जबलपुर। मध्यप्रदेश के सरकारी स्कूलों में ई-अटेंडेंस प्रणाली को लेकर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। इस मामले में याचिकाकर्ता शिक्षकों और राज्य सरकार ने अपने-अपने पक्ष पेश किए। शिक्षकों ने नेटवर्क और तकनीकी दिक्कतों का हवाला देते हुए ई-अटेंडेंस लागू करने में कठिनाई बताई, जबकि सरकार का कहना है कि नेटवर्क की कोई बड़ी समस्या नहीं है और अधिकांश शिक्षक नियमित रूप से ई-अटेंडेंस दर्ज कर रहे हैं। सरकार ने तर्क दिया कि यह व्यवस्था शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के उद्देश्य से अनिवार्य की गई है। इस मामले में 27 शिक्षकों ने अलग-अलग जिलों से याचिकाएं दायर की हैं। सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने अगली सुनवाई 7 नवंबर को निर्धारित की है।
क्या है मामला
याचिकाओं में शिक्षकों ने कहा है कि सभी के पास स्मार्टफोन नहीं है, जिससे प्रतिदिन ई-अटेंडेंस दर्ज करना मुश्किल होता है। साथ ही, डेटा पैक और बैटरी चार्ज की समस्या भी सामने आती है। ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में नेटवर्क कनेक्टिविटी कमजोर है, जिससे एप पर उपस्थिति दर्ज नहीं हो पाती। कई बार सर्वर और फेस मैचिंग संबंधी तकनीकी दिक्कतें भी आती हैं। शिक्षकों ने यह भी आरोप लगाया कि उच्च अधिकारी ई-अटेंडेंस नहीं लगाने पर वेतन रोकने की चेतावनी दे रहे हैं। याचिकाकर्ताओं ने पारंपरिक रजिस्टर प्रणाली या बायोमेट्रिक मशीन के उपयोग की मांग की है।
निजता के उल्लंघन का भी आरोप
जबलपुर की एक शिक्षिका ने ऐप के जरिए लोकेशन और फोटो एक्सेस मांगे जाने को निजता के अधिकार का हनन बताया है। उनका कहना है कि निजी मोबाइल में सिम और आधार से जुड़े बैंक विवरण रहते हैं, जिससे धोखाधड़ी की संभावना बढ़ जाती है। उन्होंने कहा कि यदि शासन अलग से मोबाइल और सिम उपलब्ध कराता है, तो उस पर यह ऐप डाउनलोड किया जा सकता है। इसी तरह की कई आपत्तियों को आधार बनाकर हाईकोर्ट में एक याचिका विचाराधीन है।
 
	
 
											 
											 
											 
											