सुभाष मिश्र
कोई सरकार अपने कामकाज को सरल, सहज समयबद्ध तरीके से करके तकनीकी नवाचार के जरिए भ्रष्टाचार को समाप्त करना चाहती है, इससे अच्छी पहल दूसरी नहीं हो सकती। छत्तीसगढ़ के रजत जयंती वर्ष को अटल निर्माण वर्ष के रूप में मनाते हुए अटल बिहारी वाजपेयी के सिद्धांतो को धरातल पर उतारने के लिए छत्तीसगढ़ की सरकार ने आईआईएम यानी भारतीय प्रबंध संस्थान रायपुर के साथ सुशासन, वित्तीय प्रबंधन और नेतृत्व की बारिकियों पर चिंतन शिविर आयोजित करके चुने हुए जनप्रतिनिधियों जिन में मंत्री, विधायक और मुख्यमंत्री स्वयं शामिल थे। प्रशिक्षण, प्रबोधन और सुशासन के लिए एक सकारात्मक पहल की। चिंतन शिविर के नाम से की गई इस पहल में परिवर्तनकारी नेतृत्व, दूरदर्शी शासन, संस्कृति, सुशासन और राष्ट्र निर्माण जैसे विषयों पर गहन विमर्श हुआ। आईआईएम इंदौर के निर्देशक हिमांशु राय, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के पूर्व अध्यक्ष डॉ. विनय सहस्त्र बहरे का भी संबोधन हुआ।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का कहना है की पिछले चिंतन शिविर से प्राप्त सुझावों को लागू कर आम जनता के जीवन में सकारात्मक बदलाव आया है। उनके अनुसार डेढ़ वर्षों में 350 से अधिक प्रशासनिक सुधार किए गए, जिनमें ई-ऑफिस प्रणाली ने फाइलों के मैनुअल ढेर को समाप्त कर जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित की है। अब फाइलें ऑनलाइन मूव होती हैं, और हर कार्य की समय-सीमा निर्धारित है, जिससे भ्रष्टाचार की गुंजाइश खत्म हुई है।
मुख्यमंत्री कहना है कि अटल जी के सुशासन के सिद्धांतों को धरातल पर उतारना इस वर्ष का मुख्य लक्ष्य है। डिजिटल गवर्नेंस को अपनाकर रजिस्ट्री प्रक्रिया को सरल बनाया गया है, जिसमें अब घर बैठे मिनटों में रजिस्ट्री और स्वत: नामांतरण हो रहा है। यह नवाचार भ्रष्टाचार को समाप्त करने की दिशा में क्रांतिकारी कदम है। एआई और क्लाइमेट चेंज से जुड़े उद्यमों को प्रोत्साहन, नवा रायपुर में देश का पहला एआई डाटा सेंटर पार्क और सेमीकंडक्टर यूनिट का शुभारंभ छत्तीसगढ़ को तकनीकी क्रांति का अग्रदूत बना रहा है।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी, सुशासन (गुड गवर्नेंस) के प्रबल समर्थक थे। उनके सुशासन के सिद्धांत मुख्य रूप से पारदर्शिता, जवाबदेही, और जन-केंद्रित शासन पर आधारित थे। वे पारदर्शिता के बड़े पक्षकार थे। उनका मानना था कि सरकार के सभी कार्य जनता के सामने खुले होने चाहिए। उन्होंने सूचना का अधिकार (आरटीआई) जैसी पहल का समर्थन किया, जो बाद में 2005 में कानून बना। इससे जनता को सरकारी कामकाज की जानकारी मिली। वाजपेयी जवाबदेही को ज्यादा महत्ता देते थे। उनका मानना था कि सरकार और उसके अधिकारियों को अपने कार्यों के लिए जवाबदेह होना चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हर नीति और निर्णय का लाभ सीधे जनता तक पहुंचे। लोकतांत्रिक भागीदारी पर उनका विश्वास गहरा था। वाजपेयी जी का मानना था कि शासन में जनता की भागीदारी जरूरी है। उन्होंने ग्राम सभाओं और स्थानीय निकायों को सशक्त करने पर बल दिया ताकि स्थानीय स्तर पर निर्णय लिए जा सकें।
