकृतिक सौंदर्य, ऐतिहासिक धरोहर और धार्मिक आस्था का अद्भुत संगम चैतुरगढ़ को छत्तीसगढ़ का ‘कश्मीर’ बनाता है। यहां आने वाले श्रद्धालु सिर्फ मां महिषासुर मर्दिनी के दर्शन ही नहीं, बल्कि असीम आध्यात्मिक शांति का अनुभव भी करते हैं।

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