हबीब तनवीर ने लेखन में भारतीय संस्कृति को हूबहू उतारा

हबीब तनवीर ने लेखन में भारतीय संस्कृति को हूबहू उतारा

सड्डू स्थित जनमंच में रंग हबीब का आयोजन किया गया

रायपुर। हबीब तनवीर वह नाम जिसकी रंगशाला में भारत देश की बुनियाद धडक़ती है। जिनकी लेखनी शैली में भारत की परंपरा का साक्षात दर्शन होता है। उन्होने अपने लेखन में भारतीय संस्कृति को हूबहू उतारा है। जिसे देख कर सुन कर हर कोई भारत और यहां की परंपराओं से अभिभूत हो जाता है।

जाने माने रंग निदेशक हबीब तनवीर के जन्म दिवस पर राजधानी के सड्डू स्थित जनमंच में रंग हबीब का आयोजन किया गया। छत्तीसगढ़ फिल्म एंड विजुअल आर्ट सोसाइटी के आयोजन में हबीब तनवीर की कृति गांव के नांव ससुरार मोर नांव दामाद का मंचन किया जाएगा। नाटक के कुछ अंश का मंचन हुआ। जिसमें कलाकारों ने नाटक के पात्रों को जीवंत बना दिया।

इससे पहले योग मिश्रा ने हबीब तनवीर को लेकर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होने बताया कि किस तरह से हबीब तनवीर ने छत्तीसगढ़ के नाट्य शैलियों गीत को रंगमंच में स्थान दिला कर देश भर में एक नई पहचान दिलाई। उन्होने बताया कि तनवीर जी की शैली में कोई भी मिलावट नही थी। उन्होने लोककथाओं, लोक गीतों को ठीक उसी तरह रंगशाला में उतारा जैसा स्थानीय लोग गाते और बताते थे। इस लिए लोग इससे सीधे दिल से जुड़े।

हबीब तनवीर, देश के रंगमंच का ऐसा नाम है जिन्हें उनके रंगमंच की खास शैली के लिए जाना जाता है। उन्होंने अपनी अनूठी शैली के माध्यम से नाट्य को ‘लोक’ तक पहुंचाया। उनके नाटकों की खासियत यही है कि उनमें समाज से जुड़ी ऐसी समस्याओं का उल्लेख होता है जो आमवर्ग को प्रभावित करती हैं।

इसके बाद हबीब तनवीर के थियेटर से जुड़े कलाकार अमर सिंह का भी सम्मान किया गया। हबीब तनवीर की कृति गांव के नांव ससुरार मोर नांव दामाद का मंचन किया गया, जिसका निर्देशन रचना मिश्रा ने किया। इसमें बुढवा का किरदार हेमंत यादव, पिता थावेंद्र रजक, मान्ती संध्या वर्मा, शांति मनीषा दुबे, छंगलु महेश्वर मंगलु थावेंद्र रजक, देवार और तीसरा आदमी हेमंत निषाद देवारिन सीमा सोनी पंडित का पात्र उमेश उपाध्याय ने निभाया।

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