(Jagdalpur news update) बेदरे में बन रहे पुल का अबूझमाड़िया आदिवासियों ने किया विरोध, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के नाम तहसीलदार को सौंपा ज्ञापन

(Jagdalpur news update)

(Jagdalpur news update) नदी तट पर सैकड़ों आदिवासियों का दिन रात डेरा

अनिश्चित कालीन आंदोलन की दी चेतावनी
 अबूझमाड़  के 20 से अधिक गाँवों के आदिवासी कर रहे आंदोलन

(Jagdalpur news update) जगदलपुर । पूरे बस्तर संभाग में इन दिनों आदिवासियों का संघर्ष और वर्तमान व्यवस्थाओं के प्रति उनकी नाराज़गी आग की तरह सुलग रही है।बस्तर के अंदरूनी क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों की व्यथा को गंभीरता से समझने वाला यहां कोई नही है और जो समझने वाले हैं उन्होंने भी इनसे मुँह मोड़ लिया है।

(Jagdalpur news update) समझने वालों से तात्पर्य  अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित यहां की ग्यारह विधानसभा क्षेत्रों से चुने गए विधायकों , जिला और जनपद पंचायत के  प्रतिनिधियों से है।बंदूकों की नोक पर सड़क और पुल के निर्माण को विकास बताने वाली सरकार की बातों को आदिवासी अस्वीकार कर रहे हैं।

(Jagdalpur news update)  स्वास्थ्य,शिक्षा ,पेयजल और मूलभूत ज़रूरतों के लिए साढ़े सात दशकों से तरस रहे आदिवासियों का कहना है कि सरकार हमारी वास्तविक ज़रूरतों को  आज तक पूरा नहीं कर सकी है और दूसरी तरफ बस्तर के जंगलों में खनिज सम्पदाओं के दोहन के  लिए पुल और सड़क बना कर हमारी संस्कृति और हमारी ज़िंदगी का सुकून भी छीन लेना चाहती है।

(Jagdalpur news update)  सिलगेर ,बुर्जी,गंगालूर,वेचाघाट और टुंडरी बोदली की तर्ज़ पर अब जगह-जगह आदिवासियों के छोटे बड़े आंदोलन आग की तरह सुलग रहे हैं।

ऐसा लगता है कि  भविष्य में ये आग  कभी भी विकराल रूप ले सकती है।बस्तर के वरिष्ठ आदिवासी नेता अरविंद नेताम ने तो यहां तक कह दिया है कि बस्तर में  फिर  एक बार किसी नए भूमकाल  की आहट सुनाई देने लगी है।

आज यहां जिस ताज़े मामले का जिक्र हम करने जा रहे हैं वो देश के विशेष संरक्षित जनजातियों में से एक अबूझमाड़िया जनजाति से जुड़ा है।

अबूझमाड़ का अंतिम छोर जहां एक ओर महाराष्ट्र की सीमा है और दूसरी ओर इंद्रावती नदी के रूप में बीजापुर जिले की सरहद ।यहां अबूझमाड़ की ग्राम पंचायत लंका के पास सैकड़ों की संख्या में अबूझमाड़िया आदिवासी एकत्रित हुए हैं।

ये आदिवासी बीजापुर के बेदरे से नुंगूर और लंका को जोड़ने वाले निर्माणाधीन पुल का विरोध कर रहे हैं।दरअसल यहां छत्तीसगढ़ सशत्र बल की पहरेदारी में इंद्रावती नदी पर एक पुल बनाया जा रहा है।

बड़ी ही सुस्त गति से बन रहे इस पुल का निर्माण करीब दो वर्ष पहले शुरू हुआ था।इस पुल का अभी भी करीब अस्सी फीसदी काम बाकी है।ऐसे में बीते बुधवार को अचानक दो हज़ार की संख्या में आदिवासी निर्माणाधीन पुल के पास पहुंचे और अपनी विभिन मांगों से संबंधित ज्ञापन पुलिस की मौजूदगी में तहसीलदार को सौंपा।