न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन के अपने सिद्धांत के जरिये वे कहते थे कि सरकार का हस्तक्षेप कम से कम होना चाहिए, लेकिन शासन प्रभावी और कुशल होना चाहिए। उन्होंने नौकरशाही को कम करने और तकनीक के उपयोग को बढ़ावा दिया, जैसे कि उनके कार्यकाल में शुरू हुई राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाएं और सूचना प्रौद्योगिकी को बढ़ावा। सेवा और समर्पण का उनका सिद्धांत कहता है कि शासन का मुख्य उद्देश्य जनता की सेवा होना चाहिए। वाजपेयी जी ने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि सरकार को सबसे कमजोर वर्ग तक पहुंचना चाहिए, जिसे वे ‘अंत्योदय’ (सबसे अंतिम व्यक्ति का उदय) कहते थे। राष्ट्रीय एकता और विकास में उनकी सोच उन्हें बाकि नेताओ से अलग करती थी। उन्होंने अपने कार्यकाल में ‘सर्व शिक्षा अभियान’ और ‘स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना’ जैसी योजनाएं शुरू हुईं, जो देश के समग्र विकास पर केंद्रित थीं। नैतिकता और मूल्य के लिए वे अलग से जाने जाते है। शासन में नैतिकता और मूल्यों का पालन होना चाहिए। वाजपेयी जी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त रुख अपनाया और प्रशासन में सत्यनिष्ठा को बढ़ावा दिया।
आईआईएम में जनप्रतिनिधियों का जिस तरह का दो दिवसीय प्रशिक्षण हुआ, ऐसा ही प्रशिक्षण केंद्र और राज्य सरकारें अपने अधिकारियों, विशेषकर आईएएस और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों, को बेहतर शासन और सुशासन के लिए प्रशिक्षण देने पर जोर दे रही हैं। इसके लिए चिंतन शिविर, आईआईएम जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं में प्रशिक्षण शिविर, और लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (मसूरी) में नियमित ट्रेनिंग प्रोग्राम आयोजित किए जाते हैं। हाल ही में, मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों के लिए चिंतन शिविर 2.0 का आयोजन भी किया गया, जिसमें सुशासन और प्रभावी नीति निर्माण पर चर्चा हुई। हालांकि, इसके बावजूद लालफीताशाही, भ्रष्टाचार और अधिकारियों के व्यवहार में सुधार की कमी देखी जाती है। इन प्रशिक्षणों का लक्ष्य पारदर्शिता बढ़ाना, भ्रष्टाचार कम करना, और नागरिक केंद्रित शासन सुनिश्चित करना है। तकनीकी प्रगति और डिजिटल शासन को बढ़ावा देना भी एक प्रमुख लक्ष्य है।
चिंतन शिविर और आईआईएम प्रशिक्षण से अधिकारियों में डिजिटल शासन और डेटा-आधारित निर्णय लेने की समझ बढ़ी है। उदाहरण के लिए, कई राज्यों में ई-गवर्नेंस पहलें मजबूत हुई हैं। प्रशिक्षण से अधिकारियों को नवीन नीतियों और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं की जानकारी मिली है, जो नीति निर्माण में सहायक हो सकती है। इसके बावजूद, लालफीताशाही और भ्रष्टाचार में कोई उल्लेखनीय कमी नहीं आई है। राष्ट्रीय सैंपल सर्वे (2024) के अनुसार, 65 फीसदी नागरिकों ने शिकायत की कि सरकारी कार्यालयों में प्रक्रियाएं जटिल हैं, और 40फीसदी ने भ्रष्टाचार का सामना किया। इस तरह के प्रशिक्षण सैद्धांतिक ज्ञान पर केंद्रित है, जबकि व्यावहारिक चुनौतियां—जैसे राजनीतिक दबाव, संसाधनों की कमी, और जमीनी स्तर पर जवाबदेही इनका असर कम करती हैं। यह सही है कि प्रशिक्षण से लंबे समय में शासन प्रणाली में सुधार की संभावना है। डिजिटल पहलूों और नीति निर्माण में सुधार इसके सकारात्मक पहलू हैं। 2023 में शुरू किए गए ई-ऑफिस सिस्टम ने फाइल प्रक्रिया में 20फीसदी तेजी लाई है।
