Jashoda son : रानी तेरो चिर जियो गोपाल : चिरंजीवी ही हैं जशोदा के लल्ला

Jashoda son :

Jashoda son : रानी तेरो चिर जियो गोपाल !

 

Jashoda son : नन्दगाँव में हल्ला हुआ है। लोग आश्चर्य में डूबे नन्द बाबा के द्वार पर एकत्र हुए हैं और एक दूसरे से कह रहे हैं, “रात को तो कन्या हुई थी न? फिर कन्या बालक में कैसे बदल गयी जी?” यह प्रश्न सबके पास है, उत्तर किसी के पास नहीं। जिनके पास उत्तर है, वे देना नहीं चाहते। यही होता है, सामान्य जन के पास केवल प्रश्न होते हैं, वे केवल पूछते रहते हैं। उत्तर बहुत कम लोगों के पास होता है, पर उनमें उत्तर देने की बेचैनी नहीं होती। वे बस देखते सुनते हैं, और मुस्कुराते हैं।

लोग तो लोग हैं जी! कुछ ही देर में प्रश्न भूल कर उत्सव मनाने लगे हैं। गाँव के मालिक को लल्ला हुआ है, नाचना तो बनता है न? कोई बुजुर्ग महिला गाना शुरू करती है- रानी तेरो चिर जिये गोपाल… ओ रानी! ओ जशोदा! तेरा लल्ला जुग जुग जिये… इसके पास लाख गैया हों… यह राजा बने। नन्द बाबा से बड़ा राजा, कंस राजा से भी बड़ा राजा…

बुढ़िया नहीं जानती, उसके अपने जीवन की डोर जिसके हाथ में है, वही जशोदा का लल्ला बन कर आया है। संसार का मालिक, भवसागर का खेवैया, तारनहार… वह उल्टे उसे ही आशीष दे रही है, जुग जुग जिये… अज्ञानी होने का भी अपना अलग आनन्द है जी! वे ईश्वर को भी अपना पड़ोसी, अपना बच्चा समझ सकते हैं। उसे आशीष दे सकते हैं। ज्ञानियों के पास इतना सामर्थ्य कहाँ?

पर कुछ ज्ञानी जन भी थे ही, जो जानते थे कि उद्धारक इसी गाँव में किलकारियां भरने वाला है। संसार के अश्रु पोछने वाला इसी गाँव में माखन के लिए अश्रु बहाने आ रहा है। जगत को चराने वाला यहीं यमुना तट पर गाय चराने की लीला रचने आ रहा है। वो संसार को अर्जुन की भांति जीना और अभिमन्यु की तरह मरना सिखाने आ रहा है।

दौड़ पड़े हैं वे लोग भी। वे अपने माथे से लगा लेना चाहते हैं उस मिट्टी को, जिसपर स्वयं नारायण चलने वाले हैं। उनके गन्ध से महक उठी हवा में सांस ले लेना चाहते हैं। समूची सृष्टि जैसे नन्द गाँव में ही उतर जाना चाहती है।

गाँव चिहा गया है कि इतने साधु बाबा लोग कहाँ से आ गए रे दादा! ये भांति भांति के ऋषि मुनि… ये तो पहले कभी न दिखे? ठीक भी है! नन्दबाबा के लल्ला हुआ है, आज सारा दही-माखन संतों को ही खिला देते हैं। वे नहीं जानते, उनके हाथ से देवता दही खा रहे हैं।
नन्द बाबा के लल्ला का दर्शन कर के निकलते ऋषि भी अनायास गा उठे हैं- रानी तेरो चिर जीवे गोपाल… तू नहीं जानती मइया कि तेरी गोद में स्वयं नारायण हैं। हम उन्हें भी जानते हैं, और जान रहे हैं तेरे सौभाग्य को भी! ओ मइया! भोग लेना इस सुख को। वे रोयेंगे तो मरोड़ना उनके कान… बांध देना उस नटखट के हाथ… उन नन्ही हथेलियों पर चला लेना छड़ी! यह सौभाग्य केवल और केवल तुम्हे मिलना है माता…

 

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Jashoda son : युग बीत गए। पाँच हजार वर्ष… चिरंजीवी ही हैं जशोदा के लल्ला! हमेशा जिएंगे, जबतक सृष्टि है। उनके जीने से ही हमारा जीना है। वे ही राष्ट्र हैं, वे ही धर्म… नंदोत्सव पर हमसब भी गा लेते हैं- चिर जीवे गोपाल… जुग जुग जीयो कन्हैया! तुम्हारा होना ही धर्म का होना है देवता! वही अज्ञानता का आनन्द…