ग्राम सभा के बिना कोई गिरफ्तारी नहीं, वनाधिकार कानूनों के तहत आदिवासियों को परिसर अधिकार प्रदान करने ,स्कूल ,अस्पताल खोलने जैसी तमाम मांगों के बीच जो इनकी सबसे महत्वपूर्ण मांग है उसे देख कर पुलिस के माथे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई पड़ रहीं हैं।

मांग है कि इस पुल का काम तत्काल रोका जाए।बेदरे थाने के आगे सीएएफ का कैम्प सिर्फ इसी निर्माण कार्य को सुरक्षा प्रदान करने के लिए लगाया गया है।

शांतिपूर्ण ढंग से ज्ञापन सौंप कर ये आदिवासी नदी तट से दो किलोमीटर दूर वापस नुंगूर गांव आये जहां उनका अनिश्चितकालीन आंदोलन शुरू हो चुका है।

दो दिनों से दिन रात यहां बड़ी संख्या में आदिवासी महिला और पुरुष  तेज़ ठंड के बावजूद भी डंटे हुए हैं।लोग यहीं आग जलाकर भोजन बना रहे हैं।

कुछ लोग शुक्रवार की रात से इन्द्रावती के तट तक  आ पहुंचे हैं। निर्माण स्थल के इतने नज़दीक पहुंच चुके आंदोलनकारियों और पुलिस के बीच भविष्य में टकराव की स्थिति भी निर्मित हो सकती है इसे देखते हुए  दोनों तरफ से अत्यधिक सजगता की ज़रूरत महसूस की जा रही है।

बीते चार जनवरी से जारी इस आंदोलन में महाराष्ट्र के परायनार,नेलगुण्डा, मिडदापल्लीऔर कवंडे(महाराष्ट्र) के अलावा कवंडे (छ ग),के आदिवासी यहां पहुंचे हुए हैं।

इसके अलावा अबूझमाड़ के लंका,नुंगूर, भामरा,झारामरका,हिंगमेटा, जाटलूर, दोडमारका,पदमेटा, पदगुना, राँचमेटा,कारगुल,मुरुमवाड़ा, बोदली, ओरेगोबेल ,बुरिंग, टेकला, कोहकामेटा, उसलंका, गुडरा, कोलनार,पल्ली और परकिल तक से बड़ी संख्या में आदिवासी यहां पहुंचे हुए हैं।जिस तरह राशन पानी लेकर दूर दूर से आदिवासी यहां पहुंचे हुए हैं उसे देखकर  लगता  है कि ये आंदोलन लंबा चलने वाला है।

(Jagdalpur news update)  आंदोलन में लाउडस्पीकरों के मदद से वक्ता यहां उपस्थित आदिवासी जन समुदाय को सम्बोधित कर रहे हैं।दिन भर और देर रात तक नारे बाजी चल रही है।लोकनर्तक और लोकगायक  लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं और आंदोलन को सफल बनाने की अपील भी कर रहे हैं।

(Jagdalpur news update)  आंदोलन का नेतृत्व  कई शिक्षित अबूझमाड़िया नवयुवक कर रहे हैं।लंका के रहने वाले महेश मोहन्दा,दशरथ मोहन्दा,वंजाम वीरेंद्र आदि ने कहा कि इस इलाके में दूर दूर तक कोई स्कूल ,आंगनबाड़ी और अस्पताल नहीं है।साल भर  में सिर्फ चार पांच बार ओरछा से स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी यहां आते हैं।साल भर में कई लोगों की  इलाज के अभाव में मौत हो जाती है।बीते दस सालों में पंचायत स्तर पर होने वाले सारे काम बंद हैं।मनरेगा योजना क्या है यह भी लोग नहीं जानते।पीने का पानी तक लोगों को नही मिल पा रहा है।राशन के लिए कई किलोमीटर दूर बेदरे तक जाना पड़ता है।ग्रामीण विकास की दर्जनों योजनाएं सरकार  द्वारा चलाई जा रहीं हैं जो बिना पुल के भी हम तक पहुंच सकती थीं लेकिन आज तक नही पहुंच सकीं।

