बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने चोलामंडलम फाइनेंस कंपनी द्वारा एकतरफा नियुक्त मध्यस्थ के पारित अवार्ड को निरस्त कर दिया है। कोर्ट ने इसे मध्यस्थता संशोधन अधिनियम 2015 की धारा 12 की उपधारा 5 तथा सातवीं अनुसूची के प्रावधानों का उल्लंघन माना।
याचिकाकर्ता रिंकेश खन्ना ने चोलामंडलम फाइनेंस कंपनी से वाहन खरीद के लिए ऋण लिया था तथा इसके लिए संविदा निष्पादित की गई थी। ऋण की अदायगी समान मासिक किस्तों में तय हुई थी। व्यापारिक हानि तथा अन्य कारणों से किस्त भुगतान में असमर्थ होने पर याचिकाकर्ता ने वाहन कंपनी को वापस समर्पित कर दिया।
इसके बाद कंपनी ने स्वयं एकतरफा मध्यस्थ नियुक्त कर लिया तथा नियुक्त मध्यस्थ ने कंपनी के पक्ष में एकपक्षीय अवार्ड पारित कर दिया। अवार्ड राशि की वसूली के लिए कंपनी ने सिविल न्यायालय में निष्पादन कार्यवाही शुरू की। याचिकाकर्ता ने निष्पादन प्रकरण के विरुद्ध सिविल न्यायालय में आपत्ति दर्ज की, जो निरस्त हो गई।
इसके बाद रिंकेश खन्ना ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर मांग की कि निष्पादन प्रकरण क्षेत्राधिकार विहीन तथा प्रारंभ से शून्य है। याचिका में तर्क दिया गया कि मध्यस्थता संशोधन अधिनियम 2015 की धारा 12 की उपधारा 5 सहपठित सातवीं अनुसूची के अनुसार हितबद्ध पक्षकार द्वारा एकपक्षीय मध्यस्थ की नियुक्ति नहीं की जा सकती। ऐसे मध्यस्थ के समक्ष हुई सभी कार्यवाहियां प्रारंभ से शून्य तथा क्षेत्राधिकार विहीन हैं तथा उसके अनुसार दायर निष्पादन प्रकरण चलने योग्य नहीं है।
हाईकोर्ट ने प्रतिवादी को नोटिस जारी कर याचिका स्वीकार की तथा एकपक्षीय अवार्ड निरस्त करने का आदेश पारित किया।