प्रशिक्षण के दौरान तकनीकी नवाचार पर जोर दिया गया है। यह सही है की तकनीक के जरिये सरकारी काम काज में वृद्धितकनीक के उपयोग से सरकारी प्रक्रियाओं को पारदर्शी बनाया जा सकता है। ई-गवर्नेंस के जरिये से भारत में डिजिटल इंडिया पहल के तहत कई सरकारी सेवाएं ऑनलाइन हो गई हैं, जैसे आयकर रिटर्न, पासपोर्ट आवेदन, और राशन कार्ड वितरण। यह मैन्युअल हस्तक्षेप को कम करता है, जिससे रिश्वतखोरी की संभावना घटती है। पब्लिक डेटा पोर्टल के माध्यम कई सरकारें अपने बजट, खर्च, और परियोजनाओं का डेटा सार्वजनिक करती हैं। भारत में ‘डिजिलॉकर’ और ‘मायगव’ जैसे प्लेटफॉर्म नागरिकों को अपनी सेवाओं तक सीधी पहुंच देते हैं। डिजिटल लेनदेन और कैशलेस सिस्टम के चलते बहुत हद तक नकदी आधारित लेनदेन भ्रष्टाचार का एक बड़ा स्रोत होते हैं उसमे कमी आई है। डिजिटल भुगतान प्रणाली जैसे यूपीआई, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) और आधार-लिंक्ड भुगतान ने बिचौलियों को हटाकर सीधे लाभार्थी तक धन पहुंचाने में मदद की है। भारत में डीबीटी के जरिए सब्सिडी सीधे लाभार्थी के खाते में जाती है, जिससे ‘लीकेज’ (धन की हेराफेरी) में 50फीसदी से अधिक की कमी आई है।
ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग सरकारी लेनदेन को अपरिवर्तनीय और पारदर्शी बनाता है। यह तकनीक डेटा में हेरफेर को रोकती है। तेलंगाना सरकार ने भूमि रिकॉर्ड को डिजिटाइज़ करने के लिए ब्लॉकचेन का उपयोग शुरू किया है, जिससे जमीन से जुड़े भ्रष्टाचार में कमी आई है। एआई और डेटा एनालिटिक्स का उपयोग करके सरकारी खर्चों और परियोजनाओं की निगरानी की जा सकती है। यह अनियमितताओं को तुरंत पकडऩे में मदद करता है। आयकर विभाग एआई का उपयोग करके कर चोरी का पता लगा रहा है। 2025 तक भारत में एआई-आधारित सिस्टम से कर संग्रह में 20फीसदी की वृद्धि होने की उम्मीद है। तकनीक ने नागरिकों को भ्रष्टाचार की शिकायत दर्ज करने के लिए आसान प्लेटफॉर्म दिए हैं। भारत में ‘सेंट्रल विजिलेंस कमीशन’ (सीवीसी) और कई राज्य सरकारों ने ऑनलाइन पोर्टल शुरू किए हैं जहां भ्रष्टाचार की शिकायत दर्ज की जा सकती है। स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स का उपयोग करके सरकारी निविदाओं और अनुबंधों को स्वचालित किया जा सकता है, जिससे भ्रष्टाचार की गुंजाइश कम होती है। ई-टेंडरिंग सिस्टम ने भारत में सरकारी ठेकों में पारदर्शिता बढ़ाई है।
आधार और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) के जरिए 125 करोड़ से अधिक लोगों की पहचान डिजिटल रूप से सत्यापित की गई है। डीबीटी ने 2025 तक 2.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक की सब्सिडी सीधे लाभार्थियों तक पहुंचाई, जिससे भ्रष्टाचार में 40-50फिसदी की कमी आई। ई-निविदा (E-Tendering) से भी बहुत हद तक वित्तीय गड़बड़ी रुकी है भारत में GeM (Government e-Marketplace) जैसे प्लेटफॉर्म ने सरकारी खरीद को पारदर्शी बनाया है। 2025 तक त्रद्गरू के जरिए 3 लाख करोड़ रुपये से अधिक की खरीदारी हुई, जिसमें भ्रष्टाचार की शिकायतें न के बराबर हैं। डिजिटल इंडिया और ऑनलाइन सेवाएं जिनमें पासपोर्ट सेवा, राशन कार्ड आवेदन, और बिजली बिल भुगतान जैसी सेवाएं ऑनलाइन होने से बिचौलियों की भूमिका खत्म हुई है। भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट और डिजिटल साक्षरता की कमी है। 2025 तक भी भारत की 30फीसदी आबादी के पास इंटरनेट की पहुंच सीमित है।
तमाम प्रशिक्षण, प्रबोधन, तकनीक सभी कारगर साबित होगी, जब शासन प्रशसन में संवेदनशीलता होगी, वरना ई- फाईल की व्यवस्था के बाद भी बहुत सारे अधिकारी, मंत्री फाईल का कर्सर तब तक आगे नही बढ़ाते जब तक की उपर से आदेश न हो या फिर उनके हित न सधे। प्रशासन से जवाबदेही और पारदर्शिता के साथ संवेदनशीलता और समय बाध्यता भी एक जरूरी फैक्टर है।