(Jagdalpur news update)  अब जब  हमारे जल जंगल और जमीन की तरफ पूंजी पतियों की नज़र टिक गई है तब सरकार को पुल बनाने की याद आई है।ये पुल हमारे लिए नहीं बल्कि खनिज संपदा को लूटने वाले पूंजीपतियों के लिए बनाया जा रहा है।लखमू राम,वोर्रा, सुद्द वड्डे, वंजा, प्रकाश और मुंसी ने कहा कि हम आदिवासी हज़ारों सालों से पुल के बिना जी रहे हैं और आगे हज़ारों साल तक ऐसे ही जी लेंगे।

(Jagdalpur news update)  इसके बनने से हमारी स्वच्छंदता हमारी संस्कृति और हमारी जनजातीय जीवन शैली प्रभावित होगी।जब तक इस पुल का निर्माण कार्य नहीं रुकता तब तक आंदोलन जारी रहेगा।अबूझमाड़ में प्रस्तावित पुलिस कैम्पों का भी विरोध किया जा रहा है और पहले से लगे कैम्पों को हटाने की भी मांग की जा रही है।

संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के आदिवासियों का प्रतिनिधित्व करने वाले एडवोकेट लालसू भी  आंदोलन में हुए शामिल

माड़िया जनजाति के लालसू नागोटी आदिवासियों के बीच एक लोकप्रिय नाम है।लालसू का ननिहाल नदी के इस पार छत्तीसगढ़ के  बीजापुर के बेदरे में है।इनके पिता नदी के उसपार महाराष्ट्र के भामरागढ़ में रहते हैं।लालसू की प्रारंभिक शिक्षा यहां हेमलकसा स्थित बाबा आमटे के आश्रम में हुई है।

इसके बाद लालसू ने आईएलएस पूना (इंडियन लॉ सोसायटी )से लॉ की पढ़ाई पूरी की और आदिवासियों को न्याय दिलाने का जिम्मा उठा लिया।पत्रकारिता और सामाजिक विज्ञान में स्नातकोत्तर लालसू ने संयुक्त राष्ट्र संघ में देश के आदिवासियों का प्रतिनिधित्व भी किया है।

वर्तमान में पूरे दंडकारण्य क्षेत्र में आदिवासियों को न्याय दिलाने जी जान से जुटे हुए लालसू ,नुंगूर भी पहुंचे हुए हैं।लालसू ने कहा कि पांचो राज्यों के आदिवासी इलाकों में समस्याएं विकराल रूप धारण कर रही हैं।इस पूरे दंडकारण्य इलाके में विकास के नाम पर विनाश किया जा रहा है।

आदिवासियों का सुख चैन छीना जा रहा है।पूंजीपतियों की पैसे कमाने की भूख के चलते आदिवासियों को विस्थापित किया जा रहा है।आदिवासी का मतलब ही वही है कि जिन परंपराओं के साथ वो जीता है उसे उसी तौर तरीके से उसे जीने दिया जाना चाहिए।तमाम कानून आदिवासियों और उनकी संस्कृति के संरक्षण के लिए बनाए गए हैं लेकिन इन कानूनों को उद्योगपतियों की ख्वाहिश के अनुसार ढाला जा रहा है जिसका आदिवासी समाज पुरजोर विरोध कर रहा है और आगे भी करता रहेगा।

अबूझमाड़ क्षेत्र के आदिवासियों द्वारा ज्ञापन दिया गया है-एसडीओपी

कुटरू में पदस्थ एसडीओपी  विकास  पटले ने बताया कि नदी के उस पार से ग्रामीण  आये थे ।उन्होंने अपनी कुछ मांगों से संबंधित ज्ञापन तहसीलदार को सौंपा है।उन्होंने बताया कि बेदरे में बन रहे पुल के निर्माण कार्य को रोकने की मांग भी ज्ञापन में लिखी गई है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

MENU