वो कम बोलता,पर उसकी कला सर चढ़कर बोलती… यादें विनय शर्मा की



जाने की उम्र तो कदापि नहीं थी प्रकृति के चितेरे इस बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी कलाकार की,जिसने कैमरे के अपने हुनर को रोजी रोटी के जरिए से कहीं आगे एक अलग किस्म की जुनून भरी सनक के रूप में आत्मसात किया था,तभी तो इस आर्ट की खातिर ना दिन देखा ना रात.., खतरनाक दंगे हो या पत्थर बाजी से भरा जलूस,अपने अखबार के लिए कर्मठ इस फोटो जर्नलिस्ट ने कभी भी पीठ नहीं दिखाई,उनकी पत्नी श्रीमती अपराजिता शर्मा ने बताया,कई बार इस दौरान चोटिल भी हुए, साथ ही कैमरे को नुकसान भी पहुंचा, जिसकी भरपाई उन्होंने निजी तौर पे की,पर दोबारा फिर वही दोहराने के लिए तैयार नजर आए..!

बकौल अपराजिता धूल मिट्टी भरे रास्तों में यूं ही बेखौफ निकल जाना,रात बेरात बियाबान जंगलों में भटक के बिरली तस्वीरें खींचना,उन्हें भले ही राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों तक ले गया पर उसकी कीमत उन्हें अपने स्वास्थ्य को खतरे में डालकर चुकानी पड़ी। धूल मिट्टी फेफड़ों को खराब करते गए,टिफिन रहने के बावजूद,दिन दिन भर भूखे रहकर अपने इसी जुनून के चलते उन्हें बहुत से हेल्थ इश्यूज आए,उनकी बेटी अमृता के मुताबिक पापा बहुत ही इंट्रोवर्ट थे,अपनी तकलीफें कभी भी शेयर नहीं करते,उन की बड़ी बहन श्रीमती इंदु चटर्जी बताती हैं,एक बार जंगल से लौटते हुए एक पहाड़ी नाले पे उसकी मोटरसाइकिल उलट गई,पर दर्द के बावजूद बहुत देर बाद उसने ये बात बताई और एक्स-रे में पसलियों के टूटने का अंदेशा दिखाई दिया.!

यही नहीं पूरी तरह से ठीक भी नहीं हुआ था,मेरे पति डॉ मानिक चटर्जी ने मना किया था,फिर भी बिना बताए निकल गया एक असाइनमेंट के लिए..! डॉ मानिक चटर्जी के मुताबिक स्वभाव में संकोची विनय जल्दी अपने हेल्थ इश्यूज मुझे भी जल्दी शेयर नहीं करता,और गंभीर सिचुएशन भी घर वालों को नहीं बताने की रिक्वेस्ट करता,इसलिए जब मर्ज बढ़ जाता और उसे अस्पताल में भर्ती करने की नौबत आती,तब जाकर लोगों को पता चलता,कई बार हिदायत देने के बावजूद अपने काम के आगे वो इन्हें नजर अंदाज कर देता और यही अंतत: उसे भारी पड़ा। उसका इकलौता बेटा अमित जो नॉर्वे में रहता है,कई बार ऐसी स्थितियों में भारत लौटने की बात करता तो विनय ये कहकर खारिज कर देता कि वो जल्दी वापस घर लौट आएगा हॉस्पिटल से,परेशान होने की जरूरत नहीं,आखरी बार भी वो अंत तक अपनी गंभीर स्थिति को हर संभव बेटे से छुपाने की कोशिश करता रहा,बकौल अमित काश कि इस बार मैं उनकी बात नहीं मानता,उनकी घर वापसी का इंतजार ना करके पहले ही चला आता तो पापा के आखिरी वक्त उनके साथ रहता ! दाह संस्कार के पहले भी उनका चेहरा हर बार की तरह इतना सौम्या और शांत था मानो उन्होंने वो असहनीय दर्द झेला ही ना हो जो बर्दाश्त के बाहर था.!


उनके बड़े भाई कमल शर्मा का मानना है कि उनका छोटा भाई विनय भले ही उनसे उम्र में छोटा था पर उसकी सोच और समझ काफी उम्दा थी, हर विषय में उसकी गहरी पैठ थी खासतौर पे सिनेमैटोग्राफी इतने अलग एंगल से लेता ही नहीं अलग तरीके से सोचता भी था जिसके मुरीद थे उसके कई ऐसे शागिर्द जिन्होंने उसकी तस्वीरों से बहुत कुछ सीखा, एक घटना का जिक्र करते हुए कमल जी ने बताया बचपन में वो दोनों भाई यवतमाल के घने जंगल में घर के बाहर खाट पे सोए हुए थे, तब एक तेंदुआ आ गया था !बाद में इस बात के जिक्र पे विनय के मुंह से अनायास ही निकला,काश की उस वक्त मेरे पास कैमरा होता ताकी मैं उस गबरू तेंदुए को कैमरे में कैद कर पाता..! उनके मित्र और खुद भी दूरदर्शन रायपुर के जाने-माने वरिष्ठ सिनेमैटोग्राफर अजीज भाई का कहना है बहुत ही उम्दा काम छोड़ गया है विनय अपने पीछे, जितनी अच्छी उसकी फोटोग्राफी थी उससे कहीं ज्यादा अच्छी उसकी टेक्निकल पकड़ थी,

छत्तीसगढ़ की नायाब धरोहरों मसलन मंदिरों, चित्रकूट जलप्रपात और घने जंगलों को उसने अपने कैमरे के माध्यम से जिस तरह खींचा है वो वाकई कमाल का है! हमारे अखबार के संपादक सुभाष मिश्रा का मानना है कि मरणोपरांत भी उसके चित्रों की प्रदर्शनी का प्रयास उस जैसे सच्चे और नेकदिल कलाकार के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी जिसने छत्तीसगढ़ को एक अलग ही दृष्टि से देखा और उसके दिन प्रतिदिन बढ़ते आयाम को,एक अलग ही दृष्टिकोण दे गया..!

आकाशवाणी रायपुर के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी राजेश फाहे के मुताबिक वो जितना अच्छा कलाकार था उससे कहीं ज्यादा बेहतर इंसान,हमेशा हंसता मुस्कुराता दूसरों के दुख दर्द में हमेशा सामने आने वालों में से था.! तो ऐसा कलाकार ना सिर्फ घर परिवार और दोस्तों के लिए ही एक गहरा सदमा छोड़ गया बल्कि छत्तीसगढ़ भी अपने इस होनहार कलाकार को खोकर उदास है, इसलिए नवभारत के पूर्व संपादक रुचिर गर्ग का मानना है कि उनके चित्रों की प्रदर्शनी के साथ उसकी कला को जिंदा रखना हम सब की सामाजिक ही नहीं, नैतिक जिम्मेदारी भी है..!

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