छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण को लेकर इन दिनों विवाद चरम पर है। हाल ही में 25 जुलाई को 2 मिशनरी सिस्टर्स की गिरफ्तारी और 28 जुलाई को कांकेर में ईसाई परिवार पर हुए हमले ने माहौल गरमा दिया। इन घटनाओं के बीच एक बार फिर सवाल उठ रहा है कि ईसाई धर्म यहां कैसे पनपा।

यह कहानी 1867 की है, जब जर्मनी में जन्मे रेवरेंड फादर ऑस्कर टी. लोर विश्रामपुर पहुंचे और यहां इम्मानुएल चर्च बनवाया। यही से छत्तीसगढ़ में ईसाई धर्म की नींव पड़ी। उन्होंने गांव के 4 लोगों को ईसाई धर्म में दीक्षित किया। धीरे-धीरे पूरे गांव ने धर्म अपना लिया। यहां पहला कब्रिस्तान भी बनाया गया।
फादर ऑस्कर के बड़े बेटे की मौत बाघ के हमले में हुई, लेकिन उनके मिशनरी कार्य जारी रहे। 157 साल में यह संख्या 4 से बढ़कर आज करीब 6 लाख हो गई। 2011 की जनगणना के अनुसार, छत्तीसगढ़ में 1.92% आबादी ईसाई है।
आज भी विश्रामपुर का यह चर्च ईसाई समुदाय के लिए ऐतिहासिक धरोहर है, लेकिन मौजूदा धार्मिक टकराव ने इस लंबे इतिहास को एक बार फिर चर्चा में ला दिया है